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गांधी जब लंदन में छड़ी के साथ नाचे...

हमें फॉलो करें गांधी जब लंदन में छड़ी के साथ नाचे...
, सोमवार, 30 सितम्बर 2019 (10:59 IST)
मधुकर उपाध्याय
वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी के लिए
 
महात्मा गांधी का जिक्र आता है तो अक्सर दो तरह की तस्वीरें जेहन में आती हैं। एक तो ये कि वो निहायत रुखे सूखे, अड़ियल और ज़िद्दी इंसान थे और दूसरा उनसे जुड़ी कुछ चीजें जैसे उनकी छड़ी, उनका चश्मा, उनकी घड़ी।
 
लेकिन इसके अलावा बहुत सारी चीजें हैं जो गांधी से जुड़ी हुई हैं और जिनके बारे में लोगों को ज़्यादा जानकारी नहीं है। मसलन संगीत।
 
गांधी का मानना था कि हिन्दुस्तान की आज़ादी की लड़ाई तब तक मुक्कमल नहीं हो सकती जब तक उसमें संगीत न हो।
 
बल्कि उनका कहना था कि संगीत नहीं है इसलिए ये लड़ाई उस ज़ोर से नहीं चल पा रही है जिससे उसे चलना चाहिए। वे सत्याग्रह से लोगों को जोड़ने का एक तरीका उसे मानते थे। वो 'वैष्णवजन' गाते थे नरसी मेहता का। उनको बहुत प्रिय था ये भजन।
 
'रघुपति राघव राजा राम' गाते थे। 'वैष्णवजन' को बाद में मिश्र खमाज़ में लोगों ने ढाला और एमएस सुब्बुलक्ष्मी और पंडित जसराज ने उसकी धुन बनाई और उसको गाया।
 
लेकिन गांधी इतने पर ही नहीं रुक रहे थे। तमाम तरह के दूसरे गानों में भी उनकी दिलचस्पी थी। मसलन जब वो यरवदा जेल में थे और दलितों के पक्ष में आंदोलन करने जा रहे थे, आमरण अनशन पर बैठने जा रहे थे तो अनशन पर बैठने से पहले उन्होंने सरदार पटेल को और महादेव देसाई को बुलाया और एक गीत गाने लगे।
 
और वो गीत था, 'उठ जाग मुसाफिर भोर भई अब रैन कहां जो सोवत है ' और उसके बाद सरदार पटेल और महादेव देसाई सबने गाना शुरू किया। फिर जेल में जितने और कैदी थे उन्होंने भी गाना शुरू कर दिया और एक पूरा माहौल बन गया।
 
एक किस्सा बहुत मज़ेदार है गांधी की संगीत में दिलचस्पी का और वो बताता है कि उनकी दिलचस्पी सिर्फ़ हिन्दुस्तानी संगीत में नहीं थी, विदेशी संगीत में भी थी। पाश्चात्य संगीत में थी।
 
राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस के लिए गांधी लंदन में थे और ठहरे थे मुरिएल लेस्टर के यहां। उनका एक आश्रम था जिसको किंग्सले हॉल कहा जाता था। पूर्वी लंदन का इलाका था। गांधी रोज शाम को जब भी फारिग होते बाकी काम करने से, बैठकें करने से तो किंग्सले हॉल के सभागार में चले जाते थे।
 
क्यों, इसलिए कि वहां कुछ स्थानीय लोग इकट्ठा होकर एक गाना गाते थे। एक स्कॉटिश गीत। स्कॉटलैंड का एक लोकगीत था जिसको रॉबर्ट बर्न्स ने बाद में नए ढंग से लिखा। आउड लैंग साइन यानी गए ज़माने की बात।
 
गांधी वो गीत सुनने के लिए कितनी बार गए, लोगों को अंदाज़ा नहीं हुआ और फिर गांधी को पता चला कि हर शनिवार को लोग इस गाने पर नाचते हैं।
 
कांग्रेस के लोगों को जो उनके साथ गए थे राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस के लिए उनको ये पसंद नहीं आता था कि गांधी इस तरह की चीजों में दिलचस्पी ले रहे हैं।
 
उन्होंने मना करने की कोशिश की। गांधी नहीं माने और एक दिन शनिवार को जब वो वहां पहुंचे और गाना शुरू हुआ और अचानक एक महिला ने हाथ उठाकर कहा कि गाना रोक दो।
 
फिर उसने गांधी की तरफ देखकर कहा कि आप हमारे साथ नाचना चाहेंगे? गांधी ने देखा कि वहां जितने लोग थे वो या तो पति पत्नी थे या दोस्त थे लेकिन एक लड़का, एक लड़की साथ में नाच रहे थे।
 
गांधी ने कहा- जरूर। मैं नाचूंगा लेकिन एक शर्त पर कि मेरा जोड़ीदार मेरी छड़ी होगी और गांधी अपनी छड़ी के साथ किंग्सले हॉल के उस सभागार में नाचे।
 
उसी राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस के बाद जब वो रोम्या रोला से मिलने फ्रांस गए तो उन्होंने तमाम तरह की बातें रोम्या रोला से कीं और आखिर में रोम्या रोला से, उनको पता था कि वो बहुत अच्छा पियानो बजाते हैं, उन्होंने कहा कि आप मुझे बिथोविन की पांचवीं सिंफनी सुना दीजिए।
 
रोम्या रोला बीमार थे। उठ नहीं सकते थे। बहुत मुश्किल से उन्हें बिस्तर से उठाकर पियानो पर बिठाया गया। उंगलियां पियानो पर रखी गईं और रोम्या रोला ने वो सिंफनी बजाकर गांधी को सुनाई।
 
बाद में एक ग्रीक गाने पर जो रोम्या रोला से गांधी ने कहा नहीं था लेकिन उन्होंने अपनी तरफ से बजाया और गांधी ने उस गाने की अगली पंक्तियां दोहराईं साथ में। उन्हें वो भी मालूम था। तो ये चीजों को पूरी तस्वीर, उनकी बड़ी तस्वीर देखना निहायत जरूरी है।
 
सिर्फ़ एक फ़िल्मी गाने पर कि 'दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल' गांधी मुक्कमल नहीं होते। गांधी की तस्वीर मुक्कमल नहीं होती। उसके लिए दूसरी चीजें जानना भी उतना ही जरूरी है और शायद हमें गांधी को बेहतर समझने में और 150वें साल में उन्हें बेहतर समझने में मदद करे।

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