इसराइल : दुनिया का सबसे विवादित स्थल क्यों है यरुशलम?

Webdunia
यरुशलम में सोमवार को नए अमेरिकी दूतावास के उद्घाटन से पहले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका और उनके पति जैरेड कुशनर इसराइल पहुंच गए हैं। दोनों व्हाइट हाउस से वरिष्ठ सलाहकारों समेत इस समारोह में हिस्सा लेंगे। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इसमें मौजूद नहीं होंगे। अमेरिका ने इसराइल की 70वीं वर्षगांठ के दिन अपने फ़ैसले को अमलीजामा पहनाने की योजना बनाई थी।


इसराइल यरुशलम को अपनी अविभाजित राजधानी मानता है, जबकि फ़लस्तीनी पूर्वी यरुशलम, जिस पर 1967 के अरब-इसराइल युद्ध में इसराइल ने कब्ज़ा कर लिया था, को उनके भावी राष्ट्र की राजधानी मानते हैं। इसराइलियों और फ़लस्तीनियों के पवित्र शहर यरुशलम को लेकर विवाद बहुत पुराना और ग़हरा है, यरुशलम इसराइल-अरब तनाव में सबसे विवादित मुद्दा भी हैह्ण ये शहर इस्लाम, यहूदी और ईसाई धर्मों में बेहद अहम स्थान रखता है।

पैगंबर इब्राहिम को अपने इतिहास से जोड़ने वाले ये तीनों ही धर्म यरुशलम को अपना पवित्र स्थान मानते हैं। यही वजह है कि सदियों से मुसलमानों, यहूदियों और ईसाइयों के दिल में इस शहर का नाम बसता रहा है। हिब्रू भाषा में यरुशलायीम और अरबी में अल-कुद्स के नाम से जाना जाने वाला ये शहर दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में से एक है। इस शहर को कई बार कब्ज़ाया गया है, ध्वस्त किया गया है और फिर से बसाया गया है। यही वजह है कि यहां की मिट्टी की हर परत में इतिहास की एक परत छुपी हुई है।

कौन से चार हिस्से? : आज यरुशलम अलग-अलग धर्मों के लोगों के बीच विभाजन और संघर्ष की वजह से सुर्ख़ियों में रहता है, लेकिन इस शहर का इतिहास इन्हीं लोगों को आपस में जोड़ता भी है। शहर के केंद्रबिंदु  में एक प्राचीन शहर है जिसो ओल्ड सिटी कहा जाता है।

संकरी गलियों और ऐतिहासिक वास्तुकला की भूलभुलैया इसके चार इलाक़ों (ईसाई, इस्लामी, यहूदी और अर्मेनियाईं) को परिभाषित करती हैं। इसके चारों ओर एक किलेनुमा सुरक्षा दीवार है जिसके आसपास दुनिया के सबसे पवित्र स्थान स्थित हैं।

हर इलाके की अपनी आबादी है। ईसाइयों के दो इलाक़े हैं क्योंकि अर्मेनियाई भी ईसाई ही होते हैं। चारों इलाक़ों में सबसे पुराना इलाक़ा अर्मेनियाइयों का ही है। ये दुनिया में अर्मेनियाइयों का सबसे प्राचीन केंद्र भी है। सेंट जेम्स चर्च और मोनेस्ट्री में अर्मेनियाई समुदाय ने अपने इतिहास और संस्कृति को सुरक्षित रखा है।

पहले चर्च की कहानी : ईसाई इलाक़े में 'द चर्च ऑफ़ द होली सेपल्कर' है। ये दुनियाभर के ईसाइयों की आस्था का केंद्र है। ये जिस स्थान पर स्थित है वो ईसा मसीह की कहानी का केंद्रबिंदु है। यहीं ईसा मसीह की मौत हुई थी, उन्हें सूली पर चढ़ाया गया था और यहीं से वो अवतरित हुए थे।

दातर ईसाई परंपराओं के मुताबिक, ईसा मसीह को यहीं 'गोलगोथा' पर सूली पर चढ़ाया गया था। इसे ही हिल ऑफ़ द केलवेरी कहा जाता है। ईसा मसीह का मक़बरा सेपल्कर के भीतर ही है और माना जाता है कि यहीं से वो अवतरित भी हुए थे।

इस चर्च का प्रबंधन ईसाई समुदाय के विभिन्न संप्रदायों, ख़ासकर ग्रीक ऑर्थोडॉक्स पैट्रियार्केट, रोमन कैथोलिक चर्च के फ्रांसिस्कन फ्रायर्स और अर्मेनियाई पैट्रियार्केट के अलावा इथियोपियाई, कॉप्टिक और सीरियाई ऑर्थोडॉक्स चर्च से जुड़े पादरी भी संभालते हैं। दुनियाभर के करोड़ों ईसाइयों के लिए ये धार्मिक आस्था का मुख्य केंद्र हैं। हर साल लाखों लोग ईसा मसीह के मक़बरे पर आकर प्रार्थना और पश्चाताप करते हैं।

मस्जिद की कहानी? : मुसलमानों का इलाक़ा चारों इलाक़ों में सबसे बड़ा है और यहीं पर डोम ऑफ़ द रॉक और मस्जिद अल अक़्सा स्थित है। यह एक पठार पर स्थित है जिसे मुस्लिम हरम अल शरीफ़ या पवित्र स्थान कहते हैं। मस्जिद अल अक़्सा इस्लाम का तीसरा सबसे पवित्र स्थल है और इसका प्रबंधन एक इस्लामिक ट्रस्ट करती है जिसे वक़्फ़ कहते हैं।

मुसलमानों का विश्वास है कि पैगंबर मोहम्मद ने मक्का से यहां तक एक रात में यात्रा की थी और यहां पैगंबरों की आत्माओं के साथ चर्चा की थी। यहां से कुछ क़दम दूर ही डोम ऑफ़ द रॉक्स का पवित्र स्थल है यहीं पवित्र पत्थर भी है। मान्यता है कि पैगंबर मोहम्मद ने यहीं से जन्नत की यात्रा की थी। मुसलमान हर दिन हज़ारों की संख्या में इस पवित्र स्थल में आते हैं और प्रार्थना करते हैं।

रमज़ान के महीने में जुमे के दिन ये तादाद बहुत ज़्यादा होती है। पवित्र दीवार यहूदी इलाके में ही कोटेल या पश्चिमी दीवार है। ये वॉल ऑफ़ दा माउंट का बचा हिस्सा है। माना जाता है कि कभी यहूदियों का पवित्र मंदिर इसी स्थान पर था। इस पवित्र स्थल के भीतर ही द होली ऑफ़ द होलीज़ या यूहूदियों का सबसे पवित्र स्थान था।

यहूदियों का विश्वास है कि यही वो स्थान है जहां से विश्व का निर्माण हुआ और यहीं पर पैगंबर इब्राहिम ने अपने बेटे इश्हाक की बलि देने की तैयारी की थी। कई यहूदियों का मानना है कि वास्वत में डोम ऑफ़ द रॉक ही होली ऑफ़ द होलीज़ है। आज पश्चिमी दीवार वो सबसे नज़दीक स्थान है जहां से यहूदी होली ऑफ़ द होलीज़ की आराधना कर सकते हैं। इसका प्रबंधन पश्चिमी दीवार के रब्बी करते हैं, यहां हर साल दुनियाभर से दसियों लाख यहूदी पहुंचते हैं और अपनी विरासत के साथ जुड़ाव महसूस करते हैं।

क्यों हैं तनाव? : यरुशलम की स्थिति में ज़रा सा भी बदलाव हिंसक झड़पों की वजह बनता रहा है। फ़लस्तीनी और इसराइली विवाद के केंद्र में प्राचीन यरूशलम शहर ही है। यहां की स्थिति में बहुत मामूली बदलाव भी कई बार हिंसक तनाव और बड़े विवाद का रूप ले चुका है। यही वजह है कि यरुशलम में होने वाली हर घटना महत्वपूर्ण होती है।

इस प्राचीन शहर में यहूदी, ईसाई और मुस्लिम धर्म के सबसे पवित्र स्थल हैं। ये शहर सिर्फ़ धार्मिक रूप से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि कूटनीतिक और राजनीतिक रूप से भी बेहद अहम है। अधिकतर इसराइली यरुशलम को अपनी अविभाजित राजधानी मानते हैं। इसराइल राष्ट्र की स्थापना 1948 में हुई थी। तब इसराइली संसद को शहर के पश्चिमी हिस्से में स्थापित किया गया था।

1967 के युद्ध में इसराइल ने पूर्वी यरूशलम पर भी क़ब्ज़ा कर लिया था। प्राचीन शहर भी इसराइल के नियंत्रण में आ गया था। बाद में इसराइल ने इस इलाक़े पर क़ब्ज़ा कर लिया लेकिन इसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं मिली। यरुशलम पर इसराइल की पूर्ण संप्रभुता को कभी मान्यता नहीं मिली है और इसे लेकर इसराइल नेता अपनी खीज जाहिर करते रहे हैं।

ज़ाहिर तौर पर फ़लस्तीनियों का नज़रिया इससे बिलकुल अलग है। वो पूर्वी यरुशलम को अपनी राजधानी के रूप में मांगते हैं। इसराइल-फ़लस्तीन विवाद में यही शांति स्थापित करने का अंतरराष्ट्रीय फ़ॉर्मूला भी है। इसे ही दो राष्ट्र समाधान के रूप में भी जाना जाता है। इसके पीछे इसराइल के साथ-साथ 1967 से पहले की सीमाओं पर एक स्वतंत्र फ़लस्तीनी राष्ट्र के निर्माण का विचार है।

संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों में भी यही लिखा गया है। यरुशलम की एक तिहाई आबादी फ़लस्तीनी मूल की है, जिनमें से कई के परिवार सदियों से यहां रहते आ रहे हैं। शहर के पूर्वी हिस्से में यहूदी बस्तियों का विस्तार भी विवाद का एक बड़ा का कारण है। अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत ये निर्माण अवैध हैं, पर इसराइल इसे नकारता रहा है।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय दशकों से ये कहता रहा है कि यरुशलम की स्थिति में कोई भी बदलाव शांति प्रस्ताव से ही आ सकता है। यही वजह है कि इसराइल में दूतावास रखने वाले सभी देशों के दूतावास तेल अवीव में स्थित हैं और यरुशलम में सिर्फ़ कांसुलेट हैं।

लेकिन ट्रंप का कहना है कि इसराइलियों और फ़लस्तीनियों के बीच शांति के अंतिम समझौतों के तौर पर वो दूतावास शिफ़्ट कर रहे हैं। ट्रंप दो राष्ट्रों की अवधारणा को नकारते हैं। ट्रंप कहते हैं कि मैं एक ऐसा राष्ट्र चाहता हूं, जिससे दोनों पक्ष सहमत हों।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

नक्सलियों के 40 संगठनों के नामों का किया जाए खुलासा, CM फडणवीस के बयान पर बोले योगेंद्र यादव

जयपुर का वह भीषण LPG टैंकर हादसा, प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कैसा था खौफनाक मंजर

शिवसेना यूबीटी अकेले लड़ सकती है BMC चुनाव, संजय राउत ने दिए संकेत

कम नहीं होगा जीवन, स्वास्थ्य बीमा पर टैक्स, GST परिषद ने टाला फैसला

महाकाल मंदिर के 2 कर्मचारियों के खातों में कैसे हुआ लाखों का ट्रांजेक्शन, पुलिस की रडार पर, जांच शुरू

सभी देखें

मोबाइल मेनिया

Realme 14x : IP69 रेटिंग वाला सबसे सस्ता फोन, 6000mAh बैटरी के साथ धमाकेदार फीचर्स

भारत में S25 की कीमत क्या होगी, Samsung Galaxy S25 series को लेकर हुआ बड़ा खुलासा

200MP कैमरा और 6000mAh बैटरी, Vivo X200 सीरीज भारत में लॉन्च, यह रहेगी कीमत

Best Smartphones of 2024 : कौनसा स्मार्टफोन इस साल रहा नंबर वन, Apple से लेकर Samsung और Realme में किसने मारी बाजी

Moto g35 : मोटोरोला का सस्ता 5G स्मार्टफोन, बाजार में मचा देगा तहलका

अगला लेख