जानिए भद्रा के दोष और दुष्प्रभाव से बचने का उपाय...

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* भद्रा तिथि के दोष और दुष्प्रभाव के उपाय... 

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शास्त्रों के अनुसार धरती लोक की भद्रा सबसे अधिक अशुभ मानी जाती है। तिथि के पूर्वार्द्ध की दिन की भद्रा कहलाती है। तिथि के उत्तरार्द्ध की भद्रा को रात की भद्रा कहते हैं। यदि दिन की भद्रा रात के समय और रात्रि की भद्रा दिन के समय आ जाए तो भद्रा को शुभ मानते हैं।
 
भद्रा का दूसरा नाम विष्टि करण है। कृष्ण पक्ष की तृतीया, दशमी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी, एकादशी के उत्तरार्द्ध में एवं कृष्ण पक्ष की सप्तमी व चतुर्दशी, शुक्ल पक्ष की अष्टमी व पूर्णमासी के पूर्वार्द्ध में भद्रा रहती है।
 
जिस भद्रा के समय चन्द्रमा मेष, वृषभ, मिथुन, वृश्चिक राशि में स्थित तो भद्रा का निवास स्वर्ग में होता है। यदि चन्द्रमा कन्या, तुला, धनु, मकर राशि में हो तो भद्रा पाताल में निवास करती है और कर्क, सिंह, कुंभ, मीन राशि का चन्द्रमा हो तो भद्रा का भूलोक पर निवास रहता है। 
 
यदि भद्रा के समय कोई अति आवश्यक कार्य करना हो तो भद्रा की प्रारंभ की 5 घटी, जो भद्रा का मुख होती है, अवश्य त्याग देना चाहिए।
 
भद्रा 5 घटी मुख में, 2 घटी कंठ में, 11 घटी हृदय में और 4 घटी पुच्छ में स्थित रहती है।
 

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जानिए भद्रा के 4 प्रमुख दोष :
 
• जब भद्रा मुख में रहती है, तो कार्य का नाश होता है।
 
• जब भद्रा कंठ में रहती है, तो धन का नाश होता है।
 
• जब भद्रा हृदय में रहती है, तो प्राण का नाश होता है।
 
• जब भद्रा पुच्छ में होती है, तो विजय की प्राप्ति एवं कार्य सिद्ध होते हैं।
 
भद्रा के दुष्प्रभावों से बचने का आसान उपाय है भद्रा के 12 नामों का जप करना-
 
धन्या दधमुखी भद्रा महामारी खरानना।
कालारात्रिर्महारुद्रा विष्टिश्च कुल पुत्रिका।
भैरवी च महाकाली असुराणां क्षयन्करी।
द्वादश्चैव तु नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्।
न च व्याधिर्भवैत तस्य रोगी रोगात्प्रमुच्यते।
गृह्यः सर्वेनुकूला: स्यर्नु च विघ्रादि जायते। 

 
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