हमारे पुराणों के ‘श्रीभृगु संहिता’ के सर्वारिष्ट निवारण खंड में इस अनुभूत सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र के 40 पाठ करने की विधि बताई गई है। इसके अनुसार यह पाठ किसी भी देवी-देवता की प्रतिमा या यंत्र के सामने बैठकर किया जा सकता है।
इस पाठ के पूर्व दीप-धूप आदि से पूजन कर इस स्तोत्र का पाठ करना फलदायी माना गया है। इस पाठ के अनुभूत और विशेष लाभ के लिए ‘स्वाहा’ और ‘नम:’ का उच्चारण करते हुए ‘घी (घृत) मिश्रित गुग्गुल’ से आहुतियां देना चाहिए। इस पाठ को करने से मनुष्य के जीवन की सभी बाधाओं का निवारण होता है।
शारिका भेदा महामाया पूर्णं आयु: कुरू। हेमवती मूलं रक्षा कुरू। चामुण्डायै देव्यै शीघ्रं विध्नं सर्वं वायु कफ पित्त रक्षां कुरू। मंत्र तंत्र यंत्र कवच ग्रह पीड़ा नडतर, पूर्व जन्म दोष नडतर, यस्य जन्म दोष नडतर, मातृदोष नडतर, पितृ दोष नडतर, मारण मोहन उच्चाटन वशीकरण स्तम्भन उन्मूलनं भूत प्रेत पिशाच जात जादू टोना शमनं कुरू। सन्ति सरस्वत्यै कण्ठिका देव्यै गल विस्फोटकायै विक्षिप्त शमनं महान् ज्वर क्षयं कुरू स्वाहा।।
सर्व सामग्री भोगं सप्त दिवसं देहि देहि, रक्षां कुरू क्षण क्षण अरिष्ट निवारणं, दिवस प्रति दिवस दु:ख हरणं मंगल करणं कार्य सिद्धिं कुरू कुरू। हरि ॐ श्रीरामचन्द्राय नम:। हरि ॐ भूर्भुव: स्व: चन्द्र तारा नव ग्रह शेषनाग पृथ्वी देव्यै आकाशस्य सर्वारिष्ट निवारणं कुरू कुरू स्वाहा।।