Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे और अजित पवार के साथ आने से क्या बीजेपी के भीतर ही नाराज़गी है?

हमें फॉलो करें महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे और अजित पवार के साथ आने से क्या बीजेपी के भीतर ही नाराज़गी है?

BBC Hindi

, सोमवार, 17 जुलाई 2023 (09:29 IST)
-प्राजक्ता पोल (बीबीसी मराठी संवाददाता)
 
'क्या हार में, क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं; कर्तव्य पथ पर जो भी मिला, यह भी सही वो भी सही।' 1996 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बहुमत के अभाव में 13 दिन के भीतर ही गिर गई थी। उस समय की राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए संसद में बहुमत नहीं जुटा पाने के दर्द के तौर पर वाजपेयी ने यह कविता संसद में पढ़ी थी।
 
एक तरह से इन पंक्तियों के ज़रिए वाजपेयी ने उस वक़्त सत्ता को लेकर बीजेपी की नैतिक स्टैंड को भी ज़ाहिर करने की कोशिश की थी। इससे पहले जब 80 के दशक में शरद पवार ने कांग्रेस से अलग होकर राज्य में सरकार बनाई थी, तब उन्हें बीजेपी का समर्थन हासिल हुआ था। उस वक़्त वाजपेयी ने कहा था, 'शरद पवार ख़ुद सत्ता के लिए हमारे साथ आए हैं। ये बहुत शर्मनाक है। सत्ता के लिए इतना लालच होना ठीक नहीं है।'
 
ऐसे में यह समझा जा सकता है कि वाजपेयी के दौर की बीजेपी, सत्ता के लिए कोई समझौता नहीं करने का स्टैंड दिखाती रही थी, वह बदलते दौर में किसी भी तरह का समझौता करने में नहीं हिचक रही है।
 
महाराष्ट्र की राजनीति की मौजूदा तस्वीर से इसे बेहतर ढंग से समझा जा सकता है।
 
महाराष्ट्र विधानसभा के मानसून सत्र के हंगामेदार होने की उम्मीद की जा सकती है। आश्चर्य यह भी है कि सत्ता में शामिल राजनीतिक दलों की मुश्किलें, विपक्षी दलों से कम नहीं दिख रही है।
 
राज्य की राजनीतिक स्थिति के बारे में बीजेपी के एक विधायक ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, 'पार्टी विद डिफ़रेंस' के नारे से कब 'डिफ़रेंट पार्टी' बन गई है पता नहीं चला है।
 
महाराष्ट्र के मौजूदा विधानसभा में 105 विधायकों के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है। शिंदे के समर्थन से बीजेपी सत्ता में आई और सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी उसे मुख्यमंत्री का पद 40 विधायकों वाली शिंदे गुट को देना पड़ा।
 
एक साल बाद जब लगा कि मंत्रिमंडल विस्तार में बीजेपी के कई चेहरों को शामिल किया जाएगा तभी अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी गठबंधन में शामिल हो गई और उनके नौ विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई।
 
शिंदे गुट वाली शिवसेना के चार और बीजेपी के पांच मंत्री पद एनसीपी के खाते में चले गए।
 
इतना ही नहीं अब भी आशंका जताई जा रही है कि बीजेपी को अपने कुछ अहम विभाग, पवार गुट के लिए छोड़ने होंगे। ऐसे में बीजेपी विधायकों को सत्ता में अपना पूरा हिस्सा नहीं मिल रहा है और इस बात को लेकर उनकी नाराज़गी लगातार बढ़ रही है।
 
बीजेपी मंत्रियों के पास अहम मंत्रालय
 
पिछले एक साल से चल रही शिंदे-फड़नवीस सरकार में एकनाथ शिंदे ज़रूर मुख्यमंत्री थे लेकिन अधिकांश अहम मंत्रालय बीजेपी नेताओं के पास थे।
 
जब अजित पवार के नेतृत्व में एनसीपी के नौ मंत्रियों ने शपथ ली तो उन्होंने अहम मंत्रालयों की मांग की।
 
कई बैठकों के बाद उपमुख्यमंत्री अजित पवार को वित्त मंत्रालय सौंपा गया। इसके अलावा सहकारिता, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति, चिकित्सा शिक्षा, महिला एवं बाल विकास जैसे महत्वपूर्ण विभाग भी बीजेपी से लेकर एनसीपी गुट को दिया गया।
 
हालांकि बीजेपी विधायकों के पास केंद्रीय नेतृत्व के फ़ैसले का समर्थन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, लेकिन अहम मंत्रालयों के छिन जाने से भारी नाराज़गी देखी जा रही है।
 
यही वजह है कि देवेंद्र फडणवीस ने इन विधायकों के साथ बैठक कर, उनकी नाराज़गी को दूर करने की कोशिश की है।
 
वरिष्ठ पत्रकार मृणालिनी नानिवडेकर कहती हैं, 'बीजेपी के अपने अनुशासन को देखते हुए, विधायक शिवसेना विधायकों की तरह मीडिया में ज़ाहिर नहीं कर सकते।'
 
'कई विधायक निराश हैं, लेकिन मुंह बंद रखने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है। हालांकि उन्हें आश्वासन दिया गया है कि लोकसभा के बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा।'
 
एनसीपी-बीजेपी में ही टक्कर है, वहां क्या होगा?
 
हालांकि रानजीतिक विश्लेषकों के मुताबिक़ सरकार में मंत्रालय के बंटवारे से जुड़ी समस्या को सुलझाना कभी बहुत मुश्किल नहीं होता। लेकिन इस गठबंधन की उलझनें उससे कहीं अधिक हैं।
 
दरअसल, गठबंधन में शामिल हुए अजित पवार गुट के कुछ नेताओं की अपनी-अपनी विधानसभा सीटों पर बीजेपी से सीधी टक्कर रही है।
 
सालों साल तक एनसीपी के ख़िलाफ़ आक्रामक रुख़ अपनाने वाले विधायकों और पदाधिकारियों के सामने अब असमंजस की स्थिति है।
 
महाविकास अघाड़ी सरकार बनने के बाद इन सीटों पर पार्टी पदाधिकारियों ने तीनों दलों के ख़िलाफ़ चुनाव की तैयारी शुरू कर दी थी। लेकिन अब उन्हें अजित पवार और एकनाथ शिंदे के साथ काम करना होगा। असली संकट यही है।
 
परली विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी की पंकजा मुंडे और एनसीपी मंत्री धनंजय मुंडे के बीच सीधी टक्कर थी। हालांकि पंकजा मुंडे ने मंत्री बनने के बाद धनंजय मुंडे को बधाई दी, लेकिन इसके बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने अपना राजनीतिक रुख़ भी पेश किया।
 
उन्होंने कहा, 'एनसीपी के इस गुट को सरकार में शामिल करने का फ़ैसला बीजेपी नेतृत्व का है। ऐसे में विधानसभा सीट को लेकर भी फ़ैसला भी बीजेपी नेतृत्व ही करेगा।'
 
2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अजित पवार के ख़िलाफ़ गोपीचंद पडलकर को उम्मीदवार बनाया था। गोपीचंद पडलकर की ज़मानत ज़ब्त हो गई थी।
 
लेकिन पडलकर ने अक्सर ही पवार परिवार और अजित पवार की तीखी आलोचना की है। लेकिन मौजूदा स्थिति में पडलकर को भी अब अजित पवार के साथ मिलकर काम करना होगा।
 
किरीट सोमैया ने एनसीपी नेता और मंत्री हसन मुश्रीफ पर 127 करोड़ रुपए के भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए ईडी को कथित तौर पर सबूत भी पेश किए।
 
कोल्हापुर में बीजेपी और एनसीपी कार्यकर्ताओं के बीच तनातनी की स्थिति भी देखने को मिली। तब किरीट सोमैया ने कहा था कि मुश्रीफ जेल जाएंगे। लेकिन जबसे हसन मुश्रीफ मंत्री बने हैं तबसे किरीट सोमैया ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
 
हालांकि अभी ये नाराज़गी अंदरूनी लग रही है, लेकिन चुनाव के दौरान विवाद बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। पिछले चुनाव में बीजेपी ने जहां विधानसभा की 160 सीटों पर चुनाव लड़ा गया था, वहीं इस बार दो पार्टियों से तालमेल बिठाते हुए कम सीटों पर समझौता करना होगा।
 
इस वजह से भी बीजेपी नये चेहरों को कम मौक़ा दे पाएगी। इनसे कार्यकर्ताओं में बड़े पैमाने पर विद्रोह की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।
 
इस बारे में बात करते हुए एक बीजेपी नेता ने कहा, 'सुई लगने से कुछ देर तक दर्द होता है। लेकिन शरीर में जाने वाली दवा अच्छी होती है। केंद्रीय नेतृत्व ने जिस उद्देश्य से यह निर्णय लिया है उसके परिणाम निश्चित तौर पर अच्छे होंगे। कुछ समय बीत जाने दीजिए। एक समन्वय समिति का गठन किया गया है। इसमें बीजेपी, शिवसेना और एनसीपी के चार-चार नेता हैं। यदि समन्वय की कहीं कमी होगी तो इस समिति के माध्यम से समस्या का समाधान किया जा सकता है।'
 
हिन्दुत्व की विचारधारा का क्या होगा?
 
अजित पवार के गठबंधन में शामिल होने पर उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने कहा है, 'अजित पवार के साथ गठबंधन राजनीतिक है। लेकिन एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना के साथ भावनात्मक गठबंधन है। भविष्य में अजित पवार के साथ भी भावनात्मक गठबंधन होगा।'
 
अजित पवार से गठबंधन के बाद हिन्दुत्व के मुद्दे पर इस गठबंधन की नीति क्या होगी? इस सवाल पर अजित पवार ने हिन्दुत्व के बारे में कुछ भी कहने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि हम विकास के मुद्दे पर एक साथ आए हैं।
 
इसके बाद ही देवेन्द्र फडणवीस को समझाना पड़ा कि ये गठबंधन राजनीतिक है।
 
ज़ाहिर है ये वो पहलू है जो बीजेपी नेताओं की विधानसभा क्षेत्रों में मुश्किलें बढ़ा सकता है। अब तक हिन्दुत्व के मुद्दे पर वोट मांगने के बाद अब आप मतदाताओं से क्या कहेंगे? ये सवाल भी बीजेपी के सामने बना हुआ है।
 
ज़ाहिर है कि बीजेपी ने हिन्दुत्व के मुद्दे पर एकनाथ शिंदे के साथ गठबंधन किया था। हालांकि इस मुद्दे पर बीजेपी विधायक कुछ भी नहीं कहना चाहते हैं। बहुत ज़ोर देने पर बीजेपी विधायक ये कहते हैं कि 'जो केंद्रीय नेतृत्व कहेगा, वही होगा।'
 
मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य पर राजनीतिक विश्लेषक सुहास पलाशिकर कहते हैं, 'मौजूदा राजनीतिक हालात के कारण सामाजिक जटिलताएं भी बढ़ गई हैं। इन जटिलताओं का असर क्या होगा, यह एक चुनाव से नहीं ज़ाहिर होगा। बीजेपी सिर्फ़ आगामी लोकसभा चुनाव में पांच सीटें बढ़ाने के लिए दूसरी पार्टियों को तोड़ने वाली पार्टी नहीं है।अब तक के गणित पर नजर डालें तो बीजेपी अगले दस साल के बारे में सोच रही है।'
 
'मुझे लगता है कि भविष्य में कई गुट बीजेपी के साथ आकर काम करेंगे और इसको लेकर विरोध भी होता रहेगा। लेकिन बीजेपी यह दावा कर सकती है कि विपक्षी दलों के पास कोई मुद्दा नहीं है।'

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

फ्रेंच मीडिया में मोदी के दौरे पर छपीं मिली-जुली खबरें