पुष्यानुग चूर्ण

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महिलाओं के गर्भाशय एवं योनि प्रदेश से संबंधित व्याधियों के लिए पुष्यानुग चूर्ण अत्यंत लाभकारी है।

केसर के स्थान पर नागकेसर डालकर बनाया गया योग पुष्यानुग चूर्ण नंबर 2 कहलाता है। यह नंबर 2 वाला योग नागकेसरयुक्त भी कहलाता है।

इस योग की विशेषता यह है कि यह अकेला ही सभी प्रकार के प्रदर रोगों के अलावा गर्भाशय शोथ, गर्भाशयभ्रंश, योनिक्षत आदि कई रोगों को दूर करता है।

योग : पाठा, जामुन और आम की गुठली की गिरि, पाषाण भेद, रसौत, अंबष्ठा, मोचरस, मजीठ, कमलकेसर, नागकेसर (केसर की जगह), अतीस, नागरमोथा, बेलगिरि, लोध, गेरू, कायफल, काली मिर्च, सोंठ, मुनक्का, लाल चन्दन, सोना पाठा (श्योनाक या अरलू) की छाल, इन्द्र जौ, अनंत मूल, धाय के फूल, मुलहठी और अर्जुन की छाल। सबको अलग-अलग कूट-पीसकर महीन चूर्ण कर कपड़े से छान लें। सभी को 10-10 ग्राम मात्रा (याने समान वजन) में लेकर मिला लें।

मात्रा : आधा-आधा चम्मच (छोटा) यानी लगभग 2-3 ग्राम मात्रा में चूर्ण शहद में मिलाकर सुबह-शाम चाट लें और ऊपर से एक कप चावल का धोवन पी लें।

लाभ : इस योग के सेवन से योनि रोग, योनि में जलन, योनि में घाव एवं सूजन, सब प्रकार के प्रदर, गर्भाशय पर सूजन, गर्भाशय का सरक जाना, योनि मार्ग से किसी प्रकार का स्राव होना आदि सभी नारी रोग दूर होते हैं।

* लाभ होने तक इस योग का नियमित सेवन करना चाहिए।

* यह योग घर पर बना पाना थोड़ा कठिन है अतः इसे बना-बनाया खरीद लेना चाहिए। इस योग का सेवन करते हुए योनि की धुलाई-सफाई करने के लिए 'डूश' करते रहने से जल्दी लाभ होता है।

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