श्लीपद या हाथी पांव

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जिस रोग के प्रभाव से एक या दोनों पैर हाथी के पैर जैसे मोटे हो जाएं, उस रोग को श्लीपद रोग कहते हैं। अंग्रेजी में इसे एलिफेण्टिएसिस या फाइलेरिया कहते हैं।

यह रोग उन स्थानों के निवासियों में ज्यादातर होता है, जिन स्थानों में जल का प्रभाव ज्यादा हो, जहां वर्षा ज्यादा समय तक ज्यादा मात्रा में होती हो, शीतलता ज्यादा रहती हो, जहां के जलाशय गन्दे हों।

इस रोग को उत्पन्न करने में फाइलेरिया नाम का एक कीटाणु कारण होता है अतः इस रोग को फाइलेरिया भी कहते हैं। यह रोग मुख्यतः बिहार, बंगाल, पूर्वी प्रान्तों, केरल और मलाबार प्रदेशों में ज्यादातर होता पाया गया है। आयुर्वेद ने इसके तीन प्रकार बताए हैं-

वातज श्लीपद : वात के कुपित होने पर हुए श्लीपद रोग में त्वचा रूखी, मटमैली, काली और फटी हुई हो जाती है, तीव्र पीड़ा होती है, अकारण दर्द होता रहता है एवं तेज बुखार होता है।

पित्तज श्लीपद : इसमें कुपित पित्त का प्रभाव रहता है। रोगी की त्वचा पीली व सफेद हो जाती है, नरम रहती है और मन्द-मन्द ज्वर होता रहता है।

कफज श्लीपद : इसमें कफ कुपित होने का प्रभाव होता है। त्वचा चिकनी, पीली, सफेद हो जाती है, पैर भारी और कठोर हो जाता है। ज्वर होता भी है और नहीं भी होता।

इन तीन भेदों के अलावा एक भेद और होता है, जिसे 'असाध्य श्लीपद' कहते हैं। रोग दो वर्ष से अधिक पुराना हो गया हो, बहुत बढ़ चुका हो और पैर से स्राव निकलता हो तो ऐसी स्थिति में इसे 'असाध्य श्लीपद' यानी लाइलाज कहा जाएगा, ऐसा आयुर्वेद का मत है।

इसकी चिकित्सा सरल नहीं है, इस रोग के प्रारम्भिक लक्षण प्रकट होते ही उचित उपाय शुरू कर देना चाहिए।

घरेलू उपचार

(1) धतूरा, एरण्ड की जड़, सम्हालू, सफेद पुनर्नवा, सहिजन की छाल और सरसों, इन सबको समान मात्रा में पानी के साथ पीसकर गाढ़ा लेप तैयार करें। इस लेप को श्लीपद रोग से प्रभावित अंग पर प्रतिदिन लगाएं। इस लेप से धीरे-धीरे यह रोग दूर हो जाता है।

(2) चित्रक की जड़, देवदार, सफेद सरसों, सहिजन की जड़ की छाल, इन सबको समान मात्रा में, गोमूत्र के साथ, पीसकर लेप करने से धीरे-धीरे यह रोग दूर हो जाता है।

(3) बड़ी हरड़ को एरण्ड (अरण्डी) के तेल में भून लें। इन्हें गोमूत्र में डालकर रखें। यह 1-1 हरड़ सुबह-शाम खूब चबा-चबाकर खाने से धीेरे-धीरे यह रोग दूर हो जाता है। यह प्रयोग ऊपर बताए हुए किसी भी लेप को लगाते हुए किया जा सकता है।

(4) नित्यानंद रस, आरोग्यवर्द्धिनी और मेदोहर गुग्गुलु, तीनों की 1-1 गोली सुबह, दोपहर और शाम को पानी के साथ लें और निम्नलिखित लेप तैयार कर प्रतिदिन लेप करें-

हल्दी, आंवला, अमरबेल, सरसों, अपामार्ग, रसोई घर की दीवारों पर जमा हुआ धुआं, सबको समभाग मिलाकर पीस लें, इस लेप को श्लीपद पर लगाएं। उत्तम गुणकारी लेप है। इन उपायों में से कोई भी एक लेप और खाने की औषधियों को धैर्यपूर्वक सेवन करने से यह रोग मिटाया जा सकता है।

परहेज : लहसुन, पुराने चावल, कुल्थी, परबल, सहिजन की फली, अरण्डी का तेल, गोमूत्र तथा सादा-सुपाच्य ताजा भोजन। उपवास, पेट साफ रखना।

* दूध से बने पदार्थ, गुड़, मांस, अंडे तथा भारी गरिष्ट व बासे पदार्थों का सेवन न करें। आलस्य, देर तक सोए रहना, दिन में सोना आदि से बचें।

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