सलीम रिज़वी, न्यूयॉर्क से, बीबीसी हिंदी के लिए
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अमेरिका दौरा संपन्न हो चुका है। इस दौरे में मोदी की अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ पहली बार आमने-सामने द्विपक्षीय बैठक हुई।
बैठक काफ़ी अच्छे माहौल में हुई और दोंनों देशों ने अपने सामरिक महत्व के सहयोग के साथ अपनी अहम साझेदारी को और मज़बूत करने की प्रतिबद्वता जताई।
क्वॉड समूह के चार देशों की भी पहली बार आमने सामने शिखर बैठक हुई। इसमें ख़ासकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत और अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान ने मिलकर क्षेत्र में आवाजाही की आज़ादी को सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।
इस सिलसिले में चारों देशों ने कई क्षेत्रों में सहयोग के लिए वर्किंग ग्रुप भी बनाए हैं, जिनके काम की समीक्षा भी की गई। पिछले क़रीब छह महीनों में प्रधानमंत्री मोदी की यह पहली विदेश यात्रा थी। कोरोना माहमारी ने जहाँ दुनिया भर में कई प्रतिबंध लागू किए, उसने प्रधानमंत्री मोदी को विदेश यात्रा से भी रोक रखा था।
पिछली बार 2019 में जब मोदी अमेरिका पहुँचे थे तो उस वक़्त डोनाल्ड ट्रंप का दौर था और मोदी-ट्रंप में खूब छनती थी। दोंनो एक दूसरे से अच्छी दोस्ती निभाते थे। मोदी, ट्रंप की तारीफ़ों के पुल बांधते थे और ट्रंप भी मोदी को 'महान देश का महान नेता' जैसे अलक़ाब से नवाज़ते थे।
उस वक़्त सितंबर के ही महीने में टेक्सस के ह्यूस्टन शहर में हाउडी मोदी कार्यक्रम भी आयोजित किया गया था, जिसमें मोदी के साथ साथ ट्रंप ने भी भाग लिया था और वहाँ कार्यक्रम के सभागार में मौजूद 50 हज़ार से अधिक भारतीय मूल के लोगों का ट्रंप ने भी दिल जीत लिया था।
उस कार्यक्रम में कई अमेरिकी सांसदों और सीनेटरों के अलावा गवर्नर आदि ने भी शिरकत की थी। सभी ने अमेरिका और भारत के बीच संबंधों को नई ऊंचाई तक पहुँचाने के लिए मोदी की जमकर प्रशंसा की थी।
कई दिनों तक अमेरिकी अखबारों में हाउडी मोदी की चर्चा होती रही थी और टीवी न्यूज़ में भी चर्चा यही हो रही थी कि कैसे मोदी और ट्रंप ने एक साथ उस कार्यक्रम में हज़ारों लोगों के हुजूम को संबोधित किया।
उस वक़्त भी कुछ लेख मोदी के दौर में भारत में मानवाधिकार के उल्लंघन का भी ज़िक्र करने लगे थे। क़रीब एक महीना पहले ही कश्मीर में आर्टिकल 370 ख़त्म किया गया था और वहाँ आम लोगों को बंदिशों का सामना करना पड़ रहा था।
एक अमेरिकी समाचार पत्र में एक लेख में मोदी को 'भारत का ट्रंप' कहा गया था। उसके बावजूद 2019 में ही जब मोदी अमेरिका में ह्यूस्टन और न्यूयॉर्क गए तो वहाँ हज़ारों लोगों ने उनका भरपूर स्वागत किया।
हाउडी मोदी कार्यक्रम में ही मोदी ने 2020 के अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए अपने अलग अंदाज़ में ट्रंप की वकालत भी कर दी थी। उन्होंने खचाखच भरे हॉल को संबोधित करके कहा था "अबकी बार ट्रंप सरकार। साथ में खड़े ट्रंप तो गद गद हो गए थे। लेकिन 2020 के चुनाव में उनका मुक़ाबला हुआ जो बाइडन से हुआ और वे जीत गए।
उस चुनाव अभियान में जो बाइडन और कमला हैरिस ने भारत में मोदी सरकार की मानवाधिकार के हवाले से आलोचना भी की थी। अब 2021 में जब मोदी का दौरा हुआ तो हालात काफ़ी अलग थे।
इस बार माहमारी के चलते मोदी कोई बड़ा कार्यक्रम भी आयोजित नहीं कर पाए। हज़ारों की भीड़ जुटाने वाले मोदी को चंद सौ लोगों से ही काम चलाना पड़ा।
वॉशिंगटन के आसपास के इलाक़ों से कई बसों में भरकर सैकड़ों लोग आए थे और मोदी का स्वागत करने के लिए व्हाइट हाउस के बाहर जमा हुए थे और उनमें जोश भी था।
कुछ तो इस बात से खिन्न लग रहे थे कि वह मोदी से मिल नहीं पाएंगे लेकिन फिर भी फ़ोटो वाले बड़े बड़े प्लेकार्ड और उनके समर्थन में लिखे नारे वाले बैनर थामे यह लोग रह रह कर मोदी के समर्थन में ज़ोर ज़ोर से नारे लगा भी रहे थे।
एक गुट वहीं मोदी के विरोध में जमा हुआ था। वह लोग मोदी विरोधी नारे लिखे, बैनर और पोस्टर थामे थे और जोश से भरे नारे लगा रहे थे। एक मौक़े पर यह दोंनों अलग-अलग गुट आमने सामने भी आ गए थे और हाथापाई के अंदेशे में पुलिस को बीच में खड़ा होना पड़ा।
इस बीच बाइडन प्रशासन ने कई साफ़ संकेत दिए कि अब ट्रंप दौर के अंदाज़ नहीं अपनाए जाएंगे।
वहाइट हाउस में भी जब मोदी द्विपक्षीय बैठक के लिए पहुँचे तो राष्ट्रपति बाइडन ने बाहर आकर उनका स्वागत नहीं किया बल्कि ओवल ऑफ़िस में मोदी को ले जाया गया, जहां बाइडन उनसे मिले।
अमेरिका और भारत के बीच अहम साझेदारी को दोंनों नेताओं ने और अधिक मज़बूत करने की प्रतिबद्वता जताई। विभिन्न क्षेत्रों में जैसे व्यापार, रक्षा, तकनीक और उर्जा में सहयोग बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन और कोविड महामारी से मिलकर लड़ने के लिए भी दोंनों देशों ने कटिबद्वता जताई।
विश्व में इस समय हालात ऐसे बन गए हैं कि भारत और अमरीका के रणनीतिक हित भी मिलते हैं और दोंनों देशों को एक दूसरे की ज़रूरत है। मोदी-बाइडन द्विपक्षीय मुलाक़ात में सब बड़ा नपे तुले अंदाज़ में हो रहा था और हर शब्द को नाप तौल के बातचीत की जा रही थी।
ज़ाहिर है साथ में माहमारी का भी हर जगह असर दिखा, इसलिए भी न तो मोदी की वह मशहूर झप्पी दिखी और नपे तुले अंदाज़ की कूटनीति में न ही मोदी को बाइडन ने महान नेता आदि जैसा कोई खिताब दिया।
वहीं लग रहा था मोदी की कोशिश यह ज़रूर थी कि बाइडन को महान नेता की उपाधि दे दी जाए। बल्कि उप राष्ट्रपति कमला हैरिस और राष्ट्रपति जो बाइडन ने मोदी के साथ अपनी मुलाक़ातों के दौरान लोकतांत्रिक मूल्यों को मज़बूत करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।
बाइडन ने मोदी के साथ मुलाक़ात में कहा कि "महात्मा गांधी के आदर्शों जैसे अहिंसा, सम्मान और सहिष्णुता कि आज के दौर में बहुत ज़रूरत है।" मोदी ने भी गांधी के सिद्वांतों का हवाला दिया और विश्व भर के लिए उनके फ़ायदे भी गिनाए।
वैसे तो अमेरिकी अख़बारों में मोदी की अमेरिका यात्रा का कोई ख़ास ज़िक्र नहीं हुआ। कुछ समाचार पत्रों में लोकतांत्रिक मूल्यों पर मोदी को दी गई नसीहत पर चुटकी ज़रूर ली गई।
लॉस एंजिलिस टाइम्स में छपी खबर का शीर्षक था 'कमला हैरिस ने एतिहासिक मुलाक़ात में भारत के मोदी को मानवाधिकार पर हल्का दबाव महसूस कराया'।
वहीं एक अमेरिकी मैगज़ीन पोलिटिको में एक लेख में बाइडन प्रशासन पर भारत में मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों की अनदेखी पर चर्चा की गई है।
उस लेख में ह्यूमन राइट्स वॉच संस्था के एशिया एडवोकेसी डायरेक्टर जॉन सिफ़्टन का एक बयान भी शामिल किया गया है, जिसमें वह पूछते हैं, "बाइडन प्रशासन भारत में मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों पर इतना चुप क्यूं है? अमरीकी अधिकारी हाथ हल्का क्यूं रखे हैं? रणनीति क्या है?"