वर्तमान में देवगुरु बृहस्पति राहु के साथ नीच राशि मकर में युति बनाकर बैठे हैं। गुरु-राहु की युति को चांडाल योग के नाम से जाना जाता है। सामान्यत: यह योग अच्छा नहीं माना जाता। जिस भाव में फलीभूत होता है, उस भाव के शुभ फलों की कमी करता है। यदि मूल जन्म कुंडली में गुरु लग्न, पंचम, सप्तम, नवम या दशम भाव का स्वामी होकर चांडाल योग बनाता हो तो ऐसे व्यक्तियों को जीवन में बहुत संघर्ष करना पड़ता है। जीवन में कई बार गलत निर्णयों से नुकसान उठाना पड़ता है। पद-प्रतिष्ठा को भी धक्का लगने की आशंका रहती है।
वास्तव में गुरु ज्ञान का ग्रह है, बुद्धि का दाता है। जब यह नीच का हो जाता है तो ज्ञान में कमी लाता है। बुद्धि को क्षीण बना देता है। राहु छाया ग्रह है जो भ्रम, संदेह, शक, चालबाजी का कारक है। नीच का गुरु अपनी शुभता को खो देता है। उस पर राहु की युति इसे और भी निर्बल बनाती है। राहु मकर राशि में मित्र का ही माना जाता है (शनिवत राहु) अत: यह बुद्धि भ्रष्ट करता है। निरंतर भ्रम-संदेह की स्थिति बनाए रखता है तथा गलत निर्णयों की ओर अग्रसर करता है।
यदि मूल कुंडली या गोचर कुंडली इस योग के प्रभाव में हो तो निम्न उपाय कारगर सिद्ध हो सकते हैं- 1. योग्य गुरु की शरण में जाएँ, उसकी सेवा करें और आशीर्वाद प्राप्त करें। स्वयं हल्दी और केसर का टीका लगाएँ। 2. निर्धन विद्यार्थियों को अध्ययन में सहायता करें। 3. निर्णय लेते समय बड़ों की राय लें। 4. वाणी पर नियंत्रण रखें। व्यवहार में सामाजिकता लाएँ। 5. खुलकर हँसे, प्रसन्न रहें। 6. गणेशजी और देवी सरस्वती की उपासना और मंत्र जाप करें। 7. बरगद के वृक्ष में कच्चा दूध डालें, केले का पूजन करें, गाय की सेवा करें। 8. राहु का जप-दान करें।
चांडाल योग और भार त
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9 दिसंबर को देवगुरु बृहस्पति ने अपनी नीच राशि में प्रवेश किया है। वहाँ पहले से बैठे राहु ने इस युति से चांडाल योग को जन्म दिया है। मई 2009 तक गुरु इसी दशा में रहेंगे। तत्पश्चात वक्री होकर पुन: कुंभ राशि में आएँगे। इसी दौरान जनवरी माह में सूर्य के मकर में आने से गुरु अस्त भी माने जाएँगे।
इन खगोलीय घटनाओं के संदर्भ में भारत की कुंडली की विवेचना की जाए तो यह योग भारत का वृषभ लग्न होने से नवम भाव में घटित हो रहा है।
गुरु स्वयं नवम भाव का कारक माना जाता है, उसके निर्बल होने के कई प्रभाव सामने आ सकते हैं। धर्मस्थानों की क्षति, दुर्घटनाएँ संभावित हैं। लोगों की धार्मिक आस्था लड़खड़ाएगी। लग्न पर दोनों ग्रहों की दृष्टि मतिभ्रम की स्थिति उत्पन्न करेगी। इससे सत्तापक्ष द्वारा गलत निर्णय लेकर जनता का विश्वास खो देने की पूर्ण आशंका रहेगी। पराक्रम पर इनकी दृष्टि महँगाई, मंदी जैसे मुद्दों पर विराम नहीं लगने देगी।
साथ ही असामाजिक तत्वों की गतिविधियाँ भी बढ़ेंगी। सरकार की नीति टालमटोल वाली रह सकती है, जिसका फल कोई भारी नुकसान के रूप में मिल सकता है। बुद्धि और संतान भाव पर इनकी दृष्टि बुद्धिजीवी वर्ग में शासकों के प्रति गहरे असंतोष को जन्म देगी। राज्यों में असंतोष फैलने, उपद्रव भड़कने की आशंका रहेगी। सत्ता में भारी परिवर्तन के भी आसार रहेंगे।
दशा-महादशा पर विचार करें तो वर्तमान में भारत शुक्र की महादशा में केतु के अंतर से गुजर रहा है। सप्तम में केतु कुछ विशेष फलदायी नहीं है। अत: गोचर का प्रभाव हावी रहने का पूर्ण अंदेशा है। अत: जागरूकता तथा सजगता रखना अच्छा होगा। सत्तापक्ष व अधिकारियों को अपने कर्तव्य निभाना चाहिए तथा सुरक्षा व्यवस्थाओं को सजग रखना चाहिए।