तंत्र शास्त्र का ज्ञान क्या है, जानिए 6 रहस्य...

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तंत्र, मंत्र और यंत्र में सबसे पहले तंत्र का ही उल्लेख है। तंत्र शब्द के अर्थ पर विवाद है। इसलिए हम इसके अर्थ, इसकी प्राचीनता और इसके ‍इतिहास के सवाल पर बात नहीं करते हैं। यहां तांत्रिकों से जोड़कर तंत्र का जो प्रचलित अर्थ या भाव समझा जाता है उसे ही समझे।
दरअसल तंत्र शब्द योग शब्द के समान है, जैसे हर तरह की दर्शन के आगे योग लगा दिया जाता है उसी तरह तंत्र भी। उदाहरणार्थ सांख्य योग को सांख्य तं‍त्र भी कहा जा सकता है। तंत्र को आप सिद्धांत शब्द के समान समझ सकते हैं। तंत्र का मांस, मदिरा और संभोग से किसी भी प्रकार का संबंध नहीं है, जो व्यक्ति इस तरह के घोर कर्म में लिप्त है, वह कभी तांत्रिक नहीं बन सकता। तंत्र को इसी तरह के लोगों ने बदनाम कर दिया है। 
 
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तंत्र एक रहस्यमयी विद्या है। हिन्दू धर्म के साथ ही बौद्ध और जैन धर्म में भी इस विद्या का प्रचलन है। तंत्र को मूलत: शैव आगम शास्त्रों से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन इसका मूल अथर्ववेद में पाया जाता है। तंत्र शास्त्र 3 भागों में विभक्त है आगम तंत्र, यामल तंत्र और मुख्‍य तंत्र। तंत्र शास्त्र के मंत्र और पूजा अलग किस्म के होते हैं। आओ जानते हैं कि क्या है तंत्र मार्ग...
 
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तंत्र और अस्त्र-शस्त्र : तंत्र विद्या के माध्‍यम से व्यक्ति अपनी आत्मशक्ति का विकास करके कई तरह की शक्तियों से संपन्न हो सकता है। यही तंत्र का उद्देश्य है। तंत्र के माध्यम से ही प्राचीनकाल में घातक किस्म के हथियार बनाए जाते थे, जैसे पाशुपतास्त्र, नागपाश, ब्रह्मास्त्र आदि।
इसी तरह तंत्र से ही सम्मोहन, त्राटक, त्रिकाल, इंद्रजाल, परा, अपरा और प्राण विद्या का जन्म हुआ है। इसी तरह मनुष्य से पशु बन जाना, गायब हो जाना, एकसाथ 5-5 रूप बना लेना, समुद्र को लांघ जाना, विशाल पर्वतों को उठाना, करोड़ों मील दूर के व्यक्ति को देख लेना व बात कर लेना जैसे अनेक कार्य ये सभी तंत्र की बदौलत ही संभव हैं। 
 
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तंत्र परंपरा : तंत्र के प्रथम उपदेशक भगवान शंकर और उसके बाद भगवान दत्तात्रेय हुए हैं। बाद में 84 सिद्ध, योगी, शाक्त और नाथ परंपरा का प्रचलन रहा है। इस परंपरा में गुरु गोरखनाथ और नवनाथों को उल्लेख करना जरूरी है। गोरखनाथ के गुरु मत्स्येंद्रनाथ।

यहां ऐसे हजारों तांत्रिकों के नाम गिनाए जा सकते हैं जिन्होंने तंत्र को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया और सिद्धि एवं मोक्ष प्राप्त करने नए नए मार्ग खोजे। 
 
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तंत्र विज्ञान- जिसमें यंत्रों के स्थान पर मानव अंतराल में रहने वाली विद्युत शक्ति को कुछ ऐसी विशेषता संपन्न बनाया जाता है जिससे प्रकृति से सूक्ष्म परमाणु उसी स्थिति में परिणित हो जाते हैं जिसमें कि मनुष्य चाहता है।

पदार्थों की रचना, परिवर्तन और विनाश का बड़ा भारी काम बिना किन्हीं यंत्रों की सहायता के तंत्र द्वारा हो सकता है। विज्ञान के इस तंत्र भाग को 'सावित्री विज्ञान' तंत्र-साधना, वाममार्ग आदि नामों से पुकारते हैं। तंत्र-शास्त्र में जो पंच प्रकार की साधना बतलाई गई है, उसमें मुद्रा साधन बड़े महत्व का और श्रेष्ठ है। मुद्रा में आसन, प्राणायाम, ध्यान आदि योग की सभी क्रियाओं का समावेश होता है।
 
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तंत्र साधनाएं : हर तरह की साधना का एक तंत्र पक्ष भी होता है। तंत्र शास्त्र के रचयिता एवं वक्ता आदिनाथ भगवान शिव कहे गए हैं किसी न किसी रूप में सभी हिंदू समाज इस मान्यता को मानते हैं। हालांकि कुछ लोग इससे इत्तेफाकर रखते हैं।
इसके अलावा भैरव, वीर, यक्ष, गंधर्व, सर्प, किन्नर, विद्याधर, दस महाविद्या, पिशाचिनी, योगिनी, यक्षिणियां आदि सभी तंत्रमार्गी देवी और देवता हैं। देखा गया है कि कई तांत्रिकों के मसान, पिशाच, भैरव, छाया, पुरुष, से बड़ा, ब्रह्मराक्षस, वेताल, कर्ण-पिशाचनी, त्रिपुरी-सुन्दरी, कालरात्रि, दुर्गा आदि की सिद्धि होती है। लेकिन यह कहां तक सही है यह हम नहीं जानते।
 
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कैसी होती है तंत्र साधनाएं : तंत्र साधना में शांति कर्म, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन और मारण नामक छ: तांत्रिक षट् कर्म होते हैं। इसके अलावा नौ प्रयोगों का वर्णन मिलता है:- मारण, मोहनं, स्तंभनं, विद्वेषण, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण, यक्षिणी साधना, रसायन क्रिया तंत्र के ये नौ प्रयोग हैं।
उक्त सभी को करने के लिए अन्य कई तरह के देवी-देवताओं की साधना की जाती है। अघोरी लोग इसके लिए शिव साधना, शव साधना और श्मशान साधना करते हैं। बहुत से लोग भैरव साधना, नाग साधना, पैशाचिनी साधना, यक्षिणी साधा या रुद्र साधना करते हैं।
 
हालांकि इसका एक निम्न स्तर भी है। जैसे इस विद्या के माध्यम से नजर लगना, उन्माद भूतोन्माद, ग्रहों का अनिष्ट, बुरे दिन, किसी के द्वारा प्रेरित अभिचार, मानसिक उद्वेग आदि को शांत करना भी होता है। शारीरिक रोगों के निवारण, सर्प, बिच्छू आदि का दर्शन एवं विषैले फोड़ों का समाधान भी तंत्र द्वारा किए जाने का दावा किया जाता है।  
 
लेकिन विद्वानों का मत है कि तांत्रिक साधना का मूल उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना है। इसके लिए अंतर्मुखी होकर साधनाएं की जाती हैं। तांत्रिक साधना को साधारणतया 3 मार्ग- वाम मार्ग, दक्षिण मार्ग और मध्यम मार्ग कहा गया है।
 
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तंत्र और नारी : यह माना जाता है कि तंत्र साधना में नारी का होना जरूरी है। लेकिन यह कितना उचित है यह हम नहीं जानते। हालांकि बहुत से तांत्रिक नारी के बगैर भी यह साधना करते हैं, क्योंकि इसकी अनिवार्यता स्वीकार नहीं की गई है।
यह आकर्षण ही कामशक्ति है जिसे तंत्र में आदिशक्ति कहा गया है। यह परंपरागत पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) में से एक है। तंत्र शास्त्र के अनुसार नारी इसी आदिशक्ति का साकार प्रतिरूप है। षटचक्र भेदन व तंत्र साधना में स्त्री की उपस्थिति स्वीकार्य है, क्योंकि साधना स्थूल शरीर द्वारा न होकर सूक्ष्म शरीर द्वारा ही संभव है।

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