देह व्यापार से निकल ख़ुद व्यापारी बनी

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-दिव्या आर्य, बीबीसी संवाददाता, कोलकाता से
मानव तस्करी और देह व्यापार से बचकर निकली एक औरत की कहानी, उन्हीं की ज़बानी।
मेरा पति मुझे एक कमरे में ले गया, जहां बहुत सी लड़कियां बैठी थीं, और बोला कि तुम मेरे ख़िलाफ़ घरेलू हिंसा का केस करोगी, तो लो मैं तुम्हें यहां ले आया, अब ज़िंदगी भर यहीं रहना।
 
पहली कड़ी : 'लौट आई, पर मैं अब एक गंदी औरत थी'
ये एक कोठा था। मेरा पति मुझसे बदला लेने के लिए मुझे यहां धोखे से ले आया था। मैं 16 साल की थी जब उससे शादी कर दी गई। वो बहुत मारपीट करता था। मैं पढ़ी-लिखी नहीं थी। पर हिम्मत कर वापस घर भाग आई और उसके ख़िलाफ़ घरेलू हिंसा का मुकदमा दायर कर दिया।
 
ये उसी का बदला था। बंगाल के एक गांव से वो मुझे नशे की दवा खिलाकर पुणे के कोठे में ले आया था। वहां मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता था। रोज़ हर व़क्त रोती रहती, यही सोचते हुए कि कब घर वापस जा पाऊंगी। 
 
उस दौरान मेरे अंदर बहुत सारा गुस्सा और न्याय पाने की ज़िद पैदा हो गई। पुलिस ने जब छुड़ाया और पुणे से वापस बंगाल आई तो वकील के पास गई और कहा कि पति के ख़िलाफ मानव तस्करी का केस करना है।
 
उन्होंने बहुत सारे पैसे मांग डाले। पर मेरे पास कमाने का कोई ज़रिया नहीं था। कई बार तो खाने के लिए भी नहीं होता था। फिर एक समाजसेवी संस्था ने ट्रेनिंग दी और दुकान लगवाई। मैं परचून का सामान बेचने लगी। डर को पीछे कर, एक बार फिर लोगों का सामना करने की हिम्मत हुई।
उसी संस्था की मदद से पति के ख़िलाफ़ मानव तस्करी का मुकदमा भी दायर करवाया। मेरे परिवार में मैं पहली हूं जिसने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया है। पर जब बयान देने के लिए फिर पुणे जाना पड़ा तो फिर दिक्कतें शुरू हुईं।
 
गांववालों ने ताने देने शुरू कर दिए। वो कहते, कहां जाती हो? क्या करती हो? एक बार जहां से भाग आई वहां अब क्यों जाती हो? परिवार से कहते, इतनी बड़ी लड़की है, एक बार शादी ख़राब हुई तो क्या, तलाक़ दिलाओ और फिर करा दो, घर में रखने से शर्म नहीं आती?
 
और ये सब सुनकर मेरा परिवार मुझसे ही झगड़ता है। बस यही मुझे सबसे बुरा लगता है। मैं जब इतनी कोशिश कर रही हूं कि सब ठीक हो जाए, मेरी दुकान चले, तब परिवार वाले बिल्कुल साथ नहीं देते, कहते हैं तुमसे होता है तो करो, हम कुछ नहीं कर पाएंगे।
 
तो मैंने अब ये समझ लिया है कि एक इंसान जो अपने लिए सोचता है वही सबसे अहम है। अगर मैं ही सोचूं कि मैं गंदी हूं तो सब ख़राब हो जाएगा। पर मैंने समझा है कि मैं ठीक हूं तो अब सब सही लगता है।
 
(बीबीसी संवाददाता दिव्या आर्य से मुलाकात पर आधारित)
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