रोबोट लड़ेंगे आतंकवादियों से...

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भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थित सियाचिन में जितने सैनिक गोलीबारी से मरते हैं, उससे कहीं अधिक सैनिक वहां के प्रतिकूल मौसम की वजह से मारे जाते हैं।

हो सकता है कि भविष्य में ऐसा न हो, क्योंकि भविष्य में इंसानी सैनिकों की जगह रोबोट सैनिक ले सकते हैं। एक तरफ हम जहां ड्रोन (चालक रहित विमान) के युग में रह रहे हैं। वहीं दूसरी ओर हम रोबोट युग की ओर तेज़ी से कदम बढ़ा रहे हैं।

एक्स-47बी नामक एक ड्रोन बिना ग्राउंड पायलट के भी अच्छा प्रदर्शन कर रहा है और सटीक निशाने साध रहा है।

भविष्य के सैनिक : एक ऐसी मिसाइल प्रणाली भी है जो पैट्रियाट मिसाइल की ही तरह निशाने की पहचान कर उन पर हमला कर सकती है लेकिन ऐसा नहीं है कि हम पूरी तरह से सुसज्जित रोबोट सैनिक की ओर क़दम बढ़ा रहे हैं।

अटलांटा के जार्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी की प्रयोगशाला में बिछी कालीन पर प्रोफ़ेसर हेनरिक क्रिस्टीनेंसंस के रोबोट आतंकवादियों की तलाश कर रहे हैं। प्रोफ़ेसर हेनरिक क्रिस्टीनेंसंस और उनकी टीम रक्षा कंपनी बीएई सिस्टम की ओर से वित्तीय सहायता प्राप्त एक परियोजना पर काम कर रही है।

इसका उद्देश्य एक ऐसा मानवरिहत वाहन तैयार करना है जो दुश्मन के छिपने के ठिकानों का नक्शा बना सके और एक सुरक्षित दूरी से किसी मकान के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाने में सैनिकों की मदद कर सके।

प्रोफ़ेसर हेनरिक क्रिस्टीनेंसंस कहते हैं, "ये रोबोट मुख्य रूप से बिखरे हुए हैं। वे वहां आसपास जाएंगे और पता लगाएंगे कि वह कैसा दिखता है। जब उस घर में सैनिक दाखिल होंगे तो उनके पास इस संबंध में बहुत से जानकारियां होंगी कि वहां क्या हो रहा है।"

इस परियोजना में टोह लेने और खुफिया सूचनाएं जुटाने पर जोर दिया गया है। लेकिन वैज्ञानिक साहित्य ने हथियारबंद रोबोट की संभावना बढ़ा दी है। इन्हें इस तरह बनाया जा रहा है कि वे टिड्डियों या झुंड में मंडराने वाले अन्य कीट-पतंगों की तरह आसमान में उड़ सकें।

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रोबोटों के इस झुंड का हर रोबोट एक छोटे हथियार से लैस होगा या अपनी गतिज ऊर्जा का प्रयोग दुश्मन पर हमले में करेगा।

नैतिकता का सवाल : वॉशिंगटन स्थित ब्रुकिंग इंस्टीट्यूट में भविष्य के युद्ध के जानकार पीटर डब्ल्यू सिंगर कहते हैं, "युद्ध के मैदान में रोबोट सैनिकों के आगमन ने बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।"

वे कहते हैं, "इतिहास में हर नई तकनीक ने खेल को बदलकर रख दिया है, गनपाउडर, मशीनगन, परमाणु बम, कंप्यूटर और रोबोटिक्स उनमें से एक है।"

वे कहते हैं, "जब हम कहते हैं कि यह खेल बदलने वाला हो सकता है तो, इसका मतलब यह होता है कि यह युद्ध के मैदान अपनाई जाने वाली रणनीति, सिद्धांत, हमारी सेनाओं के संगठन, राजनीति, कानून और नैतिकता तक को प्रभावित करेगा।"

साल 1997 में शांति के लिए नोबल पुरस्कार पाने वाली अमेरिकी जूडी विलियम्स स्वायत्त हथियार प्रणाली को त्यागने के पक्ष में हैं। वे कहती हैं, "हम उन्हें हत्यारे रोबोट कहना पसंद करेंगे।"

वह इनको परिभाषित करते हुए कहती हैं- ऐसे हथियार जो खतरनाक हैं, ऐसे हथियार जो अपने ही लोगों को मार सकते हों और जिनके निर्णय प्रक्रिया में कोई इंसान नहीं जुड़ा है।

वे कहती हैं कि अगर ईमानदारी से कहूं तो जब इनके बारे में पता चला तो मैं डर गई थी। वहीं जार्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के प्रोफ़ेसर रोनाल्ड आरकिन की इसके लेकर कुछ अलग ही राय रखते हैं।

आरकिन बताते हैं कि अमरीका समेत दुनिया के 76 देश सैन्य रोबोटिक्स प्रोग्राम चला रहे हैं। वे कहते हैं, "हर आदमी हाथ उठाकर कहता है, ओह, दुष्ट रोबोट, ओह, हत्यारे रोबोट। लेकिन हमारे यहां हत्यारे सैनिक भी हैं, अत्याचार जारी है और यह युद्ध के शुरुआत से ही जारी है।"

वे कहते हैं- युद्ध के मैदान में बिना लड़ाई के होने वाली मौतों को कम करने के लिए तकनीक का उपयोग करने की जरूरत है।

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