'चीन युद्ध नहीं चाहता क्योंकि जीत नहीं सकता'

Webdunia
गुरुवार, 13 जुलाई 2017 (12:54 IST)
- शकील अख़्तर (दिल्ली)
भारत और चीन के बीच हालिया सीमा विवाद से तनाव काफी बढ़ गया है। चीन की सरकार और मीडिया दोनों ही सख़्त और आक्रामक लहजे में बात कर रहे हैं। पिछले तीन दशकों में भारत और चीन की सीमा पर इस तरह का तनाव नहीं पैदा हुआ था। यह विवाद पिछले महीने सिक्किम सीमा के पास भूटान के डोकलाम क्षेत्र से शुरू हुआ।
 
चीनी सैनिक यहां सड़क निर्माण करना चाहते हैं। भूटान का कहना है कि यह उनका इलाका है। भारतीय सैनिकों ने भूटान के मदद मांगने के बाद चीनी सैनिकों को वहाँ काम करने से रोक दिया है। चीन ने बेहद सख़्त लहजे में भारत से कहा है कि वह अपने सैनिक चीनी क्षेत्र से वापस बुलाए। हालात काफी गंभीर बने हुए है।
 
विवेकानंद फाउंडेशन के सुरक्षा विशेषज्ञ सुशांत सरीन कहते हैं कि भारत के पास इस मामले में दख़ल देने का अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। उनके अनुसार, "चीन के साथ भारत का अब तक बड़ा नरम रवैया रहा है। इसे बदलने की जरूरत इसलिए महसूस हुई कि आप अपने सबसे करीबी सहयोगी देश के ग़लत कदम का बचाव नहीं कर सकते हैं तो कल अपनी ख़ुद की ज़मीन भी ख़तरे में आ जाएगी।"
 
चीन की ओर से जो आक्रामक लहजा अपनाया गया है वह कई दशकों में नहीं देखा गया। सुशांत सरीन का मानना है कि इस बार स्थिति काफ़ी गंभीर और तनावपूर्ण है। उनका कहना है, "चीन की ओर से जिस तरह के संदेश और बयान दिए जा रहे हैं। उनसे पता चलता है कि वह स्थिति को शांत करने के बजाए इसे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। अगर यह स्थिति यूं ही बिगड़ती रही तो यह संकट में बदल सकता है और सीमा पर टकराव भी हो सकता है।"
पुराना विवाद
भारत और चीन के बीच लगभग चार हज़ार किलोमीटर लंबी सीमा पर विवाद पुराना है और 1962 में दोनों देशों के बीच जंग भी हो चुकी है। पिछले पांच दशकों में एक दो घटनाओं को छोड़कर सीमा पर स्थिति शांतिपूर्ण रही है। लेकिन डोकलाम घटना के बाद चीन की प्रतिक्रिया बहुत आक्रामक रही है।
 
रक्षा विश्लेषक अजय शुक्ला का कहना है कि यह कड़वाहट अचानक नहीं पैदा हुई है। वो कहते हैं, 'पिछले कुछ समय से परमाणु आपूर्ति समूह में भारत की भागीदारी का विरोध, मसूद अजहर को आतंकवादी क़रार देने और चीन के आर्थिक योजना जैसे प्रश्नों पर मतभेद बढ़ते गए हैं। अब डोकलाम ने सीधे टकराव का माहौल बना दिया है।"
 
अजय शुक्ला का मानना है कि दोनों देशों में युद्ध की संभावना नहीं हैं। "चीन दुनिया के पैमाने पर एक बड़ी आर्थिक शक्ति हैं। वह युद्ध तभी चाहेगा जब पूरी तरह से जीत हो। वह भारत से अब पूरी तरह नहीं जीत सकेगा। फ़ौजी ताकत के आधार पर भारत अब 1962 की तुलना में काफी दृढ़ता, अनुभवी और शक्तिशाली है। चीन इस तथ्य को जानता है कि वह भारत को नहीं हरा सकता है।"
 
गतिरोध
दोनों देशों में गतिरोध बरकरार है। भारत ने अनावश्यक बयान देने से गुरेज़ किया है। लेकिन चीन की ओर से हर रोज़ बयान आ रहे हैं। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में चीनी मामलों की प्रोफेसर अल्का आचार्य कहती हैं, "यह विवाद भूटान का है। भारतीय सैनिक भूटान में हैं। भारत भूटान के ही रास्ते से टकराव से पीछे हट सकता है।"
 
डॉक्टर अल्का का मानना है मौजूदा स्थिति काफी गंभीर है। दोनों देश अभी अपने अपने रुख पर कायम हैं। मौजूदा गतिरोध तोड़ने के लिए एक को पीछे हटना होगा लेकिन फिलहाल इसके आसार नज़र नहीं आते।
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