कर्णपिशाचिनी साधना - प्रयोग 6 एवं 7

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प्रयोग - 6
इस प्रयोग में साधक को लाल वस्त्र पहनकर रात को घी का दीपक जलाकर नित्य 10 हजार मंत्र का जप करना चाहिए। इस प्रकार 21 दिन तक मंत्र का जप करने से कर्णपिशाचिनी साधना सिद्ध हो जाती है। पाठकों से निवेदन है कि किसी भी प्रकार का प्रयोग आजमाने से पूर्व वेबदुनिया पोर्टल में वर्णित कर्णपिशाचिनी साधना प्रयोग अवश्य पढ़ें।

मंत्र - ओम् भगवति चंडकर्णे पिशाचिनी स्वाह ा

प्रयोग-7

कर्णपिशाचिनी के पूर्व में ‍वर्णित प्रयोगों की तुलना में यह प्रयोग सबसे अधिक पवित्र और महत्वपूर्ण है। कहा जाता है कि स्वयं वेद व्यास जी ने इस मंत्र को इसी विधि द्वारा सिद्ध किया था।

सबसे पहले आधी रात को (ठीक मध्यरात्रि) को कर्णपिशाचिनी देवी का ध्यान करें। फिर लाल चंदन (रक्त चंदन) से मंत्र लिखें। यह मंत्र बंधक पुष्प से ही पूजा जाता है। 'ओम अमृत कुरू कुरू स्वाहा' इस मंत्र से लिखे हुए मंत्र की पूजा करनी चाहिए। बाद में मछली की बलि देनी चाहिए ।

बलि निम्न मंत्र से दी जानी चाहि ए।

'' ओम कर्णपिशाचिनी दग्धमीन बलि
गृहण गृहण मम सिद्धि कुरू कुरू स्वाहा।''

रात्रि को पाँच हजार मंत्रों का जाप करें। प्रात: काल निम्नलिखित मंत्र से तर्पण किया जाता ह ै -

'' ओम् कर्णपिशाचिनी तर्पयामि स्वाहा''

कर्णपिशाचिनी मंत्र


'' ओम ह्रीं नमो भगवति कर्णपिशाचिनी चंडवेगिनी वद वद स्वाहा''

चेतावनी - यह मंत्र साधनाएँ आसान प्रतीत होती हैं किंतु इनके संपन्न करने पर मामूली सी गलती भी साधक के लिए घातक हो सकती है। साधक इन्हें किसी विशेषज्ञ गुरु के साथ ही संपन्न करें। पाठको ं क ो जानकार ी द ी जात ी ह ै क ि कर्णपिशाचिन ी साधन ा क े प्रयोगो ं क ी श्रृंखल ा अ ब संपूर् ण ह ो रह ी है।

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