आयुर्वेद बचाए बाईपास सर्जरी से

रमेशचन्द्र शांडिल्य, आयुर्वेद रत्न

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भारत में शल्य चिकित्सा (सर्जरी) का चरम विकास आज से लगभग 5 हजार वर्ष पुर्व सुश्रुत काल में मिलता है। काशी के राजा दिवोदास जिन्हें धन्वन्तरी भी कहते है ं, शल्यक्रिया के सफल चिकित्सक थे।

वर्तमान काल में उनके अनुयायी योगरत्नाकर ने सुश्रुत के आधार पर लिखा हैं कि वातपित्त कफादि दोष विगुण होकर(घट-बढकर) रस (रक्त में स्थित रक्त कणों के अतिरिक्त जो कुछ हैं) को दुषित कर के ह्दय में जाकर रूकावट उत्पन्न करते हैं। अर्थांत ह्रदय को रक्त प्रदान करने में बाधा डालते हैं।

यह सत्य है कि, सुश्रुतकाल में शल्यक्रिया के उपकरण आज के समान सुक्ष्म और कारगर नहीं थे। एनस्थेशिया भी आज जैसा विकसित नहीं था अतः ह्रदय की धमनियों की शल्य क्रिया प्राय: नही होती थी। परंतु अनुभव के आधार पर और आयुर्वेद के विद्वानों के मत से यह कहा जा सकता है कि शल्यक्रिया की आवश्यकता ही नहीं थी। इनमें से अधिकतर विद्वान गुप्तकाल एव हर्षवर्धन काल के थे।

इसी विचारधारा की पुष्टि के लिए भावमिश्र महाराजा रणजीतसिंह कालीन प्रसिद्ध विद्वान ने लिखा हैं कि - कफप्रधान वातादी दोष रस के स्त्रोत धमनियों को अवरूद्ध कर सभी धातुओं को क्षय कर देते है। अर्थात ह्रदय के उस भाग को जिसे ये धमनियाँ रक्त पहुँचाती हैं - निष्क्रिय कर देती हैं।

शल्य क्रिया की आवश्यकता से बचा जा सके उसके लिए तीन औषधियाँ प्रमुख हैं - शिलाजीत, अर्जुन और बला। इनका सेवन कम से कम एक वर्ष करने से अच्छा परिणाम मिलता है। वैसे तो इनका सेवन अजीवन भी कर सकते हैं उससे कोई हानि नहीं होगी। लाभ ही मिलेगा।

शिलाजीत : भारतीय जड़ी-बूटियों में शिलाजीत का एक विशिष्ट स्थान है। आयुर्वेद ने शिलाजीत की बहुत प्रशंसा की है और इसकी गुणवत्ता को प्रतिष्ठित किया है। यह बलपुष्टिकारक, ओजवर्द्धक, दौर्बल्यनाशक है । अधिकांश आयुर्वेदिक नुस्खों में शिलाजीत का प्रयोग किया जाता है।

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इसकी एक बहुत बड़ी विशेषता यह है कि यह सिर्फ रोग ग्रस्त का रोग दूर करने के लिए ही उपयोगी नहीं है, बल्कि स्वस्थ व्यक्ति के लिए भी उपयोगी है। इसे यौन दौर्बल्य यानी नपुंसकता से पीड़ित विवाहित व्यक्ति ही नहीं, अविवाहित युवक भी सेवन कर सकता है।

विशेषकर मधुमेह, धातु क्षीणता, बहुमूत्र, स्वप्नदोष, सब प्रकार के प्रमेह, नपुंसकता, शरीर की निर्बलता, वृद्धावस्था की निर्बलता आदि व्याधियों को दूर करने के लिए शिलाजीत उत्तम गुणकारी सिद्ध होती है।

ऐसा कोई साध्य रोग नहीं है, जिसे उचित समय पर, उचित योगों के साथ विधिपूर्वक किया गया शिलाजीत का प्रयोग नष्ट न कर सके। शिलाजीत सब प्रकार की व्याधियों को नष्ट करने के लिए प्रसिद्ध है।

अर्जुन : इसका मुख्य उपयोग हृदय रोग के उपचार में किया जाता है। यह हृदय रोग की महाऔषधि माना जाता है। इसके अलावा इसका उपयोग रक्तपित्त, प्रमेह, मूत्राघात, शुक्रमेह, रक्तातिसार तथा क्षय और खाँसी में भी लाभप्रद रहता है।

बला : जिसे खिरैटी भी कहते हैं, यह जड़ी-बूटी वाजीकारक एवं पौष्टिक गुण के साथ ही अन्य गुण एवं प्रभाव भी रखती है अतः यौन दौर्बल्य, धातु क्षीणता, नपुंसकता तथा शारीरिक दुर्बलता दूर करने के अलावा अन्य व्याधियों को भी दूर करने की अच्छी क्षमता रखती है।

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