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कोरोना : क्या देश का हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर गांव के मरीज़ों का इलाज कर पाएगा?

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BBC Hindi

, मंगलवार, 24 मार्च 2020 (09:07 IST)
विजुअल जर्नलिज़्म (टीम नई दिल्ली)
 
देश के कई हिस्सों को पूरी तरह से लॉकडाउन में डाल दिया गया है। साथ ही देश में कोरोना वायरस के मामले 500 के करीब हैं। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के मुताबिक 23 मार्च को सुबह 10.30 बजे तक देश में कोरोना वायरस के 468 मामलों की पुष्टि हो चुकी थी।
 
3 मार्च 2020 तक भारत में कोरोना के केवल 5 मामले थे। अगले दिन यह आंकड़ा बढ़कर 27 पर पहुंच गया। अगले कुछ दिनों में इनमें तेज रफ़्तार से बढ़ोतरी हुई। अगर ये मामले लगातार बढ़े और देश के ग्रामीण इलाक़ों तक यह वायरस पहुंच गया तो राज्यों के लिए इस पर क़ाबू पाना मुश्किल हो जाएगा।
पब्लिक हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर
 
नेशनल हेल्थ प्रोफ़ाइल 2019 के आंकड़ों के हिसाब से देखें तो अगर कोरोना वायरस के मामलों में बढ़ोतरी जारी रही तो भारत के ग्रामीण इलाकों में आने वाले मरीज़ों के लिहाज से पर्याप्त बेड नहीं होंगे।
 
इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में करीब 26,000 सरकारी हॉस्पिटल हैं। इनमें से 21,000 रुरल इलाकों में और 5,000 हॉस्पिटल शहरी इलाकों में हैं। हालांकि मरीज़ और उपलब्ध बेडों की संख्या का रेशियो बेहद चिंताजनक है। हर 1,700 मरीजों पर 1 बेड मौजूद है।
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ग्रामीण क्षेत्रों में हर बेड पर मरीज़ों की संख्या काफ़ी बढ़ जाती है। इन इलाकों में हर 1 बेड पर 3,100 मरीज़ आते हैं। अगर हर राज्य की आबादी के हिसाब से बेडों की संख्या की तुलना करें तो बिहार की हालत सबसे ख़राब नज़र आती है।
2011 की जनगणना के मुताबिक बिहार के ग्रामीण इलाक़ों में करीब 10 करोड़ लोग रहते हैं। हर बेड पर क़रीब 16,000 मरीज हैं। इस तरह से बिहार हर 1,000 लोगों पर सबसे कम बेड वाला राज्य है। तमिलनाडु इस मामले में सबसे अच्छी स्थिति में है। राज्य के ग्रामीण इलाक़ों में कुल 40,179 बेड हैं और कुल 690 सरकारी हॉस्पिटल हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक तमिलनाडु में हर बेड पर क़रीब 800 मरीज़ हैं।
 
डॉक्टर मिल पाएंगे?
 
रुरल हेल्थ स्टैटिस्टिक्स के मुताबिक रुरल इंडिया में हर 26,000 लोगों पर एक एलोपैथिक डॉक्टर उपलब्ध है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) के नियम के मुताबिक डॉक्टर और मरीजों का यह अनुपात हर 1,000 मरीज़ पर 1 डॉक्टर का होना चाहिए।
राज्यों की मेडिकल काउंसिलों और मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया (एमसीआई) के यहां रजिस्टर्ड एलोपैथिक डॉक्टरों की संख्या क़रीब 1.1 करोड़ है। यह आंकड़ा साफ़ बताता है कि भारत के ग्रामीण इलाक़े न तो हर मरीज़ को बेड मुहैया करा सकते हैं और न ही इनमें पर्याप्त संख्या में डॉक्टर हैं, जो कि हर मरीज़ को अटेंड कर सकें।
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टेस्ट सेंटर
 
इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के मुताबिक देश में आईसीएमआर की मंजूरी वाली कुल 116 सरकारी लैबोरेटरीज हैं। कोविड-19 टेस्टिंग के लिए 89 ऑपरेशनल लैब्स हैं जबकि 27 लैब चालू होने की प्रक्रिया में हैं। अब महाराष्ट्र के आंकड़ों पर गौर करते हैं, जहां कोरोना वायरस के सबसे ज्यादा मामले पाए गए हैं।
 
महाराष्ट्र में 8 सरकारी एप्रूव्ड टेस्टिंग लैब्स में से 4 मुंबई, 3 पुणे और 1 नागपुर में है। आईसीएमआर ने महाराष्ट्र में 4 निजी लैब्स को भी एप्रूवल दिया है। ये चारों मुंबई में हैं। महाराष्ट्र के सबसे सुदूर पूर्वी ज़िले गढ़चिरौली के लिए सबसे नजदीकी लैब नागपुर में है, जो कि सड़क के रास्ते क़रीब 170 किमी दूर है।
कोल्हापुर के सबसे दक्षिणी ज़िले के लिए नजदीकी टेस्ट सेंटर पुणे है, जो कि सड़क के ज़रिए जाने पर 230 किमी दूर बैठता है। सीमित संख्या में टेस्ट सेंटरों के होने से ग्रामीण इलाक़ों के लोगों के लिए अपना टेस्ट कराना बेहद मुश्किल हो जाएगा।
 
बिहार में टेस्टिंग सेंटर
 
बिहार जैसे ज़्यादा ग़रीब राज्य में केवल 5 टेस्ट लैबोरेटरीज ही हैं, जहां कोविड-19 का टेस्ट हो सकता है। इन टेस्ट सेंटरों में से 3 पटना में हैं जबकि 2 दरभंगा में हैं। आईसीएमआर के मुताबिक पटना में 2 लैब्स रियजेंट्स और पीसीआर मशीनों के आने का इंतज़ार कर रही हैं।
 
अगर सुदूर पूर्वी ज़िले किशनगंज की बात करें तो वहां के किसी मरीज़ को कोविड-19 का टेस्ट कराने के लिए सबसे नज़दीकी केंद्र दरभंगा जाना पड़ेगा। किशनगंज से दरभंगा की दूरी 250 किमी है। अगर उत्तरी ज़िले पश्चिमी चंपारण की बात करें तो टेस्ट कराने के लिए किसी भी शख़्स को 230 किमी दूर दरभंगा आना पड़ेगा।
 
हालांकि ये दोनों टेस्ट सेंटर राज्य के केंद्र में हैं, फिर भी ग्रामीण इलाक़ों के लोगों के लिए इन लैब्स तक पहुंचना मुश्किलभरा है। दूसरी ओर सरकार के लिए भी यह जानना बेहद मुश्किल होगा कि राज्य में कोरोना वायरस के कितने मामले हैं?

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