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क्या LIC वाकई डुबो रहा है लोगों का पैसा

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BBC Hindi

, शनिवार, 25 जनवरी 2020 (10:02 IST)
भारतीय बैंकिंग सिस्टम में डूबते कर्ज़ों की न ख़त्म होती कहानियों के बीच हाल में आई एक ख़बर ने निवेशकों के लिए ख़तरे की घंटी बजा दी है। 'भरोसे का प्रतीक' माने जाने वाली इस कंपनी के पिछले पाँच साल के आंकड़े वाकई हैरान और परेशान करने वाले हैं।
 
बात हो रही है सरकारी बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम यानी एलआईसी की। पिछले 5 साल में कंपनी के नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स यानी एनपीए दोगुने स्तर तक पहुँच गए हैं। कंपनी के वेबसाइट पर जारी सालाना रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2019 तक एनपीए का ये आंकड़ा निवेश के अनुपात में 6।15 फ़ीसदी के स्तर तक पहुँच गया है, जबकि 2014-15 में एनपीए 3।30 प्रतिशत के स्तर पर थे। यानी पिछले पाँच वित्तीय वर्षों के दौरान एलआईसी के एनपीए में तकरीबन 100 फ़ीसदी का उछाल आया है।
 
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि मोदी सरकार एलआईसी को नुक़सान पहुँचा रही है और इससे लोगों का इस संगठन (एलआईसी) पर भरोसा टूट जाएगा।
 
राहुल गांधी ने बुधवार को ट्वीट किया, "एलआईसी पर लोगों का भरोसा है, इसलिए करोड़ों ईमानदार लोग इसमें निवेश करते हैं। मोदी सरकार लोगों के भविष्य को जोखिम में डालकर एलआईसी को नुक़सान पहुँचा रही है। इससे जनता का एलआईसी पर भरोसा टूट रहा है। सामने आ रहे इन ख़बरों से लोगों में घबराहट पैदा होती है और इसके गंभीर नतीजे हो सकते हैं।"
 
एलआईसी की 2018-19 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक 31 मार्च 2019 को कंपनी के सकल एनपीए 24 हज़ार 777 करोड़ रुपये थे, जबकि कंपनी पर कुल देनदारी यानी कर्ज़ चार लाख करोड़ रुपये से अधिक का था। एलआईसी की कुल परिसंपत्तियाँ 36 लाख करोड़ रुपये की हैं।

दरअसल, एलआईसी की ये हालत इसलिए हुई है क्योंकि जिन कंपनियों में उसने निवेश किया था उनकी माली हालत बेहद ख़राब हो गई है और कई कंपनियां तो दिवालिया होने की कगार पर पहुँच गई हैं, इनमें दीवान हाउसिंह रिलायंस कैपिटल, इंडियाबुल्स हाउसिंग फ़ाइनेंस, पीरामल कैपिटल और यस बैंक शामिल हैं।
 
दीवान हाउसिंग में एलआईसी का एक्सपोज़र 6500 करोड़ से अधिक का है, रिलायंस कैपिटल में चार हज़ार करोड़ रुपये का एक्सपोज़र था।
 
एबीजी शिपयार्ड, एमटेक ऑटो और जेपी ग्रुप में भी एलआईसी का काफ़ी अधिक एक्सपोज़र था।
 
एस्कॉर्ट्स सिक्योरिटीज़ में रिसर्च एनालिस्ट आसिफ़ इक़बाल का कहते हैं, "इसे इस तरह देखा जा सकता है कि ग़ैरबैंकिंग वित्तीय सेक्टर में हुई तबाही का बड़ा असर एलआईसी पर हुआ है। एलआईसी ने इन कंपनियों में पैसा लगाया था। अब इन एनबीएफ़सी के बेहाल होने से एलआईसी की सेहत भी बिगड़ गई है।"
 
इसके अलावा क्योंकि एलआईसी के पास भारी मात्रा में नकदी है, इसलिए सरकार इसे अपने संकटमोचक के रूप में भी इस्तेमाल करती रही है। वितीय रूप से लड़खड़ा रही कई सार्वजनिक कंपनियों के शेयर ख़रीदकर एलआईसी ने इन्हें उबारा है।
 
आसिफ़ इक़बाल कहते हैं, "दरअसल, एलआईसी भी वही ग़लती करती रही है, जो कि कई सरकारी और निजी बैंकों ने की है। एलआईसी के एनपीए निजी क्षेत्र के बैंकों यस बैंक, एक्सिस बैंक और आईसीआईसीआई बैंक के एनपीए के क़रीब हैं।"
 
तो क्या एलआई में लोगों का पैसा डूब रहा है?
ये सही है कि बही खाते की इस बिगड़ी सेहत का असर कंपनी पर ज़रूर दिखेगा और अगर ये एनपीए न होते तो बहीखाते में मुनाफ़े का आंकड़ा बढ़ा हुआ नज़र आता। आसिफ़ इक़बाल कहते हैं, "सीधे तौर पर तो एलआईसी के ग्राहकों को डरने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन कहीं न कहीं उनके वित्तीय हितों पर असर तो होगा ही।"
 
@country_corrupt हैंडल से ट्वीट किया गया, "जब मध्यमवर्ग का कोई व्यक्ति एक ईएमआई नहीं भर पाता तो रिकवरी एजेंट पूरे परिवार को धमकाने चले आते हैं। अब अमीर डिफॉल्टर्स ने एलआईसी के करोड़ों रुपये डुबो दिए हैं तो उन्हें ख़ारिज कर दिया गया है। सरकार अमीरों के लिए है क्या?"
 
एजे प्रसाद ने ट्वीट किया, "क्या राहुल गांधी को कुछ पता है कि वो एलआईसी के किन एनपीए की बात कर रहे हैं। क्या उन्हें पता है कि ये एलआईसी हाउसिंग फ़ाइनेंस का एक्सपोज़र है। मोदी सरकार इसके लिए कैसे ज़िम्मेदार है। सही होगा कि राहुल गांधी ट्वीट करने से पहले सोच लें।"
 
एलआईसी की 2018-19 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक 31 मार्च 2019 को कंपनी के सकल एनपीए 24 हज़ार 777 करोड़ रुपये थे, जबकि कंपनी पर कुल देनदारी यानी कर्ज़ चार लाख करोड़ रुपये से अधिक का था। एलआईसी की कुल परिसंपत्तियाँ 36 लाख करोड़ रुपये की हैं।

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