उत्साह के साथ आशंकाएँ भी

Webdunia
- आलोक कुमार (दिल्ली से)

BBC
आम तौर पर लोग 'नया साल बेहतर हो' की शुभकामनाएँ देते हैं, लेकिन इस बार ये महज अनुमान नहीं है बल्कि बेहतरी की शुरुआत हो चुकी है, कम से कम आर्थिक क्षेत्र में। पूरी दुनिया वर्ष 2008 के आर्थिक संकट से सकते में थी, लेकिन आर्थिक पटल पर छाया ग्रहण वर्ष 2009 में छँटने लगा और साल के खत्म होते-होते हर तरफ के आँकड़े उत्साहित करने वाले हैं।

हाँ दुबई वर्ल्ड के कर्ज संकट ने साल के आखिरी महीने में वित्त जगत को जरूर चिंता में डाल दिया, लेकिन ये गोल्डमैन सैक्स या एआईजी या फ्रेडी माय के दिवालिएपन से उत्पन्न वैश्विक संकट जैसा नहीं था।

सब प्राइम संकट से सबसे पहले वैश्विक आर्थिक संकट का संकेत देने वाला देश था अमेरिका, जिसने यूरोप और कुछ हद तक एशिया को भी संकट में डाल दिया। लेकिन स्थितियाँ बदल चुकी है, अमेरिका का जीडीपी डेढ़ फीसदी की गति से बढ़ रहा है। यूरोपीय संघ और जापान ने औपचारिक तौर पर मंदी से निकलने की घोषणा कर दी है।

उत्साह के साथ आशंका : इस दशक का आखिरी दशक यानी 2010 उत्साहों वाला साल है, लेकिन विश्लेषकों को ही नहीं बल्कि आम जनता को भी कई शंकाए हैं। ये भारत के लिए भी लागू होती है जो वैश्विक संकट से कमतर प्रभावित रहा और अब विकास पथ पर फिर तेज रफ्तार दौड़ रहा है।

आँकड़े इसके गवाह हैं। इस साल जनवरी से मार्च के बीच भारत की विकास दर 5.8 प्रतिशत रही। तब ये कहा जाने लगा कि नौ फीसदी विकास दर इतिहास बन चुका है। लेकिन स्थितियाँ इतनी तेजी से बदली कि इसकी अगली तिमाही यानी अप्रैल से जून के बीच यह दर बढ़कर 6.1 फीसदी हो गई और सितंबर के आखिर में 7.1 फीसदी।

पर इसके पीछे बड़ा हाथ है आर्थिक संकट के दौरान दिए गए आर्थिक प्रोत्हासन पैकेज का जो हजारों करोड़ रुपए का है। अब बदले हालात में इसे वापस लेने की चर्चा हो रही है।

सरकारी निवेश बढ़ने से सड़क निर्माण और राष्ट्रीय रोजगार गारंटी रोजगार योजना में तेजी आई। पैकेज के तहत कर कम किए जाने से कॉर्पोरेट जगत को फायदा पहुँचा। लेकिन जब ये सुविधाएँ वापस ली जाएगी तब क्या होगा। ये सवाल सबके जेहन में है।

भारत की चुनौतियाँ : प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी कह चुके हैं कि आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज को हमेशा के लिए जारी नहीं रखा जा सकता और जनवरी में इसकी समीक्षा होगी।

विश्लेषकों के मुताबिक इसके बाद ही पता चलेगा कि बिना आर्थिक मदद के विकास दर की गति बढ़ती है या नहीं। निजी क्षेत्र के लिए और बड़ी चुनौतियाँ खड़ी है खास कर निर्यात पर आश्रित ईकाइयों के लिए। भारत का निर्यात वर्ष 2009 में अक्टूबर तक लगातार गिरता रहा।

हालाँकि नवंबर में हालात सुधरी और निर्यात वृद्धि दर सकारात्मक हो गया। विकास की आड़ में एक चुनौती कृषि क्षेत्र से भी है। इस क्षेत्र में तीन फीसदी विकास दर पीछे काफी पीछे छूट गई है। इस साल तो हालत और खराब रही, क्योंकि मॉनसून ने दगा दे दिया और खाद्यान्न उत्पादन एक करोड़ दस लाख टन घटने की आशंका है।

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