महामृत्युंजय मंत्र के जप के लिए निम्नलिखित कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए। महामृत्युंजय जप अनुष्ठान शास्त्रीय विधि-विधान से करना चाहिए। मनमाने ढंग से करना या कराना हानिप्रद हो सकता है। मंत्र का जप शुभ मुहूर्त में प्रारंभ करना चाहिए जैसे महाशिवरात्रि, श्रावणी सोमवार, प्रदोष (सोम प्रदोष अधिक शुभ है), सर्वार्थ या अमृत सिद्धि योग, मासिक शिवरात्रि (कृष्ण पक्ष चतुर्दशी) अथवा अति आवश्यक होने पर शुभ लाभ या अमृत चौघड़िया में किसी भी दिन।
जिस जातक के हेतु इस मंत्र का प्रयोग करना हो, उसके लिए शुक्ल पक्ष में चंद्र शुभ तथा कृष्ण पक्ष में तारा (नक्षत्र) बलवान होना चाहिए।
जप के लिए साधक या ब्राह्मण को कुश या कंबल के आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा में मुख करके बैठना चाहिए।
महामृत्युंजय मंत्र की जप संख्या की गणना के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करना चाहिए।
मंत्र जप करते समय माला गौमुखी के अंदर रखनी चाहिए।
जिस रोगी के लिए अनुष्ठान करना हो,
‘ॐ सर्वं विष्णुमयं जगत्’ का उच्चारण कर उसके नाम और गोत्र का उच्चारण कर
‘ममाभिष्ट शुभफल प्राप्त्यर्थं श्री महामृत्युंजय रुद्र देवता प्रीत्यर्थं महामृत्युंजय मंत्र जपं करिष्ये।’ कहते हुए अंजलि से जल छोड़ें।
महामृत्युंजय मंत्र की जप संख्या सवा लाख है।
एक दिन में इतनी संख्या में जप करना संभव नहीं है। अतः प्रतिदिन प्रति व्यक्ति एक हजार की संख्या में जप करते हुए 125 दिन में जप अनुष्ठान पूर्ण किया जा सकता है।
आवश्यक होने पर 5 या 11 ब्राह्मणों से इसका जप कराएं तो ऊपर वर्णित जप संख्या शीघ्र पूर्ण हो जाएगी।
सामान्यतः यह जप संख्या कम से कम 45 और अधिकतम 84 दिनों में पूर्ण हो जानी चाहिए।
प्रतिदिन की जप संख्या समान अथवा बढ़ते हुए क्रम में होनी चाहिए।
जप संख्या पूर्ण होने पर उसका दशांश हवन करना चाहिए अर्थात 1,25,000 मंत्रों के जप के लिए 12, 500 मंत्रों का हवन करना चाहिए और यथा शक्ति पांच ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।
महामृत्युंजय जप के लिए पार्थिवेश्वर की पूजा का विधान है। यह सभी कार्यों के लिए प्रशस्त है।
रोग से मुक्ति के लिए तांबे के शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए।
लक्ष्मी प्राप्ति के लिए पारद शिवलिंग की पूजा सर्वश्रेष्ठ मानी गई है।
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