लोकसभा चुनाव 2019 : पूर्वांचल की 13 सीटों पर कौन कितना है मजबूत?

Webdunia
रविवार, 19 मई 2019 (11:18 IST)
-प्रियंका दुबे (बीबीसी संवाददाता)
 
17वीं लोकसभा की 543 सीटों में से 483 सीटों पर जनता का फैसला फिलहाल ईवीएम में बंद हो चुका है। बीते 1 महीने से जारी मैराथन चुनाव का आखिरी चरण 19 मई को है। जनता का अंतिम निर्णय अपने पक्ष में मोड़ने के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ-साथ कांग्रेस के लिए भी 8 राज्यों की 59 लोकसभा सीटों पर होने वाला अंतिम चरण का यह मतदान अहम है।
 
अंतिम चरण के चुनाव में सबसे ज्यादा चर्चा पूर्वी उत्तरप्रदेश की 13 लोकसभा सीटों की है। वजह साफ है- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकसभा सीट वाराणसी और प्रियंका गांधी को पूर्वांचल का कांग्रेस प्रभारी बनाया जाना। पूर्वांचल की इन 13 सीटों पर भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस की प्रतिष्ठा भी दांव पर है।
 
प्रतिष्ठा का प्रश्न
 
प्रतिष्ठा सिर्फ बीजेपी और कांग्रेस की ही दांव पर नहीं है बल्कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का साथ भी सवालों के घेरे में है। यहां कुछ सीटों पर त्रिकोणीय, तो कुछ पर बहुकोणीय मुकाबला है। पूर्वांचल की महाराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव, घोसी, सलेमपुर, बलिया, गाजीपुर, चंदौली, मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज लोकसभा सीटों के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वर्तमान सीट वाराणसी में भी 19 मई को अंतिम चरण में वोट डाले जाएंगे।
 
सीटों का गणित
 
इन सीटों पर महागठबंधन की ओर से सपा ने 8 और बसपा ने 5 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए हैं जबकि दूसरी ओर भाजपा ने 11 और पूर्वांचल में उसकी सहयोगी पार्टी अपना दल ने बाकी 2 सीटों- मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज में अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं। साथ ही यहां कांग्रेस सीधे-सीधे 11 सीटों पर चुनावी मैदान में है। वहीं कांग्रेस को अपना समर्थन घोषित कर चुकी जन अधिकार पार्टी 1 सीट (चंदौली) पर लड़ रही है।
 
पूर्वांचल की इन 13 सीटों पर चुनाव लड़ रहे सबसे महत्वपूर्ण नामों की फेहरिस्त वाराणसी से दूसरी बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से शुरू होती है। साथ ही केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा, अफजाल अंसारी, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर महेन्द्र नाथ पांडेय, अनुप्रिया पटेल, रमापति राम त्रिपाठी, ललितेश त्रिपाठी, रवि किशन, संजय सिंह चौहान, रतनजीत प्रताप नारायण सिंह (आरपीएन सिंह) और शिव कन्या कुशवाहा वे चंद महत्वपूर्ण नाम हैं जिन पर पूर्वांचल में सबकी नजर बनी रहेगी।
 
यहां यह याद रखना जरूरी है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में इन 13 सीटों में 12 सीटों पर भाजपा ने खुद जीत हासिल की थी जबकि 1 सीट पर उनकी सहयोगी पार्टी अपना दल ने चुनाव जीता था। ऐसे में एक ओर जहां पूर्वांचल में अंतिम चरण की तैयारियां जोरों पर हैं, वहीं दूसरी ओर मतदाताओं को लुभाने के लिए दिन-रात एक कर रहे प्रत्याशी प्रचार के आखिरी दिनों में अपनी पूरी ताकत चुनाव प्रचार में झोंक रहे हैं। लेकिन सवाल ये है कि क्या भाजपा 2014 की सफलता की कहानी इस बार इन 13 सीटों पर दोहरा पाएगी?
 
यूं तो उत्तरप्रदेश के पूर्वी हिस्से में पड़ने वाले 24 जिलों में सिमटा पूर्वांचल हर बड़े चुनाव में अपने भौगोलिक दायरों से आगे बढ़कर नतीजों और राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करता रहा है। लेकिन यहां सवाल यह भी है कि भाजपा को चुनौती दे रहे महागठबंधन और कांग्रेस के उम्मीदवार इस अंतिम चरण में पूर्वांचल की कितनी बहुचर्चित सीटों को अपने खाते में ला पाते हैं?
 
पूर्वांचल का महत्व
 
काशी से लेकर मगहर तक मोक्ष और नर्क के पौराणिक द्वारों के बीच बसे पूर्वांचल का राजनीतिक महत्व इसी बात से स्पष्ट होता है कि 2014 में देश की सभी लोकसभा सीटों को छोड़कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनाव लड़ने के लिए पूर्वांचल का दिल गंगा किनारे बसे पौराणिक शहर वाराणसी को चुना।
 
यही नहीं, 2017 के उत्तरप्रदेश चुनावों में भारी बहुमत से जीतकर राज्य में सरकार बनाने वाली भाजपा ने मुख्यमंत्री के तौर पर पूर्वांचल के केंद्र गोरखपुर से निर्वाचित योगी आदित्यनाथ को चुना और आखिर में कांग्रेस ने भी प्रियंका गांधी को औपचारिक रूप से इस चुनाव में उतारने के लिए पूर्वांचल को ही चुना। लेकिन संत कबीर की अंतिम आरामगाह और गौतम बुद्ध को परिनिर्वाण तक पहुंचाने वाली पूर्वांचल की ऐतिहासिक धरती पर किसी भी पार्टी के लिए चुनावी जीत की राह सरल नहीं है।
 
भाजपा का प्रभाव
 
पूर्वांचल में 4 दशकों से सक्रिय वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ भट्टाचार्य कहते हैं कि 2014 की तुलना में इस बार मोदी लहर कमजोर है। उन्होंने कहा कि वाराणसी को छोड़कर पूरे पूर्वांचल में कहीं भी मोदीजी की लहर जैसा माहौल नहीं है इसलिए ऐसा नहीं लगता की भाजपा 2014 के नतीजे दोहरा पाएगी।
 
उन्होंने आगे कहा कि जहां तक महागठबंधन का सवाल है, वाराणसी में तो उनका कोई असर ही नहीं है लेकिन वाराणसी के बाहर हर जगह वे भाजपा को ठीक-ठाक टक्कर दे रहे हैं। वोट देने के मामले में शहरी और ग्रामीण मतदाताओं की अलग-अलग पसंद पर जोर देते हुए जानकार इस बार पूर्वांचल में अर्बन-रुरल डिवाइड फैक्टर के हावी होने का दावा भी कर रहे हैं।
 
वरिष्ठ स्थानीय पत्रकार उत्पल पाठक जोड़ते हैं, पूर्वांचल के शहरी मतदाताओं पर आज भी भाजपा का प्रभाव ज्यादा है। लेकिन जैसे-जैसे आप ग्रामीण अंचल में आगे बढ़ते हैं, वैसे-वैसे मतदाताओं का रुख महागठबंधन के प्रत्याशियों की ओर मुड़ने लगता है। वैसे भी अंतिम चरण में होने वाले मतदान पर पिछले चरणों के माहौल का काफी असर पड़ता है। आखिरी दिन तक मतदाता का मन बदलता है इसलिए निश्चित तौर पर सिर्फ इतना कहा जा सकता है कि बनारस को छोड़कर पूर्वांचल की हर सीट पर बहुत कड़ा मुकाबला है।
 
विकास के साथ-साथ एंटी-इनकंबैंसी को भी एक मजबूत फैक्टर बताते हुए अमिताभ कहते हैं कि पूर्वांचल पुराने समय से ही गरीब और पिछड़ा इलाका रहा है। यहां कभी जनता की आशाएं ही पूरी नहीं हुईं, तो प्रत्याशाओं के बारे में क्या कहूं? लेकिन अगर पिछले चुनाव से तुलना करें तो भाजपा के पक्ष में होने वाले वोटिंग प्रतिशत में कमी आएगी। यह कमी नतीजों पर कितना असर डालेगी? यह तो 23 मई को ही साफ हो पाएगा।
 
प्रियंका गांधी का असर
 
प्रियंका गांधी के पूर्वांचल के नतीजों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में बात करते हुए उत्पल बताते हैं कि देखिए, प्रियंका ने साफतौर पर कई बार कहा कि 2019 से ज्यादा उन्हें 2022 के विधानसभा चुनाव की चिंता है। प्रियंका के पूर्वांचल प्रभार लेने से यहां कांग्रेस में कितनी मजबूती आई है, ये तो अभी भविष्य के गर्भ में है लेकिन उनके आने से यहां कांग्रेस चर्चा में वापस आ गई है।
 
अंतिम चरण की बात करें तो इस बार कुशीनगर और मिर्जापुर की सीटों पर कांग्रेस मजबूत नजर आ रही है। पिछली बार से तो उनका वोटिंग प्रतिशत बढ़ेगा ही, क्योंकि 2014 की तुलना में इस बार कांग्रेस के पास पूर्वांचल में खोने के लिए कुछ नहीं है।
 
छोटी लेकिन महत्वपूर्ण पार्टियों का असर
 
योगी आदित्यनाथ की सरकार में कैबिनेट मंत्री और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रभारी ओमप्रकाश राजभर ने अपनी पुरानी सहयोगी भाजपा के खिलाफ जाकर मिर्जापुर सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी ललितेश त्रिपाठी को अपना समर्थन घोषित कर दिया है। साथ ही उत्तरप्रदेश की 40 सीटों से अपने उम्मीदवार खड़े करने वाली इस पार्टी के प्रमुख राजभर का स्थानीय राजभर जाति के लोगों पर खासा प्रभाव माना जाता है।
 
बसपा से अलग होकर अपनी नई जन अधिकार पार्टी बनाने वाले बाबू सिंह कुशवाहा ने इस चरण में बस्ती और चंदौली से अपने प्रत्याशी उतारे हैं। कुशवाहा जाति के वोटों पर असर रखने वाली इस पार्टी ने चंदौली सीट पर कांग्रेस के समर्थन से बाबू सिंह कुशवाहा की पत्नी शिवकन्या कुशवाहा को चुनावी मैदान में उतारा है।
 

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