सांस्कृतिक चरमपंथ के गहराते साए

- शकील अख्तर (दिल्ली)

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रवी ंद्रनाथ टैगोर ने लिखा था कि जब भारत आजाद होगा, तो वो ऐसा समाज चाहेंगे जहां ‘मस्तिष्क हर डर से आजाद हो, जहां हर व्यक्ति सिर उठा कर चले और जहां ज्ञान और कला का बोलबाला हो।’

उन्हीं टैगोर के बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आदेश पर एक प्रोफेसर को गिरफ्तार किया गया था। उनका जुर्म बस इतना था कि उन्होंने मुख्यमंत्री का कार्टून बनाने की हिमाकत की थी।

यहीं नहीं, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार की आलोचना करने वालों को गिरफ्तारी और हमलों की आशंका हर वक्त बनी रहती है। पिछले दिनों कोलकाता के एक साहित्य मेले में चर्चित लेखक सलमान रुश्दी को आमंत्रित किया गया था।

जब रुश्दी कोलकाता के लिए रवाना होने वाले थे तो उन्हें बताया गया कि मुख्यमंत्री ने साहित्य मेले में उनकी भागीदारी पर रोक लगा दी है और अगर वो कोलकाता आएंगे तो उन्हें उसी वक्त दूसरे विमान में बिठाकर दिल्ली रवाना कर दिया जाएगा।

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अराजक हुजूम : इससे पहले जयपुर के साहित्य उत्सव में कुछ हिंदू संगठनों ने पाकिस्तानी साहित्यकारों के शामिल होने का विरोध किया जबकि इन कट्टरपंथी हिंदुओं का साहित्य से कोई लेना देना नहीं है।

राजस्थान के कुछ मौलवियों ने भी जयपुर फेस्टिवल के खिलाफ जिहाद का ऐलान कर दिया। उनका कहना था कि वो सलमान रुश्दी को इस सालाना उत्सव में शामिल नहीं होने देंगे।

इतना ही नहीं, वो उन लेखकों के भी खिलाफ हैं जिन्होंने पिछले साल विरोधस्वरूप सलमान रुश्दी की एक किबात के कुछ अंश पढ़कर सुनाए थे।

जयपुर के साहित्य उत्सव ने कुछ हल्कों में ऐसी दहशत पैदा कर दी है कि जयपुर के पुलिस कमिश्नर ने पूरी दुनिया के साहित्यकारों को ये चेतावनी दे डाली कि वो इस साहित्य उत्सव में ऐसी बात न करें जिससे किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचती हो।

जयपुर साहित्य उत्सव पिछले कई वर्षों से लोकतंत्र विरोधी हुजूम की अराजकता का शिकार रहा है। कभी सलमान रुश्दी का विरोध होता है तो कभी आशीष नंदी का। कभी किसी किताब के खिलाफ कोई सामाजिक संगठन विरोध जताता है तो कभी फेसबुक पर अपनी भावनाएं व्यक्त करने के लिए किसी को गिरफ्तार किया जाता है।

कश्मीर में तेजी से लोकप्रिय होने वाले लड़कियों के एक बैंड को धमकियां दी जाती हैं और आखिरकार उन्हें अपना म्यूजिकल ग्रुप तोड़ देना पड़ता है।

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अलमबरदारों के पहरे : आजाद भारत में अभिव्यक्ति की आजादी पर कई अलमबरदारों के पहरे हैं। मशहूर अभिनेता और फिल्मकार कमल हासन की फिल्म 'विश्वरूपम' तमिलनाडु के कुछ कट्टरपंथी मौलवियों को पसंद नहीं आई।

इन मौलवियों ने ये फिल्म नहीं देखी थी, लेकिन उन्होंने इसके रिलीज होने के पहले ही इस पर मुसमान विरोधी होने का आरोप लगा दिया और राज्य में फिल्म पर पाबंदी लगा दी गई।

भारत इस वक्त अराजक हुजूम की गिरफ्त में है। ये हुजूम लोगों की सोच पर भी कब्जा करना चाहता है। पिछले कुछ बरसों में भारत में हर स्तर पर अनुदारवाद को बढ़ावा मिला है। किताबों पर पाबंदी, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबंदी, साहित्यकारों पर पाबंदी। फिल्मों पर पाबंदी।

पाबंदियों से नजरिए और विचारधारा की शिकस्त नहीं हुआ करती। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसी राज्य, किसी हूजुम या किसी धर्म की जागीर नहीं, ये ऐसी व्यक्तिगत आजादी है जिसे नियंत्रित नहीं किया जा सकता।

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