राजस्थान में 'राइट टू हेल्थ' बिल पर बवाल, डॉक्टर सड़कों पर, अस्पतालों पर ताला

BBC Hindi
शुक्रवार, 31 मार्च 2023 (07:55 IST)
मोहर सिंह मीणा, बीबीसी हिन्दी के लिए, जयपुर से
कोरोना काल में सड़कों पर सन्नाटा पसरा हुआ था। अस्पतालों में मरीज़ों की क़तारें थीं। डॉक्टर चौबीस घंटे मरीज़ों के इलाज में जुटे हुए थे। लेकिन अब राजस्थान की सड़कों पर आम दिनों की तरह वाहनों की क़तारें हैं। निजी अस्पतालों पर ताला है और डॉक्टर सड़कों पर उतर आए हैं।
 
राजस्थान विधानसभा में 21 मार्च को पास हुए 'राइट टू हेल्थ' बिल को लेकर डॉक्टर्स का विरोध लगातार बढ़ता जा रहा है। राज्य में बुधवार को सभी निजी और सरकारी डॉक्टर्स एसोसिएशन ने एक दिन की हड़ताल बुलाई। राज्य के अधिकतर निजी अस्पताल बिल पेश होने के बाद से ही पूरी तरह बंद हैं।
 
सवाई मानसिंह अस्पताल में चरक भवन के नज़दीक जयपुर मेडिकल एसोसिएशन (जेएमए) का कार्यालय है। यहां बड़ी संख्या में डॉक्टर्स इकट्ठा हुए। चार डॉक्टर क्रमिक अनशन पर बैठे हैं, मंच से बिल के विरोध में आवाज़ें बुलंद की जा रही हैं। कार्यालय के बाहर 'राइट टू हेल्थ' बिल के विरोध में बैनर लगा कर डॉक्टर ई-रिक्शा चला रहे हैं, जूस की दुकान लगाकर विरोध दर्ज करा रहे हैं।
 
इस बीच बुधवार रात रेजिडेंट डॉक्टर्स की सरकार के साथ बातचीत हुई। इसमें सहमति बनने के बाद कई रेजिडेंट डॉक्टर्स गुरुवार सुबह से काम पर लौट आए हैं लेकिन निजी डॉक्टर अब भी विरोध कर रहे हैं।
 
हालांकि रेजिडेंट डॉक्टर भी आपस में बंटे हुए नज़र आ रहे हैं। कुछ रेजिडेंट डॉक्टर वापस काम पर लौट आए हैं जबकि कुछ अब भी विरोध में हैं। जबकि निजी अस्पताल बंद हैं।
 
निजी अस्पताल पूरी तरह बंद
राज्य में छोटे-बड़े मिला कर क़रीब नौ हज़ार अस्पताल डॉक्टर्स एसोसिएशन के आह्वान पर बुधवार को पूरी तरह बंद रहे। जयपुर के केलगिरी मार्ग पर मौजूद रूंगटा अस्पताल के बाहर दो एंबुलेंस खड़ी हैं। गेट पर सुरक्षाकर्मी मौजूद हैं। वह कहते हैं, "अंदर कोई नहीं है। 22 मार्च से ही अस्पताल बंद है।"
 
यह हाल सिर्फ़ इसी एक अस्पताल का नहीं है। जयपुर के जेएलएन मार्ग पर फ़ोर्टिस अस्पताल में भी सन्नाटा पसरा हुआ है। अस्पताल में मौजूद सुरक्षाकर्मी बताते हैं, "बिल आने के बाद से ही पूरी तरह अस्पताल बंद है।" सरकारी अस्पतालों के भी कई डॉक्टर हड़ताल में शामिल हैं।
 
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सलाहकार और सिरोही से निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा बीबीसी से फ़ोन पर कहते हैं, ''मैं ख़ुद अभी ज़िला अस्पताल में मौजूद हूं। हमने ग्रामीण क्षेत्र से डॉक्टर बुलवाए हैं ताकि मरीज़ों को तक़लीफ़ न हो।" उन्होंने कहा, "सरकार ने डॉक्टरों की सभी मांगें मान ली हैं। हमारी अपील है कि डॉक्टर अपनी हड़ताल ख़त्म करें।''
 
राज्यभर में डॉक्टरों की हड़ताल से मरीज़ और उनके परिजन परेशान हैं। इलाज मिलेगा या नहीं यह संशय बना हुआ है, इसके चलते मरीज़ अस्पताल नहीं पहुंच रहे हैं।
 
सरकार का बिल वापसी से इनकार
21 मार्च को विधानसभा में बिल पास हुआ था, उस समय बिल का विरोध कर रहे डॉक्टर्स पर पुलिस ने लाठियां बरसाई थीं। 'राइट टू हेल्थ' बिल को लेकर राज्य सरकार और डॉक्टर्स के बीच मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, चिकित्सा मंत्री समेत कई स्तरों पर मीटिंग हुई है, लेकिन अब तक कोई समाधान नहीं निकाला जा सका है।
 
हालांकि, डॉक्टर्स अब बिल में बदलाव की जगह बिल ही वापस लेने की मांग कर रहे हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के मीडिया चेयरमैन डॉ संजय गुप्ता ने बीबीसी से कहा, यह बिल डॉक्टर्स के ख़िलाफ़ है। बिल वापसी से पहले हड़ताल ख़त्म नहीं होगी। सरकार डॉक्टर्स के कान पर बंदूक लगा कर काम करवाना चाहती है, जो संभव नहीं है।"
 
राज्य की अशोक गहलोत सरकार में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा ने बीबीसी से बातचीत के दौरान बिल वापस लेने से स्पष्ट इनकार कर दिया है।
 
मंत्री मीणा ने बीबीसी से कहा, "बिल वापस किसी क़ीमत पर नहीं होगा। यह डॉक्टर्स को बता दिया गया है।"
 
उन्होंने कहा, "डॉक्टर्स की सभी मांगे मानी गई हैं। यदि फिर भी कोई बात छूट गई है तो रूल्स में डाल देंगे। बिल वापसी के अलावा सारी बातें मंजूर हैं, बिल वापस करने की बात करने का डॉक्टर्स का अधिकार नहीं है, विधानसभा में सर्वसहमति से बिल पास हुआ है।"
 
मंत्री ने कहा, "बिल अब पास हो चुका है। गवर्नर के पास जा चुका है, जल्द ही स्वीकृत होने वाला है।"
 
डॉक्टरों की मांगें क्या हैं
निजी अस्पताल में न्यूरोलॉजिस्ट डॉ राजवेंद्र चौधरी ने डॉक्टर्स की मांगों को लेकर बीबीसी से बातचीत की। डॉ राजवेंद्र चौधरी, जयपुर रेज़िडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के सर्वाधिक समय तक न सिफ अध्यक्ष रहे हैं बल्कि वे सरकारी अस्पताल में डॉक्टर भी रहें हैं।
 
राजवेंद्र चौधरी ने बीबीसी से कहा कि बिल में मौजूद नियमों से डॉक्टर्स कभी भी ड्यूटी नहीं कर पाएंगे। अब डॉक्टर सरकार के इस बिल के साथ बिलकुल डॉक्टरी करने को तैयार नहीं हैं। हमारी सिर्फ़ एक ही मांग है सरकार बिल को वापस ले। जब तक सरकार बिल वापस लेने पर नहीं मान जाती है, तब तक डॉक्टर्स वापस काम पर नहीं लौटेंगे।
 
डॉ चौधरी का कहना है कि, "बिल में इमरजेंसी इलाज को लेकर बात कही गई हैं। इसमें बहुत बड़ा कॉन्फ्लिक्ट है। इमरजेंसी शब्द को सरकार और मरीज़ जस्टिफाई नहीं कर पाएंगे।" दूसरा मसला समय से भुगतान को लेकर है।
 
वह आगे कहते हैं, "सरकार की चिरंजीवी और आरजीएचएस योजनाओं का करोड़ों रुपए का पेमेंट समय पर नहीं हो रहा है। ऐसे में सरकार कह रही है कि इमरजेंसी के बिल का समय से भुगतान किया जाएगा। इसलिए यह बिल हमारे लिए बहुत घातक है।"
 
वह आगे कहते हैं, "इस बिल से डॉक्टर्स और मरीज़ों के बीच और अधिक झगड़े बढ़ेंगे। अभी तक मरीज़ और डॉक्टर्स के बीच ज़मीनी स्तर पर सामंजस्य नहीं बैठ सका है, इसलिए बिल का विरोध है।"
 
"सरकार फ्री के नाम पर निजी डॉक्टर्स की व्यवस्था को बर्बाद कर देना चाहती है। बिल वापस नहीं होने तक डॉक्टर्स हड़ताल पर ही रहेंगे।"
 
हड़ताल से लोग परेशान
जयपुर के बड़े सरकारी सवाई मानसिंह अस्पताल, जेके लोन और जयपुरिया अस्पतालों में मरीज़ों की भीड़ लगी रहती थी। लेकिन, अब पहले से कम मरीज़ आ रहे हैं। गंभीर स्थिति वाले ही मरीज़ों की संख्या ज़्यादा है। लोगों को डर है कि अस्पतालों में डॉक्टरों की हड़ताल के चलते इलाज मिलेगा भी या नहीं।
 
राज्य के सबसे बड़े सरकारी सवाई मानसिंह अस्पताल के दो नंबर गेट से अंदर ठीक सामने मरीज़ और उनके परिजन बैठे हुए हैं। जयपुर के जगतपुरा की रहने वाली कविता भी इसी जगह बैठी हुई हैं। वह बीबीसी से कहती हैं, "हड़ताल के चलते हमारे मरीज़ को देखने के लिए डॉक्टर्स नहीं हैं। कंपाउंडर इलाज कर रहे हैं।"
 
"मेरे भाई साहब भर्ती हैं, उनको अस्थमा की बीमारी है और सांस लेने में परेशानी हो रही है। पैसा दे कर प्राइवेट अस्पताल में दिखा देते। लेकिन, प्राइवेट अस्पताल भी बंद हैं, हम जाएं तो कहां जाएं।"
 
यहीं अस्पताल परिसर में सवाई माधोपुर से अपनी पत्नी के इलाज के लिए आए देवेंद्र शर्मा भी हड़ताल के चलते परेशान नज़र आ रहे थे। वह कहते हैं, "मेरी पत्नी सुशीला शर्मा भर्ती हैं। उनका हाथ गन्ने की मशीन में आ गया था। यहां आठ दिन से हैं, लेकिन ठीक से इलाज नहीं हो रहा है।"
 
हड़ताल से सिर्फ़ मरीज़ ही नहीं बल्कि एंबुलेंस वाले भी ख़ासे परेशान हैं। भरतपुर नंबर की एक निजी एंबुलेंस में ड्राइवर लाखन सिंह बैठे हैं।
 
वह बीबीसी से बातचीत कहते हैं, "डॉक्टर्स की हड़ताल के चलते बीते क़रीब दस दिन से मरीज़ों को लाना ले जाना नहीं हो पा रहा है। क्योंकि अब पहले जितने मरीज़ ही नहीं आ रहे हैं।"
 
"हड़ताल से पहले जयपुर से बाहर के कई ज़िलों के दो से तीन मरीज़ों को लाने और ले जाने का काम मिलता था। लेकिन, अब किसी किसी दिन ही काम मिलता है।"
 
राज्य के इस सबसे बड़े अस्पताल के ठीक सामने दवाइयों की दुकानें हैं। यहां हमेशा जो भीड़ रहती थी, अब कुछ ही लोग नज़र आ रहे हैं।
 
एक दवाई की दुकान चलाने वाले मनीष कुमार जैन बीबीसी से हड़ताल के बाद की स्थिति बताते हुए कहते हैं, "हमें दिन में जहां खाना खाने की फुर्सत नहीं होती थी। अब पूरे दिन ही खाली बैठे रहते हैं।"
 
"कोई नया मरीज़ नहीं आ रहा है और निजी अस्पताल बंद होने से भी मरीज़ों की संख्या बिलकुल न के बराबर है।"
 
डॉक्टर की हड़ताल से मरीज़ को साथ साथ इनसे जुड़े कामधंधे भी प्रभावित हुए हैं।
 
'राइट टू हेल्थ' बिल पर विवाद क्यों?
राजस्थान भारत का पहला राज्य है जहां 'राइट टू हेल्थ' यानी कि स्वास्थ्य का अधिकार अधिनियम विधानसभा में पारित हुआ है।
 
'राइट टू हेल्थ' बिल के ज़रिए आम नागरिक को स्वास्थ्य का अधिकार देने का प्रयास है। इसके लागू होने के बाद कोई भी डॉक्टर और अस्पताल इलाज के लिए मरीज़ को इनकार नहीं कर सकेंगे।
 
इमरजेंसी में आने वाले मरीज़ों के पास यदि पैसा नहीं है या उनके पास चिरंजीवी बीमा नहीं है तो राज्य सरकार इसका पैसा भुगतान करेगी।
 
बिल के तहत प्रावधान है कि मरीज़ को पैसे के चलते इलाज के लिए इनकार करने पर पहली बार दस और फिर 25 हज़ार रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा।
 
बिल के अन्य प्रावधानों पर भी डॉक्टर्स को खासी आपत्ति है और बिल वापसी नहीं होने तक हड़ताल जारी रखने का फैसला लिया है।
 
बिल में स्पष्ट नहीं है कि सरकार भुगतान कब और कैसे करेगी, इस पर भी आपत्ति है। हालांकि, चिकित्सा मंत्री ने विधानसभा में कहा है कि जब रूल्स बनाएंगे तब यह सब स्पष्ट कर देंगे। लेकिन, डॉक्टर्स को सरकार के वादों पर भरोसा होता नज़र नहीं आ रहा है।
 
सिलेक्ट कमेटी में क्या हुआ?
चिकित्सा मंत्री परसादी लाल मीणा ने बीबीसी से कहा, "बिल बनाने से पहले डॉक्टर्स से बात की गई है। सिलेक्ट कमेटी और मुख्य सचिव ने भी डॉक्टर्स की बात को सुना है। डॉक्टर्स के जो सुझाव थे, वो हमने शामिल करके बिल पेश किया।"
 
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सलाहकार और निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा ने भी बीबीसी से कहा, "डॉक्टर्स की सभी मांगों को माना गया है।"
 
डॉक्टर डॉ राजवेंद्र चौधरी ने मंत्री की बात को खारिज करते हुए कहा, "सरकार यह प्रचारित कर रही है कि बिल को लेकर डॉक्टर्स की मांगे मान ली गई हैं। लेकिन, यह बिल्कुल झूठ है। डॉक्टर्स की एक भी मांग नहीं मानी गई है।"
 
डॉ चौधरी कहते हैं, "सरकार ने जैसा बिल सोचा था वही लाकर विधानसभा में पारित करवाया है। बिल पारित होने के बाद जब हम डॉक्टर्स ने देखा तो मालूम हुआ कि सरकार निजी और सरकारी डॉक्टर्स को ख़त्म कर देना चाहती है।"
 
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के मीडिया चेयरमैन डॉ संजय गुप्ता ने बीबीसी से कहा, "मुख्य सचिव और चिकित्सा सचिव ने हमारी बातें नहीं सुनी हैं।"
 
विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष और पूर्व चिकित्सा मंत्री व 'राइट टू हेल्थ' बिल की सिलेक्ट कमेटी के सदस्य और वर्तमान में चूरू से विधायक राजेंद्र राठौड़ ने बीबीसी से कहा, "यह बिल बिना तैयारी के लाया गया है। सिलेक्ट कमेटी में भी डॉक्टर्स की बात को सुनने भर की औपचारिकता पूरी की गई है। डॉ ऑब्जेक्शन करते रहे, लेकिन इन्होंने सुना नहीं।"
 
राठौड़ ने कहा, "हमने लिखित में सिलेक्ट कमेटी में इसका एतराज किया था। विधानसभा में भी हमने यह बात कही थी कि मल्टीस्पेशलिटी में लेकर नहीं आएंगे तब यह लागू नहीं होगा। सरकार सिर्फ़ वाहवाही लूटने के लिए लेकर आ रही है।"
 
उन्होंने कहा, "सिलेक्ट कमेटी में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के डॉक्टर्स ने कहा था कि, आप इसको डिफाइन कर रहे हो, एक्ट में सारी बातें रखो। लेकिन, इन्होंने कहा कि हम रूल्स में डाल देंगे।"
 
"डॉक्टर्स ने भुगतान को लेकर भी आपत्ति दर्ज कराई थी। डॉक्टर्स ने कहा था कि अन्य स्वास्थ्य योजनाओं का भुगतान सालों तक नहीं होता है, आप हमसे 'राइट टू हेल्थ' के नाम पर सेवा लेना चाहते हैं लेकिन भुगतान कैसे होगा और कौन से अस्पताल में इलाज होगा इसको कैसे डिफाइन करेंगे।"
 
हड़ताल पर सरकार की सख्ती
डॉक्टर्स की हड़ताल से राज्यभर के मरीज़ों को इलाज के लिए परेशानी हो रही है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत समेत कई मंत्रियों ने डॉक्टर्स से हड़ताल वापस लेने की अपील की है।
 
डॉक्टर्स की हड़ताल और मरीज़ों की बढ़ती परेशानी को लेकर चिकित्सा मंत्री परसादी लाल ने बीबीसी से कहा, "सरकार पूरे इंतज़ाम कर रही है। सरकारी डॉक्टर्स ने अवकाश मांगा था, उन सबको निरस्त कर दिया गया है। ज़रूरत पड़ेगी तो और डॉक्टर्स भर्ती कर लेगें।"
 
"डॉक्टर अपनी शपथ को भूल गए हैं, पहली बार हो रहा है कि डॉक्टर्स अपने चिकित्सक धर्म को भूल गए हैं।"
 
चिकित्सा विभाग ने 28 मार्च को आदेश जारी कर राज्य के सभी मेडिकल कॉलेजों से डॉक्टर्स, रेज़िडेंट, चिकित्सक शिक्षकों, पैरामेडिकल और नर्सिंग स्टाफ की उपस्थित हर दिन सुबह 9।30 बजे तक भिजवाने के लिए कहा गया है।
 
आदेश में कहा गया है कि स्वेच्छा से अवकाश लेने और कार्य बहिष्कार करने वाले चिकित्सकों व स्टाफ पर कार्रवाई की जाएगी।
 
आदेश के ज़रिए सरकार ने सभी एचओडी को निर्देश दिए हैं कि रेज़िडेंट डॉक्टर अपने कर्तव्य में लापरवाही, राजकीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं और मरीज़ या उनके परिजन के साथ दुर्व्यवहार करते हैं तो उनका रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया जाए।
 

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