सलमान रावी, बीबीसी संवाददाता
बीते कुछ दिनों में कश्मीर घाटी में हुई चरमपंथी हिंसा में कई हिंदुओं और कुछ सिखों के मारे जाने के बाद जम्मू और कश्मीर का माहौल एक बार फिर तनावों से घिर गया है। लोगों के जेहन में इन हिंसक घटनाओं को लेकर कई सवाल उमड़ रहे हैं। लोग पूछ रहे हैं कि क्या राज्य के हालात फिर से 90 के दशक जैसे हो रहे हैं? क्या घाटी से कश्मीरी पंडितों और राज्य के अल्पसंख्यकों का पलायन एक बार फिर से शुरू हो जाएगा?
जम्मू के कश्मीरी पंडितों के जगती कैंप में रह रहे सुनील पंडिता ने बीबीसी को बताया कि पिछले दो दिनों में घाटी के कश्मीरी पंडित और अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के लगभग 150 परिवारों ने जम्मू में शरण ली है।
सुनील पंडिता ने बताया कि घाटी के हालात 90 के दशक से भी ख़राब होते जा रहे हैं। वो कहते हैं कि सिर्फ़ एक हफ़्ते पहले वो घाटी से लौटे हैं और वहाँ रहने वाले अल्पसंख्यकों की आँखों में खौफ़ साफ़ दिखाई दे रहा है। घाटी में सिर्फ़ एक हफ़्ते के दौरान सात लोगों की हत्या कर कर दी गई है।
क्यों बढ़ी अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा?
ऐसे में सवाल उठता है कि घाटी के अल्पसंख्यकों जैसे कश्मीरी हिंदू और सिखों के ख़िलाफ़ हिंसा की वारदातों में अचानक वृद्धि क्यों हुई? जानकारों को लगता है कि इसके अलग-अलग कारण हो सकते हैं।
90 के दशक में कश्मीरी पंडितों के ख़िलाफ़ जब बड़े पैमाने पर हिंसा और उनकी हत्याएं हुईं तो अपनी जान बचाने के लिए घर छोड़कर अपने परिवारों के साथ वो घाटी से निकल गए थे। फिर कई सालों तक देश के अलग-अलग हिस्सों में वो बतौर शरणार्थी रहने को मज़बूर हुए।
इस दौरान पलायन कर चुके लोगों ने अपने पीछे जो घर और संपत्ति घाटी में छोड़ दी थी, उन पर स्थानीय लोगों ने क़ब्ज़ा कर लिया या फिर उसे औने-पौने दाम में ख़रीद लिया।
इसे देखकर ही साल 1997 में राज्य सरकार ने क़ानून बनाकर विपत्ति में अचल संपत्ति बेचने और ख़रीदने के ख़िलाफ़ क़ानून बनाया। लेकिन जानकार कहते हैं कि क़ानून के बावजूद औने-पौने दाम में संपत्ति बिकती रही है।
क्या संपत्ति पर फिर से क़ब्ज़ा दिलाना कारण है?
हाल ही में सरकार ने कश्मीरी पंडितों की क़ब्ज़ा की गई अचल संपत्तियों पर उन्हें दोबारा अधिकार देने की कवायद शुरू की थी। अब तक ऐसे लगभग 1,000 मामलों का निपटारा करते हुए संपत्ति को वापस उनके असली मालिक के हवाले कर दिया गया। जानकार कहते हैं कि अचानक शुरू हुई हिंसा के पीछे ये भी एक कारण हो सकता है।
वरिष्ठ पत्रकार राहुल पंडिता मानते हैं कि हाल ही में जम्मू और कश्मीर सरकार ने एक पोर्टल शुरू किया है। इसमें घाटी से पलायन कर गए कश्मीरी पंडितों को उनकी संपत्ति वापस दिलाने की प्रक्रिया 'ऑनलाइन' शुरू की गई है। वो कहते हैं कि इस पोर्टल का विज्ञापन के ज़रिए भी काफी प्रचार-प्रसार किया गया है।
राहुल पंडिता मानते हैं कि अचानक भड़की हिंसा के पीछे ये कारण भी हो सकता है। पोर्टल का जिस दिन जम्मू और कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा ने औपचारिक उद्घाटन किया, उसी दिन उनके कार्यालय ने बताया कि घाटी से लगभग 60 हज़ार कश्मीरी हिन्दुओं या पंडितों का पलायन हुआ था। इसमें से 44 हज़ार परिवारों ने राज्य के राहत और पुनर्वास आयुक्त के समक्ष अपना पंजीकरण कराया था।
बयान में बताया गया कि इन 44 हज़ार परिवारों में 40,142 परिवार हिंदू, जबकि 1,730 सिख और 2,684 मुसलमान परिवार शामिल हैं।
कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के संजय टिक्कू ने बीबीसी से फ़ोन पर बात करते हुए कहा कि कश्मीरी पंडितों की अचल संपत्ति को क़ब्ज़े से छुड़ाने की प्रक्रिया हाल ही में शुरू की गई है।
राहुल पंडिता कहते हैं कि विपत्ति में बेची गई अचल संपत्ति को वापस दिलाने की कोई ठोस कार्ययोजना सरकार ने बनाई ही नहीं।
उनका कहना है कि सरकार की ओर से ये स्पष्ट नहीं किया गया कि किस रेट पर ज़मीन वापस दिलाई जाएगी। क्या वापसी उस समय की क़ीमत के हिसाब से होगी या फिर अभी के बाज़ार भाव के हिसाब से।
सरकार की ओर से अभी ये स्पष्ट नहीं किया गया है कि संपत्ति वापस लेने वालों को क्या सरकार सुरक्षा भी मुहैया कराएगी या नहीं।
'सुरक्षा की बड़ी चूक का परिणाम'
हालांकि पंडिता और दूसरे कश्मीरी पंडितों को लगता है कि हाल की घटनाएं 'बड़ी सुरक्षा चूक' भी है क्योंकि सुरक्षा एजेंसियों ने 21 सितंबर को ही अलर्ट जारी किया था और बड़े हमले की आशंका जताई थी।
वहीं वरिष्ठ पत्रकार आदित्य राज कौल कहते हैं, ''घाटी में हमलों का सिलसिला 2008 से ही जारी है। लेकिन अनुच्छेद 370 हटाने के बाद यहाँ के कट्टरपंथियों में बड़ी बेचैनी रही है। उनके अंदर ग़ुस्सा पनप रहा था, जिसने अचानक से हिंसा की शक्ल ले ली है।''
कौल मानते हैं कि इन सभी वारदातों में सुरक्षा अमले से चूक हुई है। वो कहते हैं कि जहाँ-जहाँ वारदात हुई, वहाँ से कुछ ही मीटर की दूरी पर या तो सुरक्षा बलों के शिविर थे या एसएसपी का कार्यालय।
गुरुवार यानी सात अक्टूबर को एक सरकारी स्कूल में घुसकर चरमपंथियों ने पहचान तय करने के बाद स्कूल के टीचर दीपक चंद और प्रिंसिपल सतिंदर कौर की गोली मारकर हत्या कर दी। उससे पहले श्रीनगर के एक मशहूर दवा दुकान के मालिक माखन लाल बिंद्रू की भी सरेआम गोली मारकर ह्त्या कर दी गई।
पुनर्वास योजना के ढांचे की गड़बड़ी
कौल कहते हैं कि सरकार ने कश्मीरी पंडितों की जो पुनर्वास योजना बनाई है, उसके तहत ज़्यादातर लोगों को सरकारी स्कूल में नौकरी दी गई। वो कहते हैं, ''इस योजना की गड़बड़ी ये है कि इसमें ऐसे प्रावधान किए गए हैं कि नियुक्त किए गए लाभार्थियों को सिर्फ़ घाटी में ही नौकरी करनी पड़ेगी। यदि वो दूसरी जगह चले जाते हैं तो फिर उनकी नौकरी ख़त्म हो जाएगी।''
श्रीनगर के स्कूल में हुई घटना के बाद सरकारी स्कूलों में नियुक्त किए गए सभी कश्मीरी पंडित शिक्षकों के बीच खौफ़ पैदा हो गया है। न सिर्फ़ शिक्षक बल्कि दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों में भी दहशत साफ़ देखी जा सकती है। इसलिए घटना के बाद कुछ शिक्षक श्रीनगर के क्षीर भवानी मंदिर में रह रहे हैं, जबकि कुछ को शिविरों में रखा गया है। घाटी के शेख़पुरा में मौजूद कश्मीरी पंडितों का शिविर भी ख़ाली हो चुका है और बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है।
हालांकि जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट कर कश्मीरी पंडितों से पलायन न करने का अनुरोध किया है। उन्होंने कहा, "जो लोग घाटी छोड़कर जा रहे हैं या जाने की सोच रहे हैं, उनसे मैं दिल से अपील करता हूँ कि ऐसा मत कीजिए। हम उन ताक़तों के मंसूबों को कामयाब नहीं होने देंगे, जो आपको भगाना चाहते हैं। ज़्यादा बड़ी आबादी है जो चाहती है कि आप न जाएं।"
सरकार पर लापरवाही का आरोप
हालांकि बीबीसी से बात करते हुए कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के संजय टिक्कू का कहना है, ''पिछले एक साल से उन्होंने समय-समय पर जम्मू और कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा को कई पत्र और मेल लिखे हैं, जिसमें घाटी में रह रहे कश्मीरी पंडितों के बीच व्याप्त भय को लेकर उनका ध्यान खींचा गया है।'' लेकिन उनका आरोप है कि उप-राज्यपाल के कार्यालय से उनके पत्रों का कोई संज्ञान नहीं लिया गया।
इसी महीने की पाँच तारीख़ को जो पत्र उन्होंने उप-राज्यपाल को लिखा है, उसमें कहा गया है कि घाटी में अचानक तेज़ हुए हमलों के बाद कश्मीरी पंडितों के बीच भय का माहौल पैदा हो गया है।
सभी अपनी और अपने परिवारों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। ऐसे में अगर उपराज्यपाल की ओर से कोई संज्ञान नहीं लिया जाता, तो कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के समक्ष अपनी सुरक्षा का मुद्दा उठाएगा।
दूसरी तरफ़ गुपकर गठबंधन के संयोजक और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता युसूफ़ तारीगामी का कहना है, ''अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के बाद कहा जा रहा था कि इससे जम्मू-कश्मीर में हिंसा की घटनाओं में कमी आएगी। लेकिन जम्मू कश्मीर के प्रशासन के कई ऐसे फ़ैसले हैं, जिनके चलते समुदायों के बीच एक बार फिर से ग़लतफ़हमियां और दूरियां बढ़ने लगीं हैं।''