कोरोना वायरस की वैक्सीन को लेकर टॉप के वैज्ञानिक ने ऐसा क्यों कहा?

BBC Hindi
शुक्रवार, 22 मई 2020 (08:10 IST)
ह्यूमन इम्यूनोडेफ़िशियेंसी वायरस (HIV) पर शोध करने वाले अमेरिका के एक नामी वैज्ञानिक ने कहा है कि 'उन्हें नहीं लगता कि कोरोना वायरस की वैक्सीन जल्द आने वाली है।'
 
विलियम हेसलटाइन जिनके कैंसर, एचआईवी समेत अन्य प्रोजेक्ट्स पर किए काम की काफ़ी चर्चा रही है, उनसे पूछा गया था कि 'कोविड-19 का टीका कितनी जल्द विकसित होने की संभावना है?'
 
इसके जवाब में उन्होंने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा कि 'वे इसका इंतज़ार नहीं करना चाहेंगे क्योंकि उन्हें नहीं लगता कि निकट भविष्य में यह संभव है।' उन्होंने कहा है कि 'कोरोना वायरस महामारी को रोकने के लिए ज़रूरी है कि मरीज़ों की बेहतर पड़ताल की जाए, उन्हें सही तरीक़े से ढूंढा जाए और जहाँ संक्रमण फ़ैलता दिखे, वहीं उसे सख़्त आइसोलेशन के ज़रिए रोका जाए।'
 
अमेरिका की सरकार को परामर्श देते हुए उन्होंने कहा है कि 'उन्हें टीके के इंतज़ार में नहीं बैठे रहना चाहिए। अगर शीर्ष नेता ये सोच रहे हैं कि टीका तैयार होने की घोषणा के आधार पर ही वे लॉकडाउन के प्रतिबंधों में छूट देने का निर्णय करेंगे, तो यह रणनीति सही नहीं है।'
 
अन्य किस्मों के कोरोना वायरस के लिए पहले जो वैक्सीन तैयार की गई हैं, वो नाक को संक्रमण से सुरक्षा देने में विफल रही है जहाँ से वायरस के शरीर में दाखिल होने की सबसे ज़्यादा आशंका रहती है।
 
विलियम हेसलटाइन ने कहा है कि 'बिना किसी प्रभावी इलाज या फिर टीके के भी कोरोना वायरस को कंट्रोल किया जा सकता है। इसके लिए संक्रमण की सही पहचान ज़रूरी है। जो लोग संक्रमित हैं, उन्हें आइसोलेशन में रखना सबसे ज़्यादा कारगर है। बाक़ी लोग हाथ धोते रहें, मास्क पहनें और सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाली चीज़ों और जगहों को साफ़ रखें, तो भी इसमें काफ़ी कमी आ सकती है।'
 
विलियम हेसलटाइन मानते हैं कि चीन और कई अन्य एशियाई देशों ने इस वैकल्पिक रणनीति को बहुत प्रभावशाली तरीक़े से लागू किया है जबकि अमेरिका में ऐसा नहीं देखा गया कि जो लोग वायरस से संक्रमित हो गए हों, उन्हें सख़्त आइसोलेशन में रखा गया हो।
 
उनके अनुसार चीन, दक्षिण कोरिया और ताइवान इस तरीक़े से कोरोना वायरस की संक्रमण दर को कम करने में सफल रहे हैं जबकि अमेरिका, रूस और ब्राज़ील इसमें नाकाम रहे।
 
प्रोफ़ेसर विलियम ने कहा, "जानवरों पर कोविड-19 के रिसर्च वैक्सीन आज़माने से अब तक यह तो पता चला है कि इनसे मरीज़ के शरीर में, ख़ासतौर से फ़ेफड़ों में संक्रमण का असर कम होता देखा गया है।"
 
कुछ देशों में प्लाज़्मा थेरेपी का भी ट्रायल चल रहा है। इस थेरेपी में कोविड-19 से ठीक हुए मरीज़ों के शरीर से एंटी-बॉडी लेकर संक्रमित मरीज़ों के शरीर में डाल दी जाती हैं। माना जा रहा है कि इससे मरीज़ों में कोरोना वायरस से लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है।
 
कुछ दवा कंपनियाँ अब इसी थेरेपी के मद्देनज़र बेहतर और रिफ़ाइंड सीरम तैयार कर रही हैं जिसके कोविड-19 के मरीज़ों में काम करने की संभावना है। प्रोफ़ेसर विलियम भी इस विधि के सफ़ल होने की काफ़ी संभावना मानते हैं।
 
उनका कहना है कि यह भविष्य में इसका पहला इलाज साबित हो सकता है क्योंकि ये एटी-बॉडी जिन्हें हाइपरइम्यून ग्लोब्यूलिन कहा जा रहा है, मानव शरीर के हर सेल में जाकर उसे वायरस को चित करने की क्षमता देती हैं।
 

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

India-Pakistan Conflict : सिंधु जलसंधि रद्द होने पर प्यासे पाकिस्तान के लिए आगे आया चीन, क्या है Mohmand Dam परियोजना

Naxal Encounter: कौन था बेहद खौफनाक नक्‍सली बसवराजू जिस पर था डेढ़ करोड़ का इनाम?

ज्‍योति मल्‍होत्रा ने व्‍हाट्सऐप चैट में हसन अली से कही दिल की बात- कहा, पाकिस्‍तान में मेरी शादी करा दो प्‍लीज

भारत के 2 दुश्मन हुए एक, अब China ऐसे कर रहा है Pakistan की मदद

गुजरात में शेरों की संख्या बढ़ी, खुश हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

सभी देखें

मोबाइल मेनिया

iQOO Neo 10 Pro+ : दमदार बैटरी वाला स्मार्टफोन, जानिए क्या है Price और Specifications

itel A90 : 7000 रुपए से भी कम कीमत में लॉन्च हुआ iPhone जैसा दिखने वाला स्मार्टफोन

सिर्फ एक फोटो से हैक हो सकता है बैंक अकाउंट, जानिए क्या है ये नया व्हाट्सएप इमेज स्कैम

Motorola Edge 60 Pro : 6000mAh बैटरी वाला तगड़ा 5G फोन, जानिए भारत में क्या है कीमत

50MP कैमरे और 5000 mAh बैटरी वाला सस्ता स्मार्टफोन, मचा देगा तूफान

अगला लेख