कान का मवाद न करें अनदेखा

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- डॉ. डीपी अग्रवा ल

मनुष्य के कान एक महत्वपूर्ण ज्ञानेंद्रिय हैं, जो मुख्यतः दो कार्य करते हैं :

1. सुनना या शब्द श्रवण

2. शरीर को बैलेंस करना

कान के शरीर रचना की दृष्टि से तीन भाग हैं : (1) बाह्य कर्ण, (2) मध्य कर्ण व (3) अंतःकर्ण।

अंतःकर्ण की रचनाओं में विकार आने पर प्रमुखतः चक्कर आना, चलने में परेशानी एवं उल्‍टी होना या उल्‍टी होने की इच्छा होना तथा विभिन्न प्रकार की आवाजें कान में आना जैसे लक्षण सामने आते हैं। कान के प्रत्येक अंग की सामूहिक ठीक क्रिया के द्वारा मनुष्य ठीक प्रकार से सुनता है। इन अंगों में से कान के पर्दे से लेकर मध्य कर्ण एवं अंतःकर्ण के अंगों में विकार होने पर विभिन्न प्रकार की श्रवणहीनता की स्थिति उत्पन्न होती है।

सामान्यतः कान से मवाद आने को मरीज गंभीरता से नहीं लेता, इसे अत्यंत गंभीरता से लेकर विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श एवं चिकित्सा अवश्य लेना चाहिए अन्यथा यह कभी-कभी गंभीर व्याधियों जैसे मेनिनजाइटिस एवं मस्तिष्क के एक विशेष प्रकार के कैंसर को उत्पन्न कर सकता है। कान में मवाद किसी भी उम्र में आ सकता है, किंतु प्रायः यह एक वर्ष से छोटे बच्चों या ऐसे बच्चों में ज्यादा होता है जो माँ की गोद में ही रहते हैं। तात्पर्य स्पष्ट है जो बैठ नहीं सकते या करवट नहीं ले सकते। कान से मवाद आने का स्थान मध्य कर्ण का संक्रमण है। मध्य कर्ण में सूजन होकर, पककर पर्दा फटकर मवाद आने लगता है। मध्य कान में संक्रमण पहुँचने के तीन रास्ते हैं, जिसमें 80-90 प्रश कारण गले से कान जोड़ने वाली नली है। इसके द्वारा नाक एवं गले की सामान्य सर्दी-जुकाम, टांसिलाइटिस, खाँसी आदि कारणों से मध्य कर्ण में संक्रमण पहुँचता है।

बच्चों की गले से कान को जोड़ने वाली नली चूँकि छोटी एवं चौड़ी होती है, अतः दूध पिलाने वाली माताओं को हमेशा बच्चे को गोद में लेकर
अंतःकर्ण की रचनाओं में विकार आने पर प्रमुखतः चक्कर आना, चलने में परेशानी एवं उल्‍टी होना या उल्‍टी होने की इच्छा होना तथा विभिन्न प्रकार की आवाजें कान में आना जैसे लक्षण सामने आते हैं
सिर के नीचे हाथ लगाकर, सिर को थोड़ा ऊपर उठाकर ही बच्चे को दूध पिलाना चाहिए। ऐसी माताएँ जो लेटे-लेटे बच्चो को दूध पिलाती हैं उन बच्चों में भी कान बहने की समस्या उत्पन्न होने की ज्यादा आशंका रहती है।

आयुर्वेदीय दृष्टि से सर्दी-जुकाम आदि हों तो निम्न उपाय तत्काल प्रारंभ कर देना चाहिए। सरसों के तेल को गर्म कर पेट, पीठ, छाती, चेहरे, सिर पर सुबह-शाम मालिश कर दो-दो बूँद सरसों तेल नाक के दोनों छिद्रों में डालना चाहिए।

एक कप पानी उबालकर उसमें चुटकीभर नमक डालकर छानकर रखें तथा यह नमक मिला पानी ड्रॉपर से नाक में 2-2 बूँद 3-4 बार डालना चाहिए, जिससे नाक तत्काल खुल जाती है। संजीवनी वटी (125 मिग्रा), छः माह से छोटे बच्चों को चौथाई गोली सुबह-शाम तथा छः माह से एक वर्ष के बच्चों को आधी-आधी गोली सुबह-शाम शहद एवं अदरक के रस के साथ मिलाकर देने से सर्दी ठीक होती है। सर्दी-जुकाम ही बच्चों में कान बहने का एक प्रमुख कारण है, अतः उसकी चिकित्सा परम आवश्यक है।

यदि कान बहने ही लगें तो-साफ रुई लगी काड़ी से कान को दिन में तीन-चार बार साफ कर गुलाब जल या समुद्र फेन चूर्ण कान में डालते हुए सर्दी-जुकाम आदि हेतु वर्णित चिकित्सा भी अवश्य करना चाहिए। प्रायः 10-15 दिनों में कान बहना बंद होकर कान का पर्दा भी फिर सेजुड़ जाता है, किंतु बारम्बार जुकाम या अन्य कारणों से कान बहे तो कान के पर्दे का यदि अधिकतर भाग नष्ट हो जाए तो बच्चे की सुनाई देने की क्षमता प्रभावित होकर बहरापन भी उत्पन्न होता ह ै, अतः छोटे बच्चे जो बैठ नहीं सकते, उनकी सर्दी-जुकाम आदि की चिकित्सा तुरंत कराते हुए सावधानी रखना चाहिए।
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