कमीशन में गवाही : डॉक्टर टीसी बनर्जी का परिवार भी गुमनामी बाबा के संपर्क में रहा और उनके बेटे डॉक्टर पी बनर्जी और बहू रीटा बनर्जी ने नेताजी की मौत की जांच कर चुके जस्टिस मुख़र्जी के नेतृत्व में बने 'मुख़र्जी कमीशन' में इस बात की गवाही भी दी थी।
अयोध्या के राम किशोर पंडा, बस्ती के राजघराने के कुछ सदस्य और कुछ बंगाली परिवार भी इनके संपर्क में रहे। हैरानी की बात ये भी है कि जिस रामभवन के पीछे वाले हिस्से में इनका निधन हुआ उसके निवासी शक्ति सिंह ने भी कभी इनकी शक्ल तक नहीं देखी।
हालांकि शक्ति सिंह ने बताया जरूर कि, 'इनका सामान देखकर यही लगा था कि यह कोई साधारण व्यक्ति नहीं बल्कि नेताजी ही हो सकते थे।'
कहानी के अंत में पाठकों को बताना अनिवार्य है कि गुमनामी बाबा के सामान में जो किताबें या खत मिले वह इशारा किस ओर करते हैं। अगर यह व्यक्ति नेताजी सुभाष चंद्र बोस नहीं भी था तो यह उनका कोई हमशक्ल भी नहीं हो सकता है। वजह है इनके पास से मिली किताबों और अखबारों का जखीरा।
गुमनामी बाबा की टिप्पणियां : ख़ास बात यही है कि इन सभी पर गुमनामी बाबा ने नोट बनाए हुए हैं या टिप्पणियां की हुई हैं। मसलन, भारत-चीन युद्ध पर लिखी गई किताब 'हिमालयन ब्लंडर' के पन्नों पर जहां भारतीय जनरलों का जिक्र है वहां लिखी एक टिप्पणी कहती है, 'नेहरु आपने यह गलती क्यों की, इस जनरल में कमान संभालने की क्षमता नहीं थी।'
नेहरु-गांधी परिवार पर अनेकों दस्तावेज और टिप्पणियां भी इस व्यक्ति के पास से बरामद हुईं हैं। ऐसी कई घटनाओं का जिक्र भी गुमनामी बाबा अपने कुछ भक्तों से किया करते थे जिनका ताल्लुक द्वितीय विश्व युद्ध और जापान की हार से था।
1985 में हुई इनकी मौत के बाद इनके पास से कोलकाता, दिल्ली और दूसरे शहरों की कई दुकानों की रसीदें भी बरामद हुईं जो दर्शाती है कि इनके पास धनदौलत की कभी कमी नहीं रही और इनकी पसंद शाही थी।
गुमनामी बाबा से मिल चुकीं श्रीमती रीटा बनर्जी जब मेरे ससुर की पहली बार भगवानजी से मुलाकात हुई तब उनकी आंखें फटी की फटी रह गईं। बाबा ने सिर्फ यही कहा कि आप यहां से निकलकर किसी से कुछ नहीं कहिएगा।
डॉक्टर टीसी बनर्जी ने उनसे कहा मेरे बताने से क्या होगा, कोई क्यों मानेगा की आप कौन हैं। बाबा ने जवाब दिया कि हां, मैं अब एक रजिस्टर्ड सन्यासी हूं और दुनिया के रजिस्टर से मेरा नाम काट दिया गया है।
मेरी जब भी उनसे मुलाकात हुई वह मुझसे बंगला में ही बात करते थे और किसी से नहीं। उनके पास दुनिया भर के तमाम किस्से होते थे जो मेरे स्वर्गीय पति डॉक्टर पी बनर्जी को बताते थे। मैंने उनके लिए खाना भी बनाया था एक दफा और उन्हें दो बंगला व्यंजन बहुत पसंद थे।
जब हमारा परिवार उनसे पहली बार मिला तब उन्होंने अपने पलंग पर उठकर गोल चश्मा लगाकर हमारी आंख में देखा और कहा कि अच्छी तरह से देखो मैं सुभाष चंद्र बोस तो नहीं हूं।
हमारा शरीर थर-थर कांप रहा था और हमारे मुंह में जैसे जबान ही नहीं रही थी।