Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

जो बिडेन : बराक ओबामा के साथी से राष्ट्रपति के पद तक

हमें फॉलो करें जो बिडेन : बराक ओबामा के साथी से राष्ट्रपति के पद तक

BBC Hindi

, शनिवार, 7 नवंबर 2020 (23:59 IST)
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में जीत दर्ज करने वाले जो बिडेन पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के दोनों कार्यकाल में उप-राष्ट्रपति रह चुके हैं। 77 साल के जो बिडेन अब से पहले राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के दौड़ में भी दो बार और शामिल हो चुके हैं। पहली बार 1988 और दूसरी बार 2008 में। पहली बार 1988 में उन्होंने राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की दौड़ से ख़ुद को ये कहते हुए बाहर कर लिया था कि उन्होंने ब्रिटिश लेबर पार्टी के नेता नील किनॉक के भाषण की नकल की थी।

दरअसल, जब 1987 में बिडेन ने राष्ट्रपति चुनाव में प्रत्याशी बनने के लिए पहली बार कोशिश करनी शुरू की थी, तो उन्होंने रैलियों में दावा करना शुरू कर दिया था कि, मेरे पुरखे उत्तरी पश्चिमी पेंसिल्वेनिया में स्थित कोयले की खानों में काम करते थे। बिडेन ने भाषण में ये कहना शुरू कर दिया था कि उनके पुरखों को ज़िंदगी में आगे बढ़ने के वो मौक़े नहीं मिले जिनके वो हक़दार थे, और वो इस बात से बेहद ख़फ़ा हैं।

मगर, हक़ीक़त ये है कि बिडेन के पूर्वजों में से किसी ने भी कभी कोयले की खदान में काम नहीं किया था। सच तो ये था कि बिडेन ने ये नील किनॉक के संबोधन की नक़ल करते हुए कहा था। नील किनॉक के पुरखे वाक़ई कोयला खदान में काम करने वाले मज़दूर थे।

इसके बाद वो 2008 में भी डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की दौड़ में शामिल हुए, लेकिन उस वक़्त बराक ओबामा पार्टी की ओर से उम्मीदवार बना दिए गए थे। तब वो उप-राष्ट्रपति के तौर पर चुने गये। माना जाता है कि अमरीकी विदेश नीति पर उनकी शानदार पकड़ की वजह से बराक ओबामा ने उन्हें उप-राष्ट्रपति पद के लिए अपनी पसंद बनाया था।

बराक ओबामा ने अपनी जीत के मौक़े पर दिए भाषण में बिडेन की तारीफ़ करते हुए कहा था कि इस यात्रा में मेरे सहयोगी ने दिल से मेरा साथ दिया है। बराक ओबामा ने बाद में उन्हें अमेरिका को मिला अब तक का सबसे बेहतरीन उप-राष्ट्रपति” भी बताया था। बिडेन एफ़ोर्डेबल केयर एक्ट, आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज और वित्तीय उद्योग सुधार जैसे ओबामा के फ़ैसलों के मज़बूत समर्थक रहे हैं।

जो बिडेन डेलावेयर प्रांत से छह बार सीनेटर रह चुके हैं। 1972 में वो पहली बार यहाँ से सीनेटर चुने गए थे। उस वक्त वो सबसे कम उम्र के सीनेटर थे। उस समय उनकी उम्र महज़ 30 साल थी।

प्रारंभिक जीवन
जो बिडेन का जन्म पेंसिल्वेनिया के स्क्रैनटॉन में 1942 एक आइरिश-कैथोलिक परिवार में हुआ था। उनके अलावा उनके तीन और भाई-बहन हैं। उनका परिवार बाद में पेंसिल्वेनिया छोड़ कर अमरीका के उत्तरी-पूर्वी राज्य डेलावेयर चला गया। वहाँ स्कूली पढ़ाई के बाद जो बिडेन ने यूनिवर्सिटी ऑफ़ डेलावेयर और साइराकुज़ लॉ स्कूल से अपनी पढ़ाई पूरी की।

अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत में उन्होंने अमेरिकी बच्चों के बीच नस्लीय भेदभाव कम करने के लिए एक साथ पढ़ाने का विरोध करने वालों का साथ दिया था। तब दक्षिण के अमरीकी राज्य इस बात के ख़िलाफ़ थे कि गोरे अमरीकी बच्चों को बसों में भर कर काले बहुल इलाक़ों में ले जाया जाए।

इस बार के चुनाव अभियान के दौरान, बिडेन को उनके इस स्टैंड के लिए बार-बार निशाना बनाया गया। वो 1994 में लाए गए अपराध रोकने वाले बिल के भी मज़बूत समर्थक रहे हैं। इस बिल के आलोचकों का कहना है कि इसकी वजह से बड़े पैमाने पर लंबी सज़ाओं और हिरासत में रखे जाने को बल मिला। जो बिडेन के इस तरह के रुख़ के कारण कई बार उनकी पार्टी को असहज स्थिति का सामना करना पड़ा है।

2012 में वो उस वक़्त सुर्खियों में आ गए थे जब उन्होंने खुलकर समलैंगिक विवाह का समर्थन किया था। इसे उस वक्त के राष्ट्रपति बराक ओबामा को नज़रअंदाज करने के तौर पर देखा गया था क्योंकि उस वक्त तक ओबामा ने खुलकर इस पर अपनी राय नहीं रखी थी। बिडेन के समर्थन के कुछ दिनों के बाद आख़िरकार ओबामा ने समलैंगिकता के पक्ष में बयान दिया था।

पारिवारिक जीवन
जो बिडेन 1972 में पहली बार अमरीकी सीनेट का चुनाव जीत कर शपथ लेने की तैयारी कर रहे थे, तभी उनकी पत्नी नीलिया और बेटी नाओमी की एक कार दुर्घटना में मौत हो गई। इस हादसे में उनके दोनों बेटे ब्यू और हंटर भी ज़ख़्मी हो गए थे। 2015 में ब्यू की 46 साल की उम्र में ब्रेन ट्यूमर से मौत हो गई थी।

बीबीसी वर्ल्ड सर्विस के पीटर बाल अपनी रिपोर्ट में लिखते हैं कि इतनी कम उम्र में इतने क़रीबी लोगों को गंवा देने के कारण, आज बिडेन से बहुत से आम अमरीकी लोग जुड़ाव महसूस करते हैं। लोगों को लगता है कि इतनी बड़ी सियासी हस्ती होने और सत्ता के इतने क़रीब होने के बावजूद, बिडेन ने वो दर्द भी अपनी ज़िंदगी में झेले हैं, जिनसे किसी आम इंसान का वास्ता पड़ता है। लेकिन बिडेन के परिवार के एक हिस्से की कहानी बिल्कुल अलग है। ख़ास तौर से उनके दूसरे बेटे हंटर की।

जो बिडेन के दूसरे बेटे हंटर ने वकालत की पढ़ाई पूरी करके लॉबिंग का काम शुरू किया था। इसके बाद उनकी ज़िंदगी बेलगाम हो गई। हंटर की पहली पत्नी ने उन पर शराब और ड्रग्स की लत के साथ-साथ नियमित रूप से स्ट्रिप क्लब जाने का हवाला देते हुए तलाक़ की अर्ज़ी अदालत में दाख़िल की। कोकीन के सेवन का दोषी पाए जाने के बाद हंटर को अमरीकी नौसेना ने नौकरी से निकाल दिया था।

एक बार हंटर बिडेन ने न्यू यॉर्कर पत्रिका के साथ बातचीत में माना था कि एक चीनी ऊर्जा कारोबारी ने उन्हें तोहफ़े में हीरा दिया था। बाद में चीन की सरकार ने इस कारोबारी पर भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच की थी। अपनी निजी ज़िंदगी का हंटर ने जैसा तमाशा बनाया उससे बिडेन को काफ़ी सियासी झटके झेलने पड़े हैं। पिछले ही साल हंटर ने दूसरी शादी एक ऐसी लड़की से की थी, जिससे वो महज़ एक हफ़्ते पहले मिले थे। इसके अलावा हंटर की भारी कमाई को लेकर भी बिडेन पर निशाना साधा जाता रहा है।

बिडेन पर लगे आरोप
पिछले साल आठ महिलाओं ने सामने आकर ये आरोप लगाया था कि जो बिडेन ने उन्हें आपत्तिजनक तरीक़े से छुआ था, गले लगाया था या किस किया था। इन महिलाओं के आरोप लगाने के बाद कई अमरीकी न्यूज़ चैनलों ने बिडेन के सार्वजनिक समारोहों में महिलाओं से अभिवादन करने की तस्वीरें दिखाई थीं। इनमें कई बार बिडेन को महिलाओं के बाल सूंघते हुए भी देखा गया था।

इन आरोपों के जवाब में बिडेन ने कहा था, भविष्य में मैं महिलाओं से अभिवादन के दौरान अतिरिक्त सावधानी बरतूंगा। लेकिन, अभी इसी साल मार्च महीने में अमरीकी अभिनेत्री तारा रीड ने इल्ज़ाम लगाया था कि जो बिडेन ने तीस साल पहले उनके साथ यौन हिंसा की थी। उन्हें दीवार की ओर धकेल कर उनसे ज़बरदस्ती करने की कोशिश की थी।

उस वक़्त तारा रीड, बिडेन के ऑफ़िस में एक सहायक कर्मचारी के तौर पर काम कर रहीं थीं। जो बिडेन ने तारा रीड के इस दावे का सख़्ती से खंडन किया और एक बयान जारी करके कहा था कि, ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ था।

इस साल दिए एक इंटरव्यू में तारा रीड ने कहा था, बिडेन के सहयोगी मेरे बारे में भद्दी-भद्दी बातें कहते रहे हैं और सोशल मीडिया पर भी मुझे लेकर अनाप-शनाप बोल रहे हैं। ख़ुद बिडेन ने तो मुझे कुछ भी नहीं कहा। मगर, बिडेन के पूरे प्रचार अभियान में एक पाखंड साफ़ तौर पर दिखता है कि उनसे महिलाओं को बिल्कुल भी ख़तरा नहीं है। सच तो ये है कि बिडेन के क़रीब रहना कभी भी सुरक्षित नहीं था। जो बिडेन की प्रचार टीम ने भी तारा रीड के इन आरोपों का खंडन किया था।

विदेश नीति को लेकर बिडेन का रुख़
जो बिडेन के समर्थक विदेश नीति को लेकर उनकी समझ को लेकर कायल रहते हैं। उनके पास क़रीब पांच दशकों के राजनीतिक अनुभव के साथ-साथ कूटनीति का भी लंबा अनुभव है। ये उनकी सबसे बड़ी ताकत के तौर पर भी राजनीति के मैदान में दिखाई पड़ती है।

जो बिडेन, पहले सीनेट की विदेशी मामलों की समिति के अध्यक्ष रह चुके हैं और वो ये दावा बढ़-चढ़कर करते रहे हैं कि, मैं पिछले 45 बरस में कमोबेश दुनिया के हर बड़े राजनेता से मिल चुका हूं। जो बिडेन ने 1991 के खाड़ी युद्ध के ख़िलाफ़ वोट दिया था। लेकिन, 2003 में उन्होंने इराक़ पर हमले के समर्थन में वोट दिया था। हालांकि बाद में वो इराक़ में अमेरिकी दख़ल के मुखर आलोचक भी बन गए थे।

ऐसे मामलों में बिडेन अक्सर संभलकर चलते हैं। अमेरिकी कमांडो के जिस हमले में पाकिस्तान में ओसामा बिन लादेन को मार गिराया गया था, बिडेन ने ओबामा को ये हमला न करने की सलाह दी थी। विदेश नीति से जुड़े ज़्यादातर मामलों में बिडेन का रवैया मध्यमार्गी रहा है। बिडेन को लगता रहा है कि बीच का ये रवैया अपना कर वो उन मतदाताओं को अपनी ओर खींच सकते हैं, जो ये फ़ैसला नहीं कर पाए रहे कि ट्रंप और उनके बीच वे किसे चुनें।

कश्मीर और भारत को लेकर बिडेन की राय
इस साल जून के महीने में जो बिडेन ने कश्मीरियों के पक्ष में बयान देते हुए कहा था कि कश्मीरियों के सभी तरह के अधिकार बहाल होने चाहिए। बिडेन ने कहा था कि कश्मीरियों के अधिकारों को बहाल करने के लिए जो भी क़दम उठाए जा सकते हैं, भारत सरकार उठाए। उन्होंने भारत के नागरिकता संशोधन क़ानून यानी सीएए को लेकर भी निराशा ज़ाहिर की थी। इसके अलावा उन्होंने नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़न यानी एनआरसी को भी निराशाजनक बताया था।

जो बिडेन की कैंपेन वेबसाइट पर प्रकाशित एक पॉलिसी पेपर में कहा गया है, भारत में धर्मनिरपेक्षता और बहुनस्ली के साथ बहुधार्मिक लोकतंत्र की पुरानी पंरपरा है। ऐसे में सरकार के ये फ़ैसले बिल्कुल ही उलट हैं। कश्मीर को लेकर बिडेन के इस पॉलिसी पेपर में कहा गया है, कश्मीरी लोगों के अधिकारों को बहाल करने के लिए भारत को चाहिए कि वो हर क़दम उठाए। असहमति पर पाबंदी, शांतिपूर्ण प्रदर्शन को रोकना, इंटरनेट सेवा बंद करना या धीमा करना लोकतंत्र को कमज़ोर करना है।

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार जून में अमरीकी हिन्दुओं के एक समूह ने बिडेन के इस पॉलिसी पेपर को लेकर आपत्ति जताई थी और बिडेन के कैंपेन के सामने इस समूह ने पॉलिसी पेपर की भाषा पर नाराज़गी ज़ाहिर की थी। इस समूह का कहना था कि यह भारत विरोधी है और इस पर विचार किया जाना चाहिए।

हालांकि बिडेन को दशकों तक सीनेटर और आठ साल तक उप-राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए अब तक भारत के दोस्त के तौर पर ही देखा जाता रहा है। बिडेन भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने की भी वकालत करते रहे हैं। वह भारत-अमरीका व्यापार को 500 अरब डॉलर तक ले जाने की बात करते रहे हैं। बिडेन अपने उप-राष्ट्रपति के आवास पर दिवाली का भी आयोजन करते रहे हैं।\

एक ‘अकुशल’ वक्ता
बिडेन का दोस्ताना स्वभाव उनकी असली ताक़त रही है और उनकी मुस्कराहट एक तरह से उनकी फ़िलोसॉफ़ी रही है। वो मीठी ज़ुबान बोलने वाले नेता के तौर पर मशहूर हैं, जो बड़ी आसानी से लोगों का दिल जीत लेते हैं। लेकिन बीबीसी संवाददाता निक ब्रायंट अपने विश्लेषण में लिखते हैं कि चुनाव प्रचार के दौरान उनके भाषण लंबे-लंबे मोनोलॉग की शक्ल अख़्तियार कर लेते थे जो उनके सीनेट के दिनों की याद दिला रहे थे।

कभी-कभार वह उप-राष्ट्रपति के अपने कार्यकाल के दौरान के साथियों का नाम ले लिया करते थे। लेकिन उनके उदाहरणों और कहानियों से कोई भी राजनीतिक बात निकलकर नहीं आती थी। जब वह अमरीका की आत्मा को बचाने की बात करते थे, तब उन्होंने कभी भी स्पष्ट रूप से ये नहीं बताया कि असल में उसका मतलब क्या होता है।

वो लिखते हैं, मैं बीते 30 सालों से अमेरिकी राजनीति पर रिपोर्टिंग कर रहा हूं लेकिन देश के सबसे बड़े पद की रेस में वह मुझे सबसे अधिक कमज़ोर उम्मीदवार लगे। वह साल 2016 में राष्ट्रपति पद की दौड़ से बाहर हुए, वो जेब बुश से भी ज़्यादा ख़राब उम्मीदवार लगे। फ़्लोरिडा के पूर्व गवर्नर जेब बुश कम से कम अपनी बात तो पूरी कर लेते थे चाहें उनकी बात ख़त्म होने के बाद कोई उनकी तारीफ़ करे या नहीं।

विवादास्पद बयानबाज़ी
इसके बावजूद बीबीसी संवाददाता पीटर बॉल मानते हैं कि बिडेन के पास वोटरों को लुभाने का क़ुदरती हुनर है। मगर इसके साथ ही वह यह भी मानते हैं कि बिडेन के साथ सबसे बड़ा जोखिम ये है कि वह कभी भी कुछ भी ग़लत बयानी कर सकते हैं, जिससे उनके सारे किए कराए पर पानी फिर जाए।

पीटर बॉल लिखते हैं कि जनता से रूबरू होने पर जो बिडेन अक्सर जज़्बात में बह जाते हैं और इसी कारण से राष्ट्रपति चुनाव का उनका पहला अभियान शुरू होने से पहले ही अचानक ख़त्म हो गया था (जब उन्होंने नील किनॉक के भाषण की नकल की थी)।

2012 में अपने राजनीतिक तजुर्बे का बखन करते हुए बिडेन ने जनता को ये कह कर ग़फ़लत में डाल दिया था कि, दोस्तों, मैं आपको बता सकता हूं कि मैंने आठ राष्ट्रपतियों के साथ काम किया है। इनमें से तीन के साथ तो मेरे बड़े नज़दीकी ताल्लुक़ात रहे हैं।

उनके इस बयान का असल अर्थ तो ये था कि वो तीन राष्ट्रपतियों के साथ क़रीब से काम कर चुके हैं। मगर इसी बात को उन्होंने जिन लफ़्ज़ों में बयां किया, उसका मतलब ये निकाला गया कि उनके तीन राष्ट्रपतियों के साथ यौन संबंध रहे थे।
 
जब बराक ओबामा ने जो बिडेन को अपने साथ उप-राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया, तो बिडेन ने ये कह कर लोगों को डरा दिया था कि इस बात की तीस फ़ीसद संभावना है कि ओबामा और वो मिलकर अर्थव्यवस्था सुधारने में ग़लतियां कर सकते हैं।

इससे पहले बिडेन ने ओबामा के बारे में ये कह कर हलचल मचा दी थी कि, ओबामा ऐसे पहले अफ्रीकी मूल के अमेरिकी नागरिक हैं, जो अच्छा बोलते हैं। समझदार हैं। भ्रष्ट नहीं है और दिखने में भी अच्छे हैं। अपने इन बयानों के बावजूद वो अफ्रीकी-अमेरिकी समुदाय के बीच बहुत लोकप्रिय हैं।

जो बिडेन के ऐसे बेलगाम बयानों के कारण ही न्यूयॉर्क मैग़ज़ीन के एक पत्रकार ने लिखा था कि बिडेन की पूरी प्रचार टीम बस इसी बात पर ज़ोर दिए रहती है कि कहीं वो कोई अंट-शंट बयान न दे बैठें।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

क्या निजी कंपनियां स्थानीय लोगों को नौकरी में 75 फीसदी आरक्षण देंगी?