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अल-ज़वाहिरीः मिस्र के प्रतिष्ठित परिवार का डॉक्टर कैसे बना जिहादी

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BBC Hindi

, मंगलवार, 2 अगस्त 2022 (15:45 IST)
अमेरिका ने अल-क़ायदा नेता अयमन अल-ज़वाहिरी को अफ़ग़ानिस्तान में एक ड्रोन हमले में मार दिया है। अल-ज़वाहिरी को अल-क़ायदा का दिमाग़ कहा जाता था। आंखों के डॉक्टर अल-ज़वाहिरी ने मिस्र इस्लामिक जिहादी समूह को बनाने में मदद की थी। 2011 में ओसामा बिन-लादेन को अमेरिका ने मारा था और तभी से अल-क़ायदा की कमान अल-ज़वाहिरी के पास थी।
 
इससे पहले अल-ज़वाहिरी को ओसामा बिन-लादेन का दाहिना हाथ माना जाता था। 11 सितंबर 2001 को अमेरिका में हमले के पीछे अल-ज़वाहिरी का ही दिमाग़ माना जाता है। अल-क़ायदा में ओसामा बिन-लादेन के बाद अल-ज़वाहिरी दूसरे नंबर के नेता थे। अल-ज़वाहिरी को अमेरिका ने 2001 में 22 मोस्ट वॉन्टेड आतंकवादियों की सूची में रखा था। अमेरिका ने अल-ज़वाहिरी पर 2।5 करोड़ डॉलर का इनाम रखा था।
 
हाल के वर्षों में ज़वाहिरी अल-क़ायदा के प्रमुख प्रवक्ता के तौर पर उभरे थे। 2007 में अल-ज़वाहिरी 16 वीडियो और ऑडियो टेप में सामने आए जो कि ओसामा बिन-लादेन से 4 गुना ज़्यादा था। अल-क़ायदा ने दुनिया भर के मुसलमानों में कट्टरता और अतिवाद भरने की कोशिश की। पिछले हफ़्ते अमेरिका ने जब काबुल में ज़वाहिरी के ठिकाने पर हमला किया तो यह कोई पहली कोशिश नहीं थी।
 
जनवरी 2006 में भी अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान से लगी पाकिस्तान की सीमा पर मिसाइल से हमला किया था। इस हमले में अल-क़ायदा के 4 सदस्य मारे गए थे लेकिन अल-ज़वाहिरी बच गए थे। हमले के दो हफ़्ते बाद अल-ज़वाहिरी एक वीडियो में सामने आए थे और उन्होंने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश को धमकी देते हुए कहा था कि दुनिया की सारी शक्तियां उनके पास नहीं हैं।
 
प्रतिष्ठित परिवार में जन्म
 
अल-ज़वाहिरी का जन्म मिस्र की राजधानी काहिरा में 19 जून, 1951 को हुआ था। ज़वाहिरी का जन्म प्रतिष्ठित मध्यम-वर्गीय परिवार में हुआ था। उनके परिवार में डॉक्टर और स्कॉलर थे। अल-ज़वाहिरी के दादा राबिया अल-ज़वाहिरी मध्य-पूर्व में सुन्नी इस्लामिक अध्ययन केंद्र अल-अज़हर के ग्रैंड इमाम थे। इनके चाचा अरब लीग के पहले महासचिव थे।
 
ज़वाहिरी जब स्कूल में थे तभी इस्लाम की सियासत में शामिल हो गए थे। 15 साल की उम्र में उन्हें ग़ैर-क़ानूनी मुस्लिम ब्रदरहुड के सदस्य होने के चलते गिरफ़्तार किया गया था। मुस्लिम ब्रदरहुड मिस्र का पुराना और बड़ा इस्लामिक संगठन है। अल-ज़वाहिरी की राजनीतिक गतिविधियां काहिरा यूनिवर्सिटी में उनकी मेडिकल की पढ़ाई में बाधा नहीं बनी। 1974 में यहां से मेडिसिन में उन्होंने ग्रैजुएशन किया और यहीं से 4 साल बाद सर्जरी में मास्टर की पढ़ाई की।
 
अल-ज़वाहिरी के पिता मोहम्मद की मौत 1995 में हुई थी। वह काहिरा यूनिवर्सिटी में ही फ़ार्माकोलॉजी के प्रोफ़ेसर थे। ज़वाहिरी ने शुरुआत में परिवार की परंपरा का ही पालन किया। उन्होंने काहिरा में एक मेडिकल क्लीनिक खोला लेकिन जल्दी ही वह अतिवादी इस्लामिक समूहों के प्रभाव में आने लगे। ये समूह मिस्र की सरकार को उखाड़ फेंकने की कोशिश कर रहे थे।
 
1973 में मिस्र इस्लामिक जिहाद बना और अल-ज़वाहिरी इसमें शामिल हो गए। 1981 में मिस्र के तत्कालीन राष्ट्रपति अनवर सदात की एक सैन्य परेड में हत्या कर दी गई थी। हत्या करने वाले संदिग्धों में मिस्र इस्लामिक जिहाद के लोग थे। ये सैकड़ों की संख्या में सेना के यूनिफॉर्म में थे। इसमें अल-ज़वाहिरी भी शामिल थे।
 
अनवर सदात ने इसराइल के साथ एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किया था। इसे लेकर इस्लामिक एक्टिविस्ट नाराज़ थे। इससे पहले सदात ने अपने आलोचकों को गिरफ़्तार भी करवाया था।
 
जेल से बदला जीवन
 
अनवर सदात की हत्या के बाद अदालत में सुनवाई के दौरान अल-ज़वाहिरी अभियुक्तों के नेता के तौर पर उभरे। उन्होंने कोर्ट में कहा था, 'हम मुसलमान हैं और अपने मज़हब में भरोसा रखते हैं। हम एक इस्लामिक मुल्क और समाज बनाने की कोशिश कर रहे हैं।' हालांकि अल-ज़वाहिरी को अनवर सदात की हत्या के मामले में बरी कर दिया गया था लेकिन अवैध हथियार रखने के मामले में उन्हें दोषी ठहराया गया था।
 
इस मामले में उन्हें तीन साल की क़ैद मिली थी। अल-ज़वाहिरी के साथ रहे क़ैदियों के अनुसार, ज़वाहिरी को जेल में प्रताड़ना झेलनी पड़ी थी। जेल में उन्हें पीटा भी गया था। कहा जा रहा है कि जेल के अनुभव ने ही उन्हें पूरी तरह से बदल दिया और वह हिंसक इस्लामिक अतिवादी हो गए।
 
1985 में जेल से रिहा होने के बाद अल-ज़वाहिरी सऊदी अरब चले गए। सऊदी के बाद वह पाकिस्तान के पेशावर शहर गए और फिर पड़ोसी मुल्क अफ़ग़ानिस्तान में। अफ़ग़ानिस्तान में ही उन्होंने मिस्र इस्लामिक जिहाद के एक धड़े को संगठित किया। लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत यूनियन के नियंत्रण के दौरान वह डॉक्टर का काम करते रहे।
 
1992 में फिर से उभार के बाद ज़वाहिरी ने मिस्र इस्लामिक जिहाद की कमान अपने हाथों में ले ली। मिस्र में सरकार के मंत्रियों और प्रधानमंत्री अतिफ़ सिद्दीक़ी पर हमलों में इस संगठन की अहम भूमिका रही और ज़वाहिरी को मास्टरमाइंड माना गया।
 
इस ग्रुप के अभियान के कारण ही वहां की सरकार गिरी और 1990 के दशक के मध्य में मिस्र इस्लामिक स्टेट बना। इस अभियान में मिस्र के 1200 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई। 1997 में अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने अल-ज़वाहिरी को मिस्र के लक्सर शहर में विदेशी पर्यटकों पर हमले के लिए ज़िम्मेदार बताया।
 
निशाने पर पश्चिम
 
ज़वाहिरी के बारे में माना जाता है कि वह 1990 के दशक में दुनिया के कई देशों में गए और फंडिंग के स्रोत की तलाश की। अफ़ग़ानिस्तान से सोवियत यूनियन की वापसी के दौरान माना जाता है कि अल-ज़वाहिरी बुल्गारिया, डेनमार्क और स्विटज़रलैंड में रह रहे थे। कई बार फ़र्ज़ी पासपोर्ट के ज़रिए बाल्कन्स, ऑस्ट्रिया, यमन, इराक़ और फिलीपीन्स का भी दौरा किया।
 
ज़वाहिरी दिसंबर, 1996 में 6 महीने तक रूसी हिरासत में रहे थे। वह बिना वैध वीज़ा के चेचेन्या में पकड़े गए थे। कहा जाता है कि अल-ज़वाहिरी ने ही लिखा था कि रूसी प्रशासन उनका अरबी टेक्स्ट समझने में नाकाम रहा था। ऐसे में वह अपनी पहचान छुपाने में कामयाब रहे थे। माना जाता है कि 1997 में अल-ज़वाहिरी अफ़ग़ानिस्तान के जलालाबाद शहर चले गए। वहीं ओसामा बिन-लादेन का ठिकाना था।
 
एक साल बाद मिस्र इस्लामिक जिहाद, पांच अन्य अतिवादी इस्लामिक समूहों के साथ आ गया। इसमें ओसामा बिन-लादेन का अल-क़ायदा भी शामिल था। इन सभी को मिलाकर वर्ल्ड इस्लामिक फ्रंट बना। इसका मक़सद यहूदियों और ईसाइयों के ख़िलाफ़ जिहाद था। पहली ही घोषणा में इस संगठन ने अमेरिकी नागरिकों को मारने के लिए फ़तवा जारी किया।
 
6 महीने बाद ही एक साथ कई हमले हुए। कीनिया और तंज़ानिया में अमेरिकी दूतावास पर हमला किया और 223 लोगों की मौत हुई। अल-ज़वाहिरी के सैटेलाइट टेलीफ़ोन पर हुई बातचीत को सबूत के तौर पर पेश किया जाता है कि बिन-लादेन और अल-क़ायदा हमले के पीछे थे।
 
हमले के दो हफ़्ते बाद अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान में इस ग्रुप के ट्रेनिंग सेंटर तो तबाह कर दिया था। इसके अगले दिन ज़वाहिरी ने पाकिस्तानी पत्रकार को फ़ोन कर कहा था, 'आप अमेरिका को बता दीजिए कि उनकी बमबारी, धमकी और आक्रामकता से हम डरेंगे नहीं। अभी तो जंग शुरू हुई है।'

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