- अदिति फडनिस (वरिष्ठ पत्रकार)
चुनावों की तारीख़ आ गई है। 2019 का लोकसभा चुनाव सात चरणों में लड़ा जाएगा और 11 अप्रैल से वोटिंग शुरू हो जाएगी। सबको मालूम था कि चुनाव सामने हैं और कैम्पेन की शुरुआत भी एक तरह से हो ही गई थी। लेकिन तारीख़ तय होने जाने के बाद इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रचार का मूड बदलेगा।
अब चुनाव सिर पर है और तैयारियां शुरू हो जाएंगी। चुनाव के बारे में दो-तीन महत्वपूर्ण चीज़ें हैं। हमें ये ध्यान से देखना होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव कब है। हालांकि इस समय तो यही कयास लगाए जा रहे हैं कि मोदी एक बार फिर वाराणसी से ही चुनाव लड़ेंगे। वाराणसी में मोदी की व्यस्तता और पार्टी के चुनाव प्रचार के लिए उनकी पूरी तरह से उपलब्धता एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं।
बीजेपी के मुद्दे
दूसरी बात ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के हवाले से जो चीज़ें कहीं जा रही हैं और दावे किए जा रहे हैं, उनका लब्बोलुआब यही है, 'एक बार फिर से मोदी सरकार।'
इसका मतलब ये हुआ कि जो लोग भी उन्हें चुनौती देने वाले थे या उनकी आलोचना कर रहे थे, उन लोगों की मुहिम अब ठंडी पड़ गई है। ऐसा इसलिए कि चुनाव की तारीख़ों की घोषणा अब हो गई है। जनवरी से देखें तो ज़्यादा वक़्त नहीं बीता है पर उस वक़्त देश का मूड कुछ और लग रहा था।
फ़रवरी की घटनाओं के बाद देश का मूड अब कुछ और लग रहा है। चुनाव में अब ज़्यादा वक्त नहीं बचा है और भारतीय जनता पार्टी का पलड़ा इस समय ज़्यादा भारी लग रहा है। लेकिन जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ेंगे, तस्वीर बदल सकती है। बीजेपी के पास बालाकोट के अलावा भी मुद्दे हैं। जो भी उन्होंने किया है। विकास या जनधन जैसे मुद्दों पर उनका ज़ोर रहेगा।
ये बात ग़ौर करने वाली होगी कि वो कौन से मुद्दे होंगे, जिन पर भारतीय जनता पार्टी चुनाव लड़ना चाहती है और कौन से मुद्दों पर कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियां उन्हें चुनौती देंगी।
पुलवामा के बाद
साल 2014 का माहौल अलग था। उस समय जो मुद्दे थे, वे विपक्ष ने खड़े किए थे, उससे ज़्यादा रोल मीडिया का उन मुद्दों को खड़ा करने में था। एक बदलाव की आहट थी। पुलवामा का हमला होने के पहले विपक्ष सरकार को घेरने में एक हद तक कामयाब होते हुए दिख रहा था। लेकिन अब हर सांसद को अपनी सीट के लिए मशक्कत करनी पड़ेगी।
उदाहरण के तौर पर बिहार में सभी सात चरणों में चुनाव होने हैं। ऐसे में लोगों की नज़र हर सांसद पर होगी और बड़ी बारीकी से उनके काम का आकलन किया जाएगा। ये चुनाव बहुत ही रोचक होने वाले हैं। इस तरह से टुकड़े-टुकड़े करके चुनाव शायद ही पहले कभी हुए हों।
प्रियंका की मौजूदगी
जिस तरह से विपक्ष की एकजुटता दिखाई दे रही थी, अब भी उसे बनाए रखने की कोशिश की जा रही है। ख़ासतौर पर उत्तर प्रदेश में जिस तरह से महागठबंधन बनकर खड़ा हुआ है और कांग्रेस ने जिस तरह से प्रियंका गांधी की इन चुनावों में इंट्री कराई है। उसका असर अभी सामने आना बाक़ी है। लेकिन एक सच ये भी है कि प्रियंका गांधी ने अभी अपनी मुठ्ठी खोली नहीं है।
अभी उनके बारे में कोई पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है। प्रियंका गांधी ने एक भी पब्लिक मीटिंग नहीं की है, एक भी प्रेस कॉन्फ़्रेंस नहीं की है। अभी तक वे अपने पति पर चल रही क़ानूनी कार्रवाई में ही घिरी हुई दिख रही हैं। उनका क्या रोल रहेगा, वे लोगों से कैसे मुखातिब होंगी। इसे लेकर अभी तस्वीर साफ़ नहीं है।
जहां तक बाक़ियों का सवाल है, निश्चित रूप से गठबंधन सक्रिय हो जाएगा। गुजरात में अगले एक-दो दिनों में कांग्रेस कार्यसमिति की मीटिंग है। वहां भी एक तरह से औपचारिक तौर पर चुनावी बिगुल बजेगा। कांग्रेस को अपने मुद्दे सामने रखने हैं, उन्हें दिखाना होगा कि वे चुनाव प्रचार को किस दिशा में ले जाना चाहती है।