होरमुज़ की खाड़ी दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण और सामरिक महत्व का समुद्री रास्ता है। ईरान और अमेरिका के बीच भारी तनाव के कारण इसका महत्व और बढ़ गया है। ईरान, अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के बीच तनाव का केंद्र अब होरमुज़ की खाड़ी है।
इस तनाव की शुरुआत बीते साल हुई जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते से बाहर कर लिया। ट्रंप ने समझौता तोड़ते हुए कहा था कि ये ईरान के हित के लिए है। ट्रंप ने बीते साल नवंबर में ईरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए। इसके बाद से लगातार दोनों देशों के रिश्तों में तनाव बढ़ता जा रहा है।
ट्रंप ने कहा कि ईरान आतंकवादी राष्ट्र है और अमेरिका उससे समझौता नहीं करेगा। वहीं ईरानी धर्म गुरु अयातुल्लाह ख़मेनई ने कहा कि हम अमेरिका पर न भरोसा करते हैं न करेंगे। इसी साल अप्रैल में ट्रंप ने कहा कि जो देश ईरान के साथ व्यापार करेंगे उन पर भी अमेरिकी प्रतिबंध लगेंगे। इसी दौरान अमेरिका ने अपने युद्धपोत अब्राहम लिंकन होरमुज़ की खाड़ी के पास भेज दिए। होरमुज़ में अब सैन्य गतिविधियां बढ़ गई हैं।
होरमुज़ की खाड़ी से ही ईरान ने शुक्रवार को ब्रितानी तेल टैंकर को ज़ब्त किया। ईरान की इस कार्रवाई के बाद ब्रिटेन और ईरान भी आमने-सामने आ गए हैं और ब्रिटेन ने ईरान को गंभीर परीणाम भुगतने की चेतावनी दी है।
क्यों अहम है होरमुज़ की खाड़ी? : होरमुज़ की खाड़ी के एक ओर अमेरिका समर्थक अरब देश हैं और दूसरी ओर ईरान। ओमान और ईरान के बीच कुछ क्षेत्र में ये खाड़ी सिर्फ़ 21 मील चौड़ी है। यहां दो समुद्री रास्ते हैं। एक जहाज़ों के जाने के लिए और एक आने के लिए।
यूं तो ये खाड़ी बेहद संकरी है लेकिन ये इतनी गहरी है कि यहां से दुनिया के सबसे बड़े जहाज़ और तेल टैंकर आसानी से गुज़र सकते हैं। मध्य-पूर्व से निकलने वाला तेल होरमुज़ के रास्ते ही एशिया, यूरोप, अमेरिका और दुनिया के अन्य बाज़ारों में पहुंचता है। इस खाड़ी से रोज़ाना एक करोड़ 90 लाख बैरल तेल गुज़रता है। यानी दुनिया का बीस फ़ीसदी कच्चा तेल यहीं से होकर जाता है। यानी दुनिया में सबसे ज़्यादा कच्चा तेल एक समय यदि कहीं होता है तो यहीं होता है।
इसकी तुलना में स्वेज़ नहर से 55 लाख बैरल और मलक्का की खाड़ी से एक करोड़ 60 लाख बैरल तेल गुज़रता है। ईरान भी अपना तेल इसी रास्ते से दुनिया भर में भेजता है। साल 2017 में ईरान ने 66 अरब डॉलर का कच्चा तेल इस रास्ते से भेजा था। अपने तेल की बिक्री पर लगे प्रतिबंध से ईरान नाख़ुश है लेकिन उसके हाथ में एक तुरुप का इक्का भी है। और ये होरमुज़ की खाड़ी ही है।
ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने कहा था, "अगर किसी दिन अमेरिका ने ईरान के तेल की बिक्री रोकने की कोशिश की तो फिर फ़ारस की खाड़ी से किसी का तेल निर्यात नहीं हो पाएगा।" ईरान धमकी देता रहा है कि वो होरमुज़ की खाड़ी को बंद करके यहां से तेल के निर्यात को रोक देगा।
क्या इस खाड़ी को बंद किया जा सकता है? : 1980 के दशक में जब ईरान और इराक़ के बीच युद्ध हुआ था तो यहां से गुज़रने वाले तेल टैंकरों को बड़े पैमाने पर निशाना बनाया गया था। दोनों देशों ने एक दूसरे के तेल निर्यात को बंद करने की कोशिशें की थीं।
इस युद्ध को टैंकर युद्ध भी कहा गया था। इसमें 240 से अधिक तेल टैंकर हमले का शिकार हुए थे जिनमें से 55 डूब गए थे। जब ईरान कहता है कि वो खाड़ी से तेल नहीं निकलने देगा तो उसका मतलब होता है कि वो यहां से जहाज़ों की आवाजाही को असुरक्षित कर देगा। यानी वो रास्ता रोकने के लिए जहाज़ रोधक बारूदी सुरंगे, मिसाइलें, पनडुब्बियां या फिर तेज़ रफ़्तार नावें यहां तैनात कर सकता है।
ये महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि यदि ईरान ऐसा करता है और इससे तेल का निर्यात प्रभावित होता है तो इसका सीधा असर दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ेगा। यदि यहां से गुज़रने वाले तेल टैंकरों का परिवहन प्रभावित होता है तो इससे भारत जैसे देशों में तेल के दाम प्रभावित होंगे। तेल महंगा होने से आम लोगों के लिए रोज़मर्रा की चीज़ें महंगी हो सकती हैं। यानी होरमुज़ की खाड़ी के तनाव का सीधा असर आम लोगों के जीवन पर पड़ सकता है।
लेकिन इससे भी बड़ा प्रभाव ये होगा कि अगर ईरान होरमुज़ की खाड़ी को बंद करता है तो इसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय युद्ध का ऐलान मान सकता है। वहीं ईरान ज़ोर देकर कहता रहा है कि वो युद्ध नहीं चाहता। हाल ही में जब अमेरिकी राष्ट्रपति से पूछा गया कि क्या ईरान के साथ युद्ध होगा तो उन्होंने कहा था कि उम्मीद है कि नहीं होगा।
होरमुज़ के आसपास हुए तनावपूर्ण घटनाक्रम : शुक्रवार को अमेरिका ने दावा किया कि उसके युद्धपोत ने खाड़ी क्षेत्र में एक ईरानी ड्रोन को मार गिराया है। हालांकि ईरान ने इसका खंडन किया है। शुक्रवार को ही ईरान ने होरमुज़ की खाड़ी में ब्रितानी तेल टेंकर स्टेना इम्पेरो को ज़ब्त कर लिया।
इससे पहले इसी महीने ज़िब्राल्टर में ब्रितानी बलों ने एक ईरानी तेल टैंकर को क़ब्ज़े में ले लिया था। माना जा रहा है कि इसी के बदले की कार्रवाई में ईरान ने ब्रितानी तेल टैंकर को पकड़ा है। वहीं 13 जून के ईरान के तटीय इलाक़े के पास हुए हमलों में दो तेल टैंकरों को नुक़सान पहुंचा था। इनमें से एक जापानी तेल टैंकर था।
ओमान की खाड़ी में तेल टैंकर फ्रंट अल्टेयर में आग लगी। ईरानी नौकाओं ने इसे बुझाने की कोशिश की थी। संयुक्त अरब अमीरात और ईरान के बीच के समंदर में इस जहाज़ पर तीन धमाके हुए थे। मार्शल आइलैंड में पंजीकृत ये जहाज़ अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में था, जब इस पर धमाका हुआ।
अमेरिका ने खाड़ी क्षेत्र में हुए तेल टैंकरों पर हमले के लिए ईरान को ज़िम्मेदार बताया था। वहीं सऊदी अरब ने कहा था कि वो इन हमलों का ठोस जवाब देगा। ईरान ने 20 जून को खाड़ी क्षेत्र में एक अमेरिकी ड्रोन को मार गिराया था। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने इसका बदला लेने के लिए ईरान पर हमला करने के आदेश दिए थे, जिन्हें उन्होंने अंतिम समय में वापस ले लिया था।
ट्रंप ने कहा था कि अमेरिकी हमलों में ईरान को जो जानी नुक़सान होता वो एक ड्रोन की तुलना में बहुत ज़्यादा होता इसलिए उन्होंने अपना फ़ैसला बदल लिया। अमेरिका की डेलवेयर यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार प्रोफ़ेसर मु्क़्तदर ख़ान कहते हैं, "न ही अमेरिका युद्ध चाहता है और न ही ईरान। लेकिन दोनों देशों में से किसी की भी ओर से हुई छोटी सी ग़लती भी इस क्षेत्र में एक नए संघर्ष में बदल सकती है।"
ईरान इस क्षेत्र में होरमुज़ की खाड़ी पर हावी होने का दावे करता रहा है। लेकिन क्या ईरान खाड़ी को बंद कर पाएगा? मुक़्तदर ख़ान कहते हैं, "ये क्षेत्र कच्चे तेल के आवागमन के लिए बेहद अहम है। ऐसे में अगर ईरान इसे एक सप्ताह के लिए भी अशांत या असुरक्षित कर देता है और यहां से तेल टैंकरों का आना जाना रुक जाता है तो इसका असर भारत जैसे देशों के बाज़ारों में दिखने लगेगा। यही वजह है कि ईरान यहां पर तेवर दिखा रहा है और बाकी देश चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं।"
वो कहते हैं, "अमेरिका ने ईरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं। इसका असर ईरान की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है। ईरान होरमुज़ की खाड़ी में हरकतें कर सकता है।" प्रोफ़ेसर ख़ान कहते हैं, "अमेरिका के प्रतिबंधों के बावजूद ईरान आक्रामक है क्योंकि ईरान होरमुज़ को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। अगर होरमुज़ से तेल निकलना बंद हो गया तो इसका असर भारत पर ही नहीं होगा बल्कि जापान और यूरोपीय देश तक प्रभावित होंगे।"