अयोध्या मामले में हिंदू पक्ष को जीत दिलाने वाले के. परासरन

Webdunia
शनिवार, 9 नवंबर 2019 (18:10 IST)
बाबरी-राम जन्मभूमि विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर की 2.77 एकड़ ज़मीन को 'रामलला विराजमान' को देने का फ़ैसला सुनाया है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को अयोध्या में ही उचित जगह पर 5 एकड़ ज़मीन देने को कहा है। 'रामलला विराजमान' की ओर से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील के. परासरन ने पैरवी की। परासरन की आयु इस समय 93 वर्ष है और वो अपनी युवा टीम के साथ सुप्रीम कोर्ट में भगवान राम की पैरवी कर रहे थे।

9 अक्‍टूबर 1927 को तमिलनाडु के श्रीरंगम में पैदा हुए परासरन तमिलनाडु के एडवोकेट जनरल रहने के अलावा भारत के अटॉर्नी जनरल भी रहे हैं। इसके अलावा वे साल 2012 से 2018 के बीच राज्यसभा के सदस्य भी रहे हैं। परासरन को 'पद्मभूषण' और 'पद्मविभूषण' से सम्मानित किया जा चुका है।

हिंदू क़ानून में है विशेषज्ञता : परासरन ने क़ानून में स्नातक की पढ़ाई की। इस दौरान उन्हें हिंदू क़ानून की पढ़ाई के लिए गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया था। पढ़ाई के बाद उन्होंने 50 के दशक में वकालत शुरू की। वे कांग्रेस सरकार के काफ़ी नज़दीक रहे। इसके अलावा वाजपेयी सरकार के दौरान उन्होंने संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए बनी संपादकीय समिति में काम किया। परासरन को हिंदू धर्म का अच्छा ख़ासा ज्ञान है।

अयोध्या मामले में रामलला विराजमान का वकील रहने के अलावा वे सबरीमला मंदिर मामले में भगवान अयप्पा के भी पैरोकार रहे हैं। हिंदू धर्म पर इतनी अच्छी पकड़ होने के कारण ही परासरन भगवान राम से नज़दीकी महसूस करते रहे हैं। उनके क़रीबी बताते हैं कि अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 40 दिनों तक चली रोज़ाना सुनवाई के दौरान वे हर रोज़ बहुत मेहनत करते थे।

रोज़ाना सुनवाई सुबह 10.30 बजे शुरू होती थी और शाम को 4 से 5 बजे के बीच ख़त्म होती थी। लेकिन परासरन सुनवाई से पहले केस के हर पहलू पर गंभीरता से काम करते थे। परासरन की टीम में पीवी योगेश्वरन, अनिरुद्ध शर्मा, श्रीधर पोट्टाराजू, अदिति दानी, अश्विन कुमार डीएस और भक्ति वर्धन सिंह जैसे युवा वकील हैं। उनकी टीम इस आयु में उनकी ऊर्जा और उनकी याददाश्‍त को देखकर उत्साहित हो जाती है। वे सभी महत्वपूर्ण केसों को उंगलियों पर गिनकर बता देते हैं।

परासरन की सुप्रीम कोर्ट में दलीलें : 'रामलला विराजमान' की ओर से वकालत करते हुए परासरन ने कहा था कि इस मामले में कड़े सबूतों की मांग में ढील दी जानी चाहिए क्योंकि हिंदू मानते हैं कि उस स्थान पर भगवान राम की आत्मा बसती है इसलिए श्रद्धालुओं की अटूट आस्था भगवान राम के जन्म स्थान में बसती है। उनके इस तर्क के बाद सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस एसए बोबड़े ने परासरन से पूछा था कि ईसा मसीह बेथलेहम में पैदा हुए थे क्या यह सवाल किसी कोर्ट में कभी उठा है?

इसके अलावा परासरन ने सुप्रीम कोर्ट के आगे कई तर्क दिए थे जिनमें से सबसे अहम तर्क यह था कि उन्होंने राम जन्मभूमि को न्यायिक व्यक्तित्व बताया था। इस कारण इस पर कोई संयुक्त क़ब्ज़ा नहीं दिया जा सकता था, क्योंकि यह अविभाज्य है। परासरन ने अपने तर्कों में ज़मीन को देवत्व का दर्जा दिया था। उनका कहना था कि हिंदू धर्म में मूर्तियों को छोड़कर, सूरज, नदी, पेड़ आदि को देवत्व का दर्जा प्राप्त है, इसलिए ज़मीन को भी देवत्व का दर्जा दिया जा सकता है।

राम जन्मभूमि के अलावा परासरन ने बाबरी मस्जिद के निर्माण पर भी सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था कि बाबरी मस्जिद को इस्लामी क़ानून के अनुसार बनाई गई मस्जिद नहीं माना जा सकता, क्योंकि इसको एक दूसरे धार्मिक स्थान को तोड़कर बनाया गया था। उन्होंने यह भी तर्क दिया था कि बाबरी मस्जिद को एक मस्जिद के रूप में बंद कर दिया गया था जिसके बाद इसमें मुसलमानों ने नमाज़ पढ़ना बंद कर दिया था।

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