चंदन कुमार जजवाड़े, बीबीसी संवाददाता, बिहार में सारण के मशरख से
बारह-तेरह साल की एक बच्ची हाथ में वोटर और आधार कार्ड लिए उस भीड़ की तरफ़ बढ़ रही थी जो मशरख के सरकारी स्कूल के बाहर जमा थी। पूछने पर पता चला कि उसके पिता हरेंद्र राम की मौत ज़हरीली शराब पीने से हो गई है और उसे पहचान पत्र लेकर कम्युनिटी हेल्थ सेंटर बुलाया गया है ताकि मृत्यु प्रमाण पत्र बनाया जा सके। बगल में उसकी बहन छह साल के भाई को गोद में लिए बैठी है। इसी छोटे बच्चे ने पिता का दाह संस्कार किया है।
क्या इस मासूम को अंतिम क्रिया करने से बचाने का कोई उपाय नहीं था? मन में ये सवाल आया तो पता चला कि मृतक हरेंद्र राम के भाई की तबीयत कुछ दिनों से ख़राब है जिसकी वजह से वो दाह संस्कार नहीं कर सके।
हरेंद्र राम की पत्नी ने बीबीसी को बताया, "घर में इकलौते कमाने वाले थे और हम चार लोग खाने वाले। मजदूरी करके गुजारा होता था। अब क्या होगा पता नहीं। शराब पीने से मौत हो गई। कहां से शराब आई यह भी नहीं पता। कुछ जानने का मौका भी नहीं मिला।"
शराबबंदी वाले बिहार में शराब पीने से मौत
बिहार के सारण ज़िले के छपरा में ज़हरीली शराब पीकर मरने वालों की तादाद 25 से ज़्यादा हो गई है। छपरा में इस शराब कांड में मारे गए ज़्यादातर लोग दलित समुदाय से हैं या फिर बहुत ही ग़रीब हैं।
ये वो राज्य है, जहां बीते छह साल से शराबबंदी लागू है। फिर भी ज़हरीली शराब पीकर होने वाली मौत यहां के लिए नई बात नहीं है। सारण के मशरख इलाक़े ने ज़हरीली शराब से मौत की ऐसी बड़ी घटना पहली बार देखी है।
यहां ज़हरीली शराब पीकर मरने वालों में सबसे ज़्यादा लोग मशरख नगर पंचायत के रहने वाले हैं। मशरख के बीचों बीच मशरख तख़्त इलाक़ा है। लोगों का कहना है कि पूरा मशरख इसी के इर्द-गिर्द बसा है।
मशरख तख़्त इलाक़े में मौत का मंज़र साफ़ देखा जा सकता है। सबसे पहले हम यहां के थाने पर पहुंचे जहां कुछ सिपाही मिले। लेकिन जानकारी देने वाला कोई नहीं मिला। कुछ स्थानीय लोगों ने बताया कि सामने की गली में कई लोगों की मौत हुई है।
गली के अंदर हमें एक सरकारी स्कूल दिखा जहां कुछ बच्चे पढ़ाई कर रहे थे। वहीं कुछ बच्चे पढ़ाई के दौरान बाहर की भीड़ में भी शामिल थे।
ज़हरीली शराब से पहली मौत
एक युवक हमें लालझरी देवी के घर लेकर गए। संकरी और कच्ची गलियों से होकर जब हम उनके घर तक पहुंचे तो पता चला कि मंगलवार दोपहर शराब से मशरख तख़्त में सबसे पहले उनके पति चंद्रमा राम की ही मौत हुई थी।
चंद्रमा राम कभी-कभी शराब पीते थे। रोके जाने पर नाराज़ हो जाते थे। वो बच्चों का घरेलू उपचार करते थे, लेकिन ख़ुद का इलाज नहीं कर पाए।
यहीं पास में मोहन का घर है जिनकी मिठाई की दुकान है। उनको सुबह ही आनन-फ़ानन में छपरा ले जाया गया। पड़ोसियों ने बताया कि उनके पोते की शादी थी, बुधवार से देखने में परेशानी हो रही है। क्या हुआ है, क्यों हुआ है किसी को पक्की जानकारी नहीं।
इलाक़े में लोग दावा कर रहे हैं कि ज़हरीली शराब से क़रीब 50 लोगों की मौत हुई है। लेकिन ख़बर लिखे जाने तक प्रशासन ने 26 लोगों के मौत की पुष्टि की है।
सारण के एसपी ने बीबीसी को ये बताया कि कहीं भी सामूहिक रूप से शराब पीने की कोई सूचना नहीं है।
प्रशासन पर नाराज़ लोग- कैसे पहुंची शराब
कुछ लोग प्रशासन पर नाराज़गी जताते हुए हमारे पास पहुंचे कि शराब पर सख़्त पाबंदी के बाद भी यहां शराब कैसे बिक रही है। हमने यही सवाल गांव वालों से पूछा कि शराब आती कहां से- उनका जवाब था - 'हमें नहीं पता'।
स्थानीय निवासी मुन्ना कुमार तिवारी का कहना है, "कोविड के दौरान जब लॉकडाउन लगा था तो एक चिड़िया भी घर के बाहर नहीं निकलती थी क्योंकि प्रशासन टाइट था, फिर शराब कैसे बिक रही है। प्रशासन चाह ले तो शराब बिक ही नहीं सकती।"
यह इलाक़ा सारण ज़िले के मुख्यालय छपरा से क़रीब पैंतीस किलोमीटर की दूरी पर है। बीस हज़ार की आबादी वाले मशरख में सरकारी स्कूल भी हैं और हॉस्पिटल भी। यहां के कम्युनिटी हेल्थ सेंटर में में हमें काफ़ी भीड़ और परेशान लोग दिखे।
हमने एक रोती हुई महिला से जानने की कोशिश की कि क्या हुआ है, तो उनके साथ मौजूद एक व्यक्ति ने कम बताने और ज़्यादा छिपाने के अंदाज़ में कहा, "कुछ नहीं हुआ है, इनके पति थोड़े घबरा गए हैं लगातार मौत की ख़बरें सुनकर। इसलिए यहां से सदर अस्पताल रेफ़र किया गया है।"
पुलिस को नहीं लगी ख़बर
हैरानी की बात यह भी है कि कम-कम के कम चार लोगों की मौत तो मशरख थाने से क़रीब आधे किलोमीटर की दूरी पर हुई है, लेकिन पुलिस को शराब की बिक्री का पता तक नहीं चला। शायद इसलिए मशरख के थाना प्रभारी और चौकीदार को निलंबित भी किया गया है।
हम शराब के इस तांडव को जानने के लिए छपरा के सदर अस्पताल पहुंचे। शहर में पुलिस चौकस थी और हॉस्पिटल के आसपास सुरक्षा भी थी। यहां प्रशासन की गाड़ियों और एंबुलेंस की हलचल लगातार दिख रही थी।
सदर अस्पताल में भी मरीज़ों और शराब कांड के पीड़ित परिवारों की भीड़ लगी थी। लेकिन शराब पर पाबंदी की वजह से हर कोई बात करने से बचने की कोशिश करता दिखा।
हॉस्पिटल के डॉक्टर पंकज ने बताया, "15 लोग तो मरने के बाद यहां लाए गए थे। फ़िलहाल यहां नौ लोगों का इलाज चल रहा है और 11 को पीएमसीएच रेफ़र किया गया है।"
क्या हैं मौत के सही आंकड़े
डॉक्टर पंकज ने बीबीसी को बताया, "मंगलवार रात क़रीब नौ बजे हॉस्पिटल में पहली डेथ रिपोर्ट हुई थी, कल से लगातार यह सिलसिला जारी है। जिन लोगों का इलाज चल रहा है उनकी आंखों की रोशनी जाने का ख़तरा है। उनके भी हालात बहुत अच्छे नहीं हैं।"
छपरा में कई लोग यह भी दावा कर रहे हैं कि मौत के आंकड़े सरकारी आंकड़ों से कहीं ज़्यादा हो सकते हैं। दावा किया जा रहा है कि कई लोगों ने अपने मृतक परिवार वालों की जानकारी तक नहीं दी है। इसके पीछे बड़ी वजह ये है कि बिहार में शराब पीना ग़ैरक़ानूनी है और दूसरे शराब पीने को सामाजिक रूप से भी अच्छा नहीं माना जाता है।
सारण के एसपी संतोष कुमार का कहना है, "हम लोगों से अपील कर रहे हैं कि अगर कोई ऐसा मामला है तो वो बताएं ताकि बीमारों को बेहतर इलाज दिया जा सके। इसके अलावा हम टीम बनाकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं। जांच और छापेमारी भी कर रहे हैं। हमने 2 लोगों को गिरफ़्तार भी किया है और संदिग्ध पदार्थ भी ज़ब्त किए हैं ताकि उसकी जांच की जा सके।"
शराबबंदी के मुद्दे पर राजनीति
सारण के मशरख से दूर राज्य की राजधानी पटना और देश की राजधानी दिल्ली तक में इस घटना को लेकर राजनीतिक माहौल गरम है। विपक्ष लगातार इसके लिए राज्य सरकार और प्रशासन को ज़िम्मेवार ठहरा रहा है।
बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने एक ट्वीट कर दावा किया है है कि नीतीश कुमार के पहले 10 सालों में (शराबबंदी से पहले तक) शराब का टर्नओवर दो सौ करोड़ से चार हज़ार करोड़ तक पहुंच गया था।
वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर से कहा है कि "शराबबंदी सफल है और इसने लोगों का जीवन बदला है। शराबबंदी के बाद कई लोग बेहतर खाना खा रहे हैं और दूसरी चीज़ों पर ख़र्च कर पा रहे हैं।"
बिहार के सारण में ज़हरीली शराब पीने से कम से कम 26 लोगों की मौत को लेकर राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि 'जो शराब पिएगा वो मरेगा ही, ये तो उदाहरण सामने है। ऐसी बातों पर दुख प्रकट करना चाहिए और लोगों को समझाना चाहिए।'
राज्य में लागू शराबबंदी क़ानून पर विपक्ष की आलोचना झेल रहे नीतीश कुमार ने मीडिया से कहा, "ज़हरीली शराब से तो लोग मरते ही हैं, और देश भर में मरते है। जब शराबबंदी नहीं थी तो भी लोग यहां मरते थे।
लोगों को सचेत रहना चाहिए कि जो प्रतिबंधित है वो बेचा जा रहा है, तो कुछ गड़बड़ ही बेचेगा। लेकिन जो शराब पिएगा, वो मरेगा ही, ये तो उदाहरण सामने है। ऐसी बातों पर दुख प्रकट करना चाहिए और लोगों को समझाना चाहिए।"
नीतीश कुमार ने कहा, "समाज में कितना भी काम कीजिएगा फिर भी कुछ लोग गड़बड़ करते हैं। अपराध को रोकने के लिए पहले से कितना क़ानून बना हुआ है फिर भी हत्या करता है न।।। क्या कीजिएगा कुछ आदमी तो गड़बड़ करते हैं न।"
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस बयान पर कि 'जो पिएगा, वो मरेगा', बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी ने गुरुवार को कहा है कि देश में करोड़ों लोग शराब पीते हैं, क्या सभी को मर जाना चाहिए।
सुशील मोदी ने कहा कि बिहार में शराब का अवैध व्यापार एक समानांतर अर्थव्यवस्था बन चुकी है। उन्होंने आरोप लगाया कि जिनको बिहार में शराबबंदी लागू करने की ज़िम्मेदारी दी गई है, वे लोग करोड़ों रुपये बना रहे हैं।
बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री ने कहा कि बीजेपी शराबबंदी का समर्थन करती है, लेकिन उसके नेताओं की मांग है कि इस नीति पर पुनर्विचार किए जाने की ज़रूरत है।
बीजेपी सांसद और बिहार बीजेपी के अध्यक्ष संजय जायसवाल ने इस मुद्दे को संसद में उठाया है।
वहीं महाराजगंज के सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल ने बीबीसी से बातचीत में आरोप लगाया, "मेरी जानकारी में 50 लोग मरे हैं और इससे ज़्यादा लोग गंभीर हैं। लेकिन प्रशासन ने लोगों को डराया-धमकाया है और आंकड़े को छुपाया है। प्रशासन ने लोगों पर दबाव बनाया है कि ये बात बाहर आने से उन पर केस हो जाएगा। यह शराब की ग़लत नीति है।"
जनार्दन सिंह सिग्रीवाल के इलाक़े के ही सबसे ज़्यादा लोग ज़हरीली शराब पीने से मरे हैं।
बिहार के उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने विपक्ष के आरोप पर कहा है कि इसके ख़िलाफ़ छापे पड़ रहे हैं, सरकार की ज़िम्मेवारी है इसलिए प्रेस कांफ़्रेंस कर आंकड़े बताए जा रहे हैं। इससे पहले बुधवार को भी ज़हरीली शराब के मुद्दे पर बिहार विधानसभा में भारी हंगामा हुआ था।