अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो भारत के बाद 28 अक्टूबर को श्रीलंका पहुंचे। वहां उन्होंने चीन की कम्युनिस्ट सरकार को 'हिंसक जानवर' कहा। पॉम्पियो की इस टिप्पणी को लेकर श्रीलंका असहज हो गया और राष्ट्रपति गोटाभाया राजपक्षे को सफ़ाई देनी पड़ी। चीनी दूतावास ने कहा कि श्रीलंका-चीन आपसी संबंधों को आगे बढ़ाने में ख़ुद सक्षम हैं और किसी तीसरे देश की सलाह की ज़रूरत नहीं है।
श्रीलंकाई राष्ट्रपति ने ट्विटर पर अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो को टैग करते हुए लिखा, श्रीलंका हमेशा से अपनी विदेश नीति में तटस्थ रुख़ रखता आया है और हम ताक़तवर देशों के टकराव में नहीं उलझेंगे। माइक पॉम्पियो की इस टिप्पणी पर कोलंबो स्थित चीनी दूतावास ने कड़ी आपत्ति जताई और एक लिखित बयान जारी किया।
चीनी दूतावास ने कहा कि श्रीलंका-चीन आपसी संबंधों को आगे बढ़ाने में ख़ुद सक्षम हैं और किसी तीसरे देश की सलाह की ज़रूरत नहीं है। चीन ने कहा कि दौरा आदर और लाभकारी होना चाहिए न कि समस्या बढ़ाने के लिए। इससे पहले पॉम्पियो ने भारत के दौरे पर भी चीन को लेकर कई बातें कही थीं।
पॉम्पियो ने कहा था कि चीन से सीमा विवाद के मामले में भारत ख़ुद को अकेला ना समझे, अमेरिका उसके साथ खड़ा है। माइक पॉम्पियो और अमेरिकी रक्षामंत्री मार्क एस्पर के भारत दौरे पर 28 अक्टूबर को चीन के विदेश मंत्रालय का भी बयान आया।
चीनी विदेश मंत्रालय ने बुधवार को कहा कि अमेरिकी विदेश मंत्री फिर वही झूठ दोहरा रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय संबंध के मानकों का उल्लंघन कर रहे हैं। चीन ने कहा कि भारत के साथ सीमा विवाद द्विपक्षीय मुद्दा है और किसी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप के लिए कोई जगह नहीं है।
पॉम्पियो के दौरे और उनकी टिप्पणी को लेकर चीन की तरफ़ से दो कड़ी आपत्तियां आ चुकी हैं। एक भारत स्थित चीनी दूतावास की और दूसरी चीनी विदेश मंत्रालय की। मंगलवार को पॉम्पियो और मार्क एस्पर के 2+2 मंत्रीस्तरीय संवाद में भारत की तरफ़ से विदेश मंत्री एस जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह शामिल हुए थे।\
पॉम्पियो ने इस बैठक के बाद कहा था, संप्रभुता और स्वतंत्रता पर हमले की स्थिति में अमेरिका भारत की जनता के साथ खड़ा रहेगा। पॉम्पियो ने चीन की कम्युनिस्ट सरकार को भी निशाने पर लिया था। उन्होंने कहा था, चीन को लोकतंत्र, क़ानून, पारदर्शिता, स्वतंत्रता और इलाक़े की स्थिरता से कोई लेना-देना नहीं है।
चीन बनाम अमेरिका
चीनी विदेश मंत्रालय ने अमेरिका पर शीत युद्ध वाली मानसिकता और टकराव को हवा देने का आरोप लगाया। चीन ने कहा कि अमेरिका भारत और चीन के सीमा विवाद में ख़ुद को नहीं उलझाए। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा, मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि सीमा विवाद भारत और चीन का मसला है। इसमें किसी तीसरे पक्ष के लिए कोई जगह नहीं है। अभी सीमा पर स्थिति स्थिर है और दोनों पक्ष बातचीत के ज़रिए समस्या को सुलझाने में लगे हैं।
वहीं भारत स्थित चीनी दूतावास ने कहा है कि अमेरिका अलग-अलग समूहों को आपस में भिड़ाना चाहता है। चीन ने कहा, चीन द्विपक्षीय संबंधों को क्षेत्रीय स्थिरता, शांति और प्रगति के आधार पर आगे बढ़ाने की वकालत करता है। भारत के साथ सीमा विवाद द्विपक्षीय है।
दोनों देश राजनयिक और सैन्य स्तर पर बातचीत के ज़रिए मसले को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं। चीन और भारत के पास किसी भी आपसी समस्या को सुलझाने के लिए विवेक है। इस मामले में किसी भी तीसरे पक्ष की ज़रूरत नहीं है।
भारत और चीन लद्दाख में सरहद पर तनाव कम करने के लिए कोर कमांडर स्तर पर आठ चरण की बात करने वाले हैं।हालांकि अब भी सीमा पर यथास्थिति बहाल नहीं हो पाई है। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अब भी तनातनी की स्थिति है और मई महीने से पहले वाली स्थिति बहाल नहीं हो पाई है।
चीन ने ये भी कहा कि अमेरिका कोविड 19 से निपटने में नाकाम रहा है इसलिए अपनी समस्याओं को कहीं और शिफ़्ट करना चाहता है।चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा, इस साल हमारी सरकार कोविड 19 की लड़ाई जीतने में कामयाब रही है। दूसरी तरफ़ अमेरिका कोविड 19 की नाकामी को चीन पर आरोप लगाकर ख़ुद को बचाने में लगा है। हमें उम्मीद है अमरीकी नेतृत्व पहले अपनी समस्याओं से निपटने पर ध्यान लगाएगा न कि दूसरों पर आरोप लगाने में व्यस्त रहेगा।
चीन की कम्युनिस्ट सरकार के मुखपत्र माने जाना वाला अंग्रेज़ी अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने पॉम्पियो के दौरे और बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन अग्रीमेंट (बेका) को लेकर संपादकीय लिखा है।ग्लोबल टाइम्स ने अपनी संपादकीय टिप्पणी में लिखा है, कुछ लोगों को लग रहा है कि अमेरिका और भारत की सैन्य साझेदारी नई करवट ले रही है लेकिन यह केवल मनोवैज्ञानिक और क्षणिक है। भारत और अमेरिका के बीच यह समझौता बहुत प्रभावी साबित नहीं होगा। चीन को इससे लेकर घबराने की ज़रूरत नहीं है। चीन को चाहिए कि वो इससे ब्लैकमेल नहीं हो।
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, भारत को लंबे वक़्त से चीन के बारे में रणनीतिक संदेह रहे हैं। हाल के सीमा विवाद से यह और गहरा गया है। लेकिन भारत अमेरिका से नज़दीकी बढ़ाकर चीन को सीमा पर टक्कर नहीं दे सकता है। भारत अमेरिका के क़रीब जाकर चीन पर मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है लेकिन गलवान घाटी से लेकर पैंगोंग लेक तक ये बात सच साबित नहीं होगी।
दोनों देश कोरोना महामारी में बुरी तरह से फंसे हुए हैं तब इस तरह के संवाद को आगे बढ़ा रहे हैं। अगर दोनों देश ये काम कुछ दशक पहले कर रहे होते और निशाना वो देश होता जो ताक़त के दम पर अपना विस्तार में लगा था, तो सफलता भी मिलती। लेकिन दोनों देशों ने ग़लत वक़्त और ग़लत निशाना चुन लिया है।
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, चीन अपना भूराजनीतिक विस्तार नहीं चाहता है लेकिन चीन का बाक़ी दुनिया के साथ जो सहयोग है उसे रोका नहीं जा सकता है। अगर अमेरिका वाक़ई चीन से लड़ना चाहता है तो हमारे बाज़ार से अपने कृषि उत्पाद का निर्यात बंद करे। अपने बर्गर, कोक, जीएम उत्पाद और आईफ़ोन को हमारे बाज़ार में बेचना बंद करे।
अमेरिका अपने क़रीबी सहयोगी ऑस्ट्रेलिया को चीन से कारोबारी संबंध समेटने के लिए तैयार कर ले। अगर अमेरिका ये सब कर पाने में सफल होता है तो तभी दुनिया को यक़ीन होगा कि वो चीन से संबंधों की समीक्षा कर रहा है।