मोदी लहर से भी बड़ी थी 40 साल पहले की जनता आंधी

Webdunia
गुरुवार, 16 मार्च 2017 (11:39 IST)
- रेहान फ़ज़ल  
इंदिरा गांधी ने अपने चुनाव अभियान की शुरुआत 5 फ़रवरी, 1977 को दिल्ली के रामलीला मैदान से की थी। आयोजकों ने भीड़ जमा करने के लिए अपना सारा ज़ोर लगा दिया था। स्कूल अध्यापकों, दिल्ली नगर निगम के कर्मचारियों और मज़दूरों को बसों में भर भर कर रामलीला मैदान पहुंचाया गया था।
इंदिरा गांधी का मूड ख़राब था। उनके माथे पर त्योरियां चढ़ी हुई थीं। अपने हार्ड हिटिंग भाषण में इंदिरा गांधी ने जनता पार्टी को खिचड़ी कह कर उसका मज़ाक उड़ाया था। बीच भाषण में सामने बैठी कुछ औरतें उठ कर जाने लगी थीं। सेवा दल के कार्यकर्ता उन्हें दोबारा बैठाने के लिए अपना पूरा ज़ोर लगा रहे थे।
 
भीड़ आपस में इतनी बात कर रही थी कि इंदिरा गांधी को अचानक अपना भाषण बीच में ही रोकना पड़ा। पहले संजय गांधी भी वहां बोलने वाले थे लेकिन उन्होंने न बोलने का फ़ैसला लिया।
 
एक दिन बाद यानी 6 फ़रवरी को जेपी भी दिल्ली पहुंच गए थे और ये तय हुआ कि जनता पार्टी भी रामलीला मैदान पर चुनाव रैली करेगी।

सूचना और प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल ने भीड़ को घर पर रखने का एक नायाब तरीका निकाला था। उस ज़माने में दूरदर्शन चार बजे एक फ़िल्म दिखाया करता था। ज़्यादा से ज़्यादा लोग घर से बाहर न निकलें, ये सुनिश्चित करने के लिए फ़िल्म का समय पांच बजे कर दिया गया।
 
आम तौर से दूरदर्शन पर पुरानी फ़िल्में ही दिखाई जाती थीं लेकिन उस दिन तीन साल पुरानी ब्लॉकबस्टर 'बॉबी' दिखाने का फ़ैसला किया गया।
इंदिरा की रैली : बसों को रामलीला मैदान के आसपास भी फटकने नहीं दिया गया और लोगों को सभास्थल तक पहुंचने के लिए एक किलोमीटर तक चलना पड़ा। रैली के आयोजक मदनलाल खुराना और विजय कुमार मल्होत्रा इस बात से परेशान थे कि इस रैली की तुलना इंदिरा गांधी की रैली से की जाएगी और लोग कहेंगे कि इसमें उस रैली से कम लोग पहुंचे हैं। लेकिन जेपी और जगजीवन राम 'बॉबी' से ज़्यादा बड़े आकर्षण साबित हुए। हज़ारों लोग लंबी दूरी का रास्ता तय करते हुए रामलीला मैदान पहुंचे।
 
दिल्ली का नक्शा : कूमी कपूर अपनी किताब 'इमरजेंसी- अ पर्सनल हिस्ट्री' में लिखती हैं, "वाजपेई की बेटी नमिता भट्टाचार्य ने मुझे बताया कि जब वो रैली स्थल की तरफ़ जा रही थीं तो उन्हें कुछ दबी-दबी सी आवाज़ सुनाई दी। उन्होंने टैक्सी ड्राइवर से पूछा कि ये आवाज़ किसकी है? उसने जवाब दिया कि ये लोगों के कदमों की आवाज़ है।
 
जब वो तिलक मार्ग पहुंचीं तो वो लोगों से खचाखच भरा हुआ था। उन्हें टैक्सी से उतर कर रामलीला मैदान तक पैदल जाना पड़ा।" पांच बजते बजते न सिर्फ़ रामलीला मैदान पूरा भर चुका था बल्कि बगल के आसफ़ अली रोड और जवाहरलाल नेहरू मार्ग पर भी लोगों का समुद्र दिखाई दे रहा था। 
 
जगजीवन राम बोले थे, "बहुत पहले नादिर शाह ने गरीबों की कुर्बानी ले कर दिल्ली का नक्शा बदलने की कोशिश की थी। आज डीडीए भी वही करने की कोशिश कर रहा है।" जब जगजीवन राम ने तंज़ कसा कि आज दिल्ली पर डेढ़ लोगों का राज है तो भीड़ में ज़ोर का ठहाका लगा। उस दिन जगजीवन राम ने 'बॉबी' को कहीं पीछे छोड़ दिया था।
 
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