'लौट आई, पर मैं अब एक गंदी औरत थी...'

Webdunia
मंगलवार, 2 अगस्त 2016 (14:21 IST)
कोलकाता से दिव्या दत्ता

पूरे भारत में हर साल लाखों औरते कभी नौकरी के झूठे वायदे में फांसकर तो कभी अपने ही पति के झांसे का शिकार होकर देह व्यापार में धकेली जाती हैं। एक बार कोठे में फंस जाने के बाद अगर वो बाहर निकल भी आएं तो गांव कस्बे में लौटकर इज्जत से गुजर-बसर कर पाना बड़ी चुनौती होती है।
कोलकाता में एक समाजसेवी संस्था ऐसी औरतों को अपना बिसनेस लगाने के लिए पैसे दे रही है। लेकिन कितनी बदली है उनकी जिंदगी?
 
पढ़ें- मानव तस्करी और देह व्यापार से बचकर निकली एक औरत की कहानी, उन्हीं की जुबानी-
'मैं सेक्स-वर्क नहीं करना चाहती थी, इसलिए कभी थप्पड़, कभी लकड़ी, रॉड या बेल्ट से, वो मुझे बहुत मारते थे। मेरे पैर और कमर पर अभी तक दाग हैं। मैं बीमार भी पड़ गई। अस्पताल तक ले जाना पड़ा। पर फिर मुझे मानना ही पड़ा। बहुत रोती थी, दुखी रहती थी।
 
आखिर में एक रात एसिड और मिर्ची को खिड़की की ग्रिल पर लगाकर उसे पिघलाया और मैं और दो लड़कियां वहां से भाग गईं।
 
गांव लौटी तो लोगों ने मुझसे बात करना बंद कर दिया। उनकी नजर में मैं गंदी लड़की हो गई थी। मैं बहुत रोती, और सोचती थी कि मैं मर जाऊं. ज़िंदगी से मन उचाट हो गया था।
 
ट्रैफिकिंग से पहले मैं स्कूल में पढ़ाई के साथ स्टार आनंदो नाम के चैनल में थोड़ा बहुत काम कर रही थी। वो सब छूट गया. 16 साल की उम्र में जब पढ़ाई पूरी कर मैं अपनी ज़ंदगी में कुछ बन सकती थी, तब ये सब हो गया। अब क्या सपने देखती? क्या नौकरी करती?
 
फिर एक समाजसेवी संस्था ने मुझे दुकान लगाने की ट्रेनिंग दी, पैसा दिया। वहां दीदी थीं जो हमसे बात करती थीं. तभी दिल हल्का हुआ, जो सब अंदर जम गया था, बाहर निकल आया। दुकान के जरिए ही गांववालों से भी बातचीत शुरू हुई। जब वो कुछ लेने आते तो बात तो करनी पड़ती थी। और पैसे भी कमाने लगी।
 
इस बीच मेरे स्कूल के एक लड़के के दोस्त को मैं पसंद आ गई। वो मुझसे प्यार करने लगा। मैं ना मानती तो हाथ जला लेता, नस काट लेता। पर मैंने भी उसे कहा मैं झूठ के सहारे ये रिश्ता नहीं बनाऊंगी। मेरे बारे में सब जानकर फिर मुझे पसंद करो, तब प्यार करूंगी। उसने सब सुना और रो पड़ा। फिर हमने शादी की। पर उसके घर में हमने ये सच आज तक किसी को नहीं बताया है।
 
अब मेरी डेढ़ साल की बेटी है। मैं उसे बहुत हिम्मती बनाना चाहती हूं। मेरे पति और मेरा यही सपना है कि उसे ठीक से पढ़ाएं, अपने पैरों पर खड़े होने के काबिल बनाएं ताकि उसकी ज़िंदगी उसके हाथ में हो।'
(दिव्या आर्य ने इस महिला से कोलकाता में बात की थी। उनके अनुरोध पर उनकी पहचान ज़ाहिर नहीं की गई है।)

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