ग्लेशियर के बारे में शोध का अभाव

Webdunia
- सुनील रामन (दिल्ली से)

BBC
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में ग्लेशियरों की सही स्थिति को बताने के लिए शोध और आँकड़ों का अभाव है। देश के जान े- माने ग्लेशियर मामलों के जानकार डॉक्टर इकबाल हसनैन जोर देकर कहते हैं कि अभी तक हमारे पास कोई आँकड़े मौजूद नहीं हैं जिससे यह पता चल सके कि ग्लेशियर कब और कैसे पिघल सकते हैं या नहीं।

टाटा एनर्जी एंड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट (टेरी) से जुड़े हसनैन कहते हैं, 'ग्लेशियरों का 10 वर्षों तक अध्ययन करने की जरूरत है। उपग्रहों से जो ग्लेशियरों की तस्वीर मिली है और हमारे पास जो आँकड़े मौजूद हैं उनकी तुलना की जानी चाहिए।'

वे कहते हैं कि अब तक जो शोध किए गए हैं उनमें महज छह महीने से एक साल के अध्ययन को आधार बनाया गया है। डॉक्टर इकबाल हसनैन और पर्वातारोही कमांडर सत्यव्रत डैम के साथ मैंने पश्चिमी हिमालय की यात्रा की।

इस यात्रा का उद्देश्य ऐसे ग्लेशियर की खोज करना था जिसका इस्तेमाल ग्लेशियर के अध्ययन के लिए लंबे समय तक किया जा सके। जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से लद्दाख की इस पंद्रह दिनों की यात्रा में हम 15 हजार मीटर की ऊँचाई पर स्थित ड्रूंगडोरोंग ग्लेशियर तक पहुँचे।

डॉक्टर हसनैन का कहना था कि ड्रूंगडोरोंग ग्लेशियर को गेलेशियरों के अध्ययन के लिए चुना जा सकता है। उन्होंने बताया कि वे अगले वर्ष यहाँ आकर इस ग्लेशियर पर यंत्र स्थापित करेंगे।

ड्रूंगडोरोंग ग्लेशियर की यात्रा : डॉक्टर हसनैन ने पिछले एक वर्ष के दौरान कश्मीर इलाके में मौजूद कोलाहाय ग्लेशियर और सिक्कम में मौजूद राथोंग ग्लेशियर के बारे में आंकड़े इकट्ठे करने के लिए इन ग्लेशियरों में यंत्र स्थापित किया है। यह यंत्र पूरे साल ग्लेशियर से संबंधित आँकड़े इकट्ठा करता है। इन आँकड़ों का इस्तेमाल ग्लेशियरों की स्थिति के बारे में पता लगाने में किया जाएगा।

हमने अपनी यात्रा के दौरान कई ग्लेशियरों को पार किया। जब हम नूनकून ग्लेशियर के नजदीक थे तब कमांडर डैम ने कहा, 'मैं पिछले वर्ष जुलाई में यहाँ आया था तबसे ग्लेशियर का मुहाना और पीछे चला गया है।'

कश्मीर विश्वविद्यालय के भूगर्भ विभाग के रहीम शाह ने बताया कि 10 वर्ष पहले ग्लेशियर से बनने वाली नदी दिखाई नहीं पड़ती थी, लेकिन अब इसे देखा जा सकता है।

कमांडर डैम का कहना था कि उन्हें पता नहीं कि इसे क्या कहें, लेकिन एक पर्वतारोही के रूप में उन्होंने जलवायु परिवर्तन का प्रभाव ग्लेशियर और पहाड़ों पर पड़ते हुए देखा है।

भारत, पाकिस्तान, नेपाल, चीन और भूटान में हिमालय के इर्द-गिर्द करीब 15 हजार ग्लेशियर हैं। कई अध्ययन बताते हैं कि अनेक ग्लेशियर पिघल रहे हैं या सिकुड़ रहे हैं जिससे ऊँचाई पर झीलों का निर्माण हो रहा है।

इन पहाड़ों के आस-पास रहने वाले समुदायों के लिए खतरा पैदा हो गया है। तीन हजार मीटर से ज्यादा की ऊँचाई पर रहने वाले समुदायों के लिए पानी की कमी हो गई है।

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