क़ुरान ने हमलावरों से बचाई एक हिंदू की जान

Webdunia
शनिवार, 14 जनवरी 2017 (11:36 IST)
- लिंडा प्रेस्ली (ढाका)
बांग्लादेश में ढाका के एक रेस्तरां होली आर्टिज़न बेकरी में पिछले साल एक जुलाई को हुए चरमपंथी हमले में 29 लोग मारे गए थे। शाम का समय था, जब पांच हथियारबंद चरमपंथियों ने ढाका के भीड़भाड़ वाले इलाके में इस रेस्तरां पर हमला किया था। उस वक़्त वहाँ ज़्यादातर जापान और इटली के पर्यटक थे। लेकिन अचानक हुए इस हमले की कई कहानियां अभी भी अनसुनी हैं। इन्हीं में से एक कहानी है शिशिर सरकार की जिनकी जान क़ुरान की आयत पढ़ने से बच गई थी।
शिशिर इस रेस्तरां के शेफ़ हैं। जब उन्होंने गोलियों की आवाज़ सुनी थी तब उस वक़्त वह पास्ता का प्लेट हाथ में लिए हुए फ़्रिज़ वाले कमरे से बाहर निकल रहे थे। शिशिर उस दिन के बारे में बताते हैं, "मैंने तभी एक हमलावर के हाथ में तलवार देखी, उसके सीने से बंदूक लटक रही थी।" एक हिंदू होने के नाते शिशिर का ख़ौफ़ज़दा हो जाना लाज़िमी था। अगर इस्लामी चरमपंथियों को उनके धर्म के बारे में पता चल जाता तो उनकी मौत निश्चित थी।
 
वो बताते हैं, "उसी समय एक जापानी आदमी पीछे से चीख़ा 'मेरी मदद करो!'। मैं पीछे पलटा और उसकी मदद की।" उस कमरे में कोई कुंडी नहीं थी। इसलिए वे दोनों कमरे का दरवाज़ा अंदर से पकड़ कर खड़े हो गए। शिशिर बताते हैं, "जापानी पर्यटक ने मुझसे पूछा कि ये लोग कौन हैं। मैंने कहा कि नहीं जानता हूं लेकिन घबराने की बात नहीं है। पुलिस आ रही है।"
 
दो घंटे तक उन दोनों ने कमरे का दरवाज़ा अंदर से पकड़ रखा था। शिशिर सरकार ने बताया, "फ़्रिज़ वाले कमरे में बहुत ठंड थी। हम किसी तरह अपने आप को गर्म रखने की कोशिश कर रहे थे और दरवाज़ा पकड़े बैठे थे।" तभी एक हमलावर ने दरवाज़े पर हमला कर दिया और उसे खोलने की कोशिश करने लगा।
 
"हम मज़बूती से दरवाजा थामे थे, उसकी कोशिश नाकाम रही। वो वापस चला गया। लेकिन वे यह जान गए थे कि कोई अंदर है।"
 
और उसके 10-15 मिनट बाद फिर से चरमपंथी कमरे के पास आ गए थे। "हमें बहुत ठंड लग रही थी। हम कमज़ोर पड़ रहे थे। इस बार हमलावर दरवाज़ा खोलने में कामयाब रहे।
 
"उन्होंने मुझे बाहर आने को कहा। मैं बहुत डरा हुआ था। मैं तुरंत नीचे गिर पड़ा। मैंने सोचा कि अगर मैं खड़ा रहूंगा तो पक्का वो मुझे तलवार से काट डालेंगे। मैं बार-बार कह रहा था कि अल्लाह के लिए मुझे मत मारो, मुझे बख़्श दो।" शिशिर उन्हें मुसलमान मानते हुए ऐसा कह रहे थे। हथियारबंद चरमपंथी ने उन्हें जाकर अपने लोगों के साथ खड़े हो जाने को कहा जो कि रेस्तरां के दूसरे हिस्से में थे।
 
"मैं घुटने के बल रेंगता हुआ लाशों के ऊपर से होकर वहां तक पहुंचा। तभी मुझे गोलियों की आवाज़ सुनाई दी। फ़्रिज़ वाले कमरे में मेरे साथ मौजूद जापानी आदमी मारा गया था।" सरकार दूसरे लोगों के साथ जाकर बैठ गए। सभी सिर झुकाकर बैठे हुए थे। तभी उनमें से एक ने पूछा कि शेफ कौन है। शिशिर के साथियों ने उनकी ओर इशारा किया। उन्हें चरमपंथी किचन में ले गए।
 
शिशिर उसके बाद के वाकये के बारे में बताते हैं, "उन्होंने मुझे खाना बनाने को कहा और उसे शानदार ढंग से प्लेट में परोसने को कहा।
 
जब मैं खाना बना रहा था तब एक चरमपंथी मेरे पास आया। उसने मुझसे पूछा कि मेरा नाम क्या है। मैंने अपना नाम सिर्फ़ शिशिर बताया। मैंने अपना सरनेम नहीं बताया। नहीं तो वो जान जाते कि मैं हिंदू हूं।" लेकिन शायद उसे शक हो गया था। उन्होंने मुझे कुरान की आयतें सुनाने को कहा।"
 
मैं आराम से खाना बनाते हुए कुरान की आयतें सुनाने लगा। मेरे बहुत सारे मुसलमान दोस्त रहे हैं। इसलिए मैं कुरान के कुछ सूरा जानता हूं लेकिन फिर भी मैं डरा हुआ था। मैं सोच रहा था कि क्या वो मेरी प्रतिक्रिया से संतुष्ट हैं?"
 
''ये रमज़ान का महीना था इसलिए सुबह से पहले मुस्लिम बंधकों को सहरी खाने को दिया गया।" मैं बहुत डरा हुआ था। डर के मारे मैं खाना निगल नहीं पा रहा था। लेकिन तभी मैंने सोचा कि अगर मैंने नहीं खाया तो उन्हें शक हो जाएगा कि मैं मुसलमान नहीं हूं।"
 
सुबह होने के बाद ऑपरेशन थंडरबोल्ट में सभी पांचों चरमपंथी मारे गए थे और मैं अपने कई साथियों के साथ ज़िंदा बच चुका था।"
 
लेकिन इसके बाद मेरी ज़िंदगी बदल गई। वे पहले जैसी नहीं रही। अब मैं भविष्य के कोई सपने नहीं देखता। मैं ठीक से सो नहीं पाता हूं। जब कभी भी मैं अकेला होता हूं तो मैं उस रात के बारे में सोचने लग जाता हूं। मैं कुछ नहीं कर पाता हूं। मुझे ख़ौफ़ सताता रहता है।"
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