श्रीयंत्र उपासना के नियम

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श्रीयंत्र उपासना के तीन मत हैं, हयग्रीव, आनंद भैरव और दक्षिणा मूर्ति, सभी मतों की उपासना विधि का वर्णक करना कठिन नहीं है, लेकिन विस्तार का भय है।

श्रीविद्या की उपासना ही श्रीयंत्र की उपासना है। श्रीविद्या पंचदशाक्षरी बीज मंत्रों से ही श्रीयंत्र बना है। श्रीयंत्र की उपासना का विधान तो बहुत ही लंबा है। श्रीचक्र बाजार से लेकर दर्शन करने से उसका कोई फल नहीं है।

जब तक प्राण-प्रतिष्ठा न की गई हो। गुरु परंपरा से न बनाया गया हो। तांत्रिक अनुष्ठान की विधि पूर्ण होना आवश्यक है। यंत्र का वजन सही हो। रेखाएं साफ हों, तभी दर्शन का फल है।

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प्राण-प्रतिष्ठित श्रीयंत्र को लें। पंचोपचार से पूजन करने के बाद इस यंत्र को पूर्ण ब्रह्मांड जानें, और अपने शरीर को भी वही जानें, फिर एकाग्रता के साथ शुद्ध घी के दीप की लौ का दर्शन करें और इस श्लोक का नित्य 1000 बार उच्चारण करें।

यंत्र प्रत्यक्ष हो, यंत्र के मध्य बने बिंदु को देखते हुए यह कार्य होना चाहिए। यह क्रिया 45 दिन तक लगातार हो।

भवानि त्वं दासे मयि वितर दृष्टिं सकरुणा-
मि‍ति स्तोतुं वाञ्छन कथयंति भवानि त्वमिति य:।
तदैव त्वं तस्मै दिशसि निज सायुज्यपदवीं
मुकुन्दब्रह्मेन्द्रस्फुटमकुटनीराजितपदाम।।

यह अनुभूत प्रयोग है।
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