महाराष्ट्र चुनावः 'मोदी पैटर्न' पर महाराष्ट्र में राजनीति चला रहे हैं देवेंद्र फडणवीस?

Webdunia
मंगलवार, 8 अक्टूबर 2019 (15:52 IST)
हर्षल आकुडे, बीबीसी मराठी संवाददाता
विधानसभा चुनाव 2019 के लिए नामांकन पत्र भरने की अंतिम तारीख़ 4 अक्टूबर थी। इस दिन सभी निर्वाचन क्षेत्रों में यह तय हो गया कि कौन कहां से चुनावी अखाड़े में उतर रहा है।
 
2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी अकेले चुनाव लड़ना चाहती थी लेकिन उसने शिवसेना के साथ चुनावी मैदान में उतरने का फ़ैसला किया। इस बार बीजेपी और सहयोगी पार्टियां 164 जबकि शिवसेना 124 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
 
बीजेपी ने पहली सूची में 125, दूसरी में 14, तीसरी में 4 और चौथी में 7 मिलाकर अपने सभी 150 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की (अन्य 14 सीटें सहयोगी पार्टियों के पास हैं)।
 
अपने 150 कैंडिडेट्स की सूची में बीजेपी ने कुछ पूर्व मंत्रियों के साथ-साथ 14 वर्तमान विधायकों का भी पत्ता साफ़ कर दिया है। यानी बीजेपी ने मंत्री के साथ ही विधायकों की उम्मीदवारी ख़ारिज करने की हिम्मत दिखाई है। फ़िलहाल महाराष्ट्र बीजेपी का नेतृत्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटील के हाथों में है।
 
मोदी के नक्शेक़दम पर
 
इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी गुजरात में इसी प्रकार की राजनीति अपनाई थी। जब मोदी वहां मुख्यमंत्री थे तब वहां सिर्फ उनकी ही चलती थी। उस समय मोदी का बनाया वो नियम आज भी कायम है।
 
2014 में बीजेपी सत्ता में आने के बाद मोदी-शाह ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार करना शुरू किया था। वरिष्ठ नेताओं को चुनावी मैदान में नहीं उतारा गया और महज सलाहकार समिति तक ही सीमित रखा गया। महाराष्ट्र में फडणवीस-पाटील जोड़ी भी इसी राजनीतिक रणनीति को अपना रही है।
 
टिकट देने के फ़ैसले के पीछे भी गहरी सोच
प्रमुख नेताओं को दरकिनार करने का कारण जानने के लिए बीबीसी ने बीजेपी प्रवक्ता केशव उपाध्याय से संपर्क किया।
 
उन्होंने कहा कि पार्टी ने विचार करके ही यह फ़ैसला लिया है, हमारे लिए पार्टी सर्वोच्च है। सबसे पहले देश फिर पार्टी आती है, बीजेपी हमेशा इसी पर चली है। जो चुनावी मैदान में प्रत्याशी के तौर पर उतरना चाहते थे उन्होंने भी इसका विरोध नहीं किया है। उन्होंने पार्टी का फ़ैसला स्वीकार कर लिया है। एकनाथ खडसे ने भी पार्टी पर भरोसा होने का संकेत दिया है।
 
गुजरात में क्या हुआ था?
अहमदाबाद के दिव्य भास्कर के कार्यकारी संपादक अजय नायक ने कहा, "गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद मोदी ने अड़ंगा डालने की संभावना वाले नेताओं को दरकिनार कर दिया। गुजरात में 2001 में भूकंप आया था। तब केशुभाई पटेल मुख्यमंत्री थे। भूकंप प्रभावित लोगों के पुर्नवासन का काम ठीक नहीं होने के कारण उन्हें विधानसभा उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद मोदी मुख्यमंत्री बने। सत्ता में आने के तुरंत बाद मोदी ने पूर्व मुख्यमंत्री सुरेश मेहता जैसे नेताओं को दरकिनार करना शुरू किया।"
 
अजय नायक कहते हैं, "2002 के दंगे की वजह से मोदी की छवि ख़राब हुई। इसे सुधारने के लिए उन्होंने वाइब्रेंट गुजरात शुरू की। निवेश के जरिए गुजरात का विकास होने वाला है यह वहां के लोगों को बताया जाने लगा। शंकर सिंह वाघेला पार्टी छोड़ कर जा चुके थे। हरेन पाठक, नलीन भट्ट और काशीराम राणा जैसे नेताओं को दरकिनार कर दिया गया था। आज तक गुजरात की राजनीति पर मोदी-शाह का ही वर्चस्व है। मुख्यमंत्री विजय रूपाणी, अमित शाह के करीबी हैं। कुल मिलाकर गुजरात बीजेपी में ऐसे कोई भी नेता मौजूद नहीं हैं तो मोदी-शाह के ख़िलाफ़ बोलने की हिम्मत करें।"
 
वरिष्ठ एकनाथ खडसे भी रेस से बाहर
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक अभय देशपांडे कहते हैं, "केंद्र की सरकार पूरी तरह से मोदी चलाते हैं। यही तरीका गुजरात में अपनाया गया और अब महाराष्ट्र में भी यही दोहराया जा रहा है। इसे मोदी पैटर्न कहना ज्यादा सही होगा। जिन्हें चुनावी टिकट नहीं दिए गए उसके अलग अलग कारण हैं। जिन्हें टिकट नहीं दिए गए उनमें तीन ऐसे भी नेता हैं जो नितिन गडकरी के करीबी माने जाते हैं।"
 
देशपांडे कहते हैं, "इससे पहले कांग्रेस और एनसीपी भी ऐसा कर चुकी है। चंद्रशेखर बावनकुले को टिकट नहीं देने का फ़ैसला वरिष्ठ नेताओं ने लिया था या स्थानीय कारणों से लिया गया, इसका अब तक पता नहीं चला है।"
 
वे कहते हैं, "एकनाथ खडसे 2014 से पहले विधानसभा में विपक्ष के नेता थे। सत्ता में आने के बाद वे मुख्यमंत्री पद के स्वाभाविक उम्मीदवार थे लेकिन मोदी-शाह ने उन पर फडणवीस को तरजीह दी। खडसे ने नाराज़गी जताई लेकिन भोसरी मामले में उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा। और उन्होंने विधानसभा सत्र के आखिरी दिन अपनी तल्खी जाहिर कर दी। उन्हें इस बार टिकट ही नहीं दिया गया इसके पीछे वजह साफ़ है कि जीतने की स्थिति में उन्हें मंत्री बनाना ही पड़ता।"
 
फडणवीस और अधिक ताक़तवर हुए
देशपांडे को लगता है कि बीते कुछ समय में राज्य स्तर पर पार्टी के फ़ैसले लेने का अधिकार किसी और मुख्यमंत्री को नहीं मिला था।
 
वे कहते हैं, "बीजेपी के सत्ता में आने के बाद पंकजा मुंडे, सुधीर मुनगंटीवार भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार होते। उनके साथ बाकी नेताओं को भी सीधा संदेश दे दिया गया। मुख्यमंत्री फडणवीस और प्रधानमंत्री मोदी में कई समानताएं हैं। दोनों का अपने सभी मंत्रालयों पर पूरा नियंत्रण है। पॉलिसी पैरैलिसिस नहीं है। वो मजबूत फ़ैसले लेते हैं। इससे पहले बीजेपी सामूहिक फ़ैसले लेने के लिए जानी जाती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है।"
 
वरिष्ठ पत्रकार अदिति फडणीस कहती हैं, "ये बात भले ही अच्छी हो लेकिन सत्ता पर वर्चस्व बना रहे इसके लिए बदले की राजनीति खुद ब खुद विकसित होने लगती है।"
 
अजय नायक कहते हैं, "2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी का हालत ख़राब थी, उसे देखने के बाद अलपेश ठाकुर, धवल सिंह झाला जैसे नेताओं को कांग्रेस से बीजेपी में शामिल करवाया गया। इसके बाद कांग्रेस की टिकट पर 2017 में चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे जवाहर चावड़ा ने इस साल 8 मार्च की सुबह विधायक पद से इस्तीफ़ा दिया और बीजेपी में शामिल हुए, उसी शाम उन्हें मंत्री पद की शपथ दिला दी गई।"
 
वे कहते हैं, "अन्य पार्टियों से आए नेताओं को पद दिया गया लेकिन पार्टी में पहले से मौजूद नेता इसके ख़िलाफ़ विरोध नहीं जता सके। पार्टी के पुराने नेताओं पर अन्य पार्टियों के बीजेपी में आए नेताओं को तरजीह देना राजनीति का हिस्सा बन गई है।"
 
जाएं तो जाएं कहां?
अदिति फडणीस कहती हैं, "जिनको टिकट नहीं दिया गया है वो उसके ख़िलाफ़ एक शब्द भी नहीं बोलना चाह रहे हैं। खडसे ने थोड़ी कोशिश ज़रूर की लेकिन वे भी शांत हो गए।"
 
इसका कारण जानने की कोशिश करने के बाद अदिती कहती हैं, "जिन्हें टिकट नहीं मिला है उनके पास पार्टी का फ़ैसला स्वीकार करने की जगह कोई विकल्प ही नहीं है। विपक्ष बेहद कमज़ोर है।"
 
वे कहती हैं, पार्टी के ख़िलाफ़ जाने की कोशिश महंगी पड़ सकती है, ये वो नेता जानते हैं। केंद्र में न्याय मांगने जाएं तो राज्य में सारे अधिकार फडणवीस को दिए हुए हैं। नितिन गडकरी बोलने की कोशिश ज़रूर कर रहे थे लेकिन वे भी शांत हो गए क्योंकि जाएं तो कहां जाएं।"

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

राष्ट्रपति पुतिन पर भड़के जेलेंस्की, रूस को लेकर कह दी बड़ी बात, अब क्या होगा Putin का रुख

Salman Khurshid : कांग्रेस नेताओं के बर्ताव से क्यों दुखी हुए सलमान खुर्शीद, कह दी चुभने वाली बात

Coronavirus Alert : पश्चिम बंगाल में कोरोनावायरस की भयानक स्थिति, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा- ‘अगली कोविड महामारी’ अभी खत्म नहीं हुई

Pakistan में आने वाली है प्रलयकारी मुसीबत, IRSA के डरावने आंकड़ों से आतंकिस्तान में मचा हाहाकार

एलन मस्क के पिता अयोध्या में रामलला के दर्शन करने क्यों आए, बोलेंगे जय श्रीराम

सभी देखें

मोबाइल मेनिया

Realme C73 5G लॉन्च, सस्ती कीमत में महंगे फोन के फीचर्स

TECNO POVA Curve 5G : सस्ता AI फीचर्स वाला स्मार्टफोन मचाने आया तहलका

फोन हैकिंग के हैं ये 5 संकेत, जानिए कैसे पहचानें और बचें साइबर खतरे से

NXTPAPER डिस्प्ले वाला स्मार्टफोन भारत में पहली बार लॉन्च, जानिए क्या है यह टेक्नोलॉजी

Samsung Galaxy S25 Edge की मैन्यूफैक्चरिंग अब भारत में ही

अगला लेख