कौन होते हैं यक्ष-यक्षिणी? पढ़ें एक परिचय

पं. उमेश दीक्षित
शक्ति हमेशा पूज्य है, चाहे जैसी भी हो- धन बल, जन बल, राज बल, ज्ञान बल, शारीरिक बल इत्यादि। इनमें से सबसे प्रभावी धन बल है। जहां धन होगा, वहां बाकी शक्तियां एकत्रित की जा सकती हैं।

पुरुषार्थी पुरुष जीवन में प्रयास करते रहते हैं, लेकिन कुछ ही सफलता प्राप्त कर पाते हैं। सतयुग से आज तक एक से एक सफल व्यक्ति हुए हैं जिन्होंने कर्म व तपस्या द्वारा इतिहास में अपना महत्व दर्शाया है। तपस्या द्वारा देवताओं की कृपा प्राप्त की है। आज के समय में मनुष्य की उम्र अधिक नहीं है तथा शरीर भी कमजोर है अत: वह सैकड़ों वर्षों तक तपस्या नहीं कर सकता। अब इसका निदान तंत्रशास्त्र में है।

समझने की बात है कि कई लोक हैं जिनके देवी-देवता अलग-अलग लोक में रहते हैं तथा जिनकी दूरी अलग-अलग है। नजदीकी लोक में रहने वाले देवी-देवता शीघ्र प्रसन्न होते हैं, क्योंकि लगातार ठीक दिशा, समय, साधन का प्रयोग करने से मंत्रों की साइकल्स उस लोक में तथा ईष्टदेव तक पहुंचती है जिससे वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं तथा साधक की मनोकामना पूर्ण करते हैं।

भूत, प्रेम व ब्रह्म राक्षस इत्यादि हमारे आसपास ही रहते हैं तथा अल्प प्रयास से सिद्ध होते हैं। क्षेत्रपाल तथा भैरव भी हमारे नजदीकी वातावरण में रहते हैं। पितरों का भी एक लोक है तथा सबसे नजदीकी लोक यक्ष व यक्षिणियों का है। थोड़े प्रयास ही इन्हें प्रसन्न किया जा सकता है, केवल आवश्यकता है एक मार्गदर्शक की जिसे हम 'गुरु' कहते हैं।

यक्षिणी श्रेणी में यक्षिणी, योगिनी, अप्सरा, किन्नरी आते हैं। एक साधना कर्ण-पिशाचिनी भी है जिससे हम भूत व भविष्य का ज्ञान कर सकते हैं तथा दूसरों को बताकर अचंभित किया जा सकता है। तंत्र ग्रंथों में इनका विस्तार से वर्णन किया गया है। यक्षिणियां कई वनस्पतियों के नाम से जानी जाती हैं। अप्सराएं 8 हैं तथा 8 किन्नरी हैं। मुख्य कार्य धनप्राप्ति है, जो इन्हें प्रसन्न कर प्राप्त किया जा सकता है। योगिनियां भी 8 हैं।

कई बार प्रयास करने पर भी ये आती नहीं हैं तो इन्हें कुट्टन मंत्रों द्वारा जबरदस्ती बुलाया जाता है। नहीं भी सामने आएं, परंतु जीवन के कार्यों में सफलता दिलवाती रहती हैं। यंत्र या चित्रों का प्रयोग तथा स्थान विशेष पर किया गया जप-तप अवश्यमेव सफल रहता है।
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