12 अगस्त को है दूर्वा गणपति व्रत : श्री गणेश के दूर्वा मंत्र, करेंगे हर संकट का अंत

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Durva mantra

इस वर्ष 12 अगस्त, बुधवार को दूर्वा गणपति व्रत है। श्रावण महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को दूर्वा से भगवान श्री गणेश की विशेष पूजन की परंपरा है। इसे दूर्वा गणपति चौथ भी कहा जाता है। इस दिन गणेश जी को दूर्वा यानी विशेष तरह की हरी घास चढ़ाकर विशेष पूजा की जाती है। 
 
हमारे शास्त्रों में विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश जी की आराधना बहुत मंगलकारी मानी जाती है। उनके भक्त विभिन्न प्रकार से उनकी आराधना करते हैं। अनेक श्लोक, स्तोत्र, मंत्र तथा जाप द्वारा गणेशजी को मनाया जाता है। श्रावण शुक्ल तृतीया के दिन दूर्वा गणपति व्रत किया जाता है। इस दिन श्रीगणेश का पूजन कर उन्हें दूर्वा अर्पित करने का विशेष महत्व है। 
 
इसके अलावा प्रतिदिन भगवान गणेश को दूर्वा अर्पित की जानी चाहिए। अगर हर रोज न कर सकें तो भी घबराने की कोई बात नहीं, भगवान गणेश के कुछ खास दिनों में जैसे बुधवार, विनायकी चतुर्थी, संकष्टी चतुर्थी एवं श्रीगणेश चतुर्थी, गणेश जन्मो‍त्सव के दिन उन्हें विशेष तौर पर दूर्वा चढ़ाकर उनका पूजन-अर्चन करना चाहिए, ताकि हमारे जीवन के समस्त कष्टों का निवारण शीघ्र ही हो।

अपने जीवन की सभी संकटों से मुक्ति के लिए इस दिन शिव परिवार का पूजन करना लाभदायी माना गया है। इस दिन श्रीगणेश का पूजन करते समय निम्न मंत्र बोलकर गणेश जी को दूर्वा अर्पण करना चाहिए।
 
श्रीगणेश को दूर्वा अर्पण करने का मंत्र - 
 
* 'श्री गणेशाय नमः दूर्वांकुरान् समर्पयामि।' 
 
इस मंत्र के साथ श्री गणेश जी को दूर्वा चढ़ाने से जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति का मार्ग मिल जाता है और श्री गणेश अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उन्हें सुखी जीवन और संपन्नता का आशीर्वाद प्रदान करते है।

सुबह जल्दी उठकर नहाने के बाद गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लेकर 'श्री गणेशाय नमः दूर्वांकुरान् समर्पयामि मंत्र बोलते हुए भगवान श्रीगणेश की पूजा करें। 21 दूर्वा दल चढ़ाएं। गुड़ या बूंदी के 21 लड्डू का भोग लगाएं। इसके बाद आरती करें और फिर प्रसाद बांट दें। अंत में ॐ गं गणपतये नम: का 108 बार जाप करें। 

 
इसके साथ ही इन मंत्रों का जाप करना भी लाभदायी रहता है। 
 
ॐ गणाधिपाय नमः 
ॐ उमापुत्राय नमः 
ॐ विघ्ननाशनाय नमः 
ॐ विनायकाय नमः 
ॐ ईशपुत्राय नमः 
ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः 
ॐ एकदंताय नमः 
ॐ इभवक्त्राय नमः 
ॐ मूषकवाहनाय नमः 
ॐ कुमारगुरवे नमः

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