मोरबी और माच्छू से नरेंद्र मोदी का बहुत पुराना रिश्ता

BBC Hindi
मंगलवार, 1 नवंबर 2022 (08:11 IST)
रेहान फ़ज़ल, बीबीसी संवाददाता
मोरबी, माच्छू नदी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रिश्ता बहुत पुराना है, मोरबी ही वह जगह है जहाँ से मोदी ने सार्वजनिक जीवन में अपनी पहचान बनानी शुरू की। मोदी ने मोरबी में क्या और कैसे किया, उसके बारे में बात करने से पहले जानते हैं कि मोरबी में अब से तकरीबन 43 साल पहले क्या हुआ था।
 
बात 11 अगस्त 1979 की है। राजकोट के पास मोरबी में पूरी जुलाई बिल्कुल भी बारिश नहीं हुई थी, लेकिन अगस्त आते-आते उस इलाके में लगातार बारिश शुरू हो गई।
 
मोरबी के पास बहने वाली माच्छू नदी पर दो बाँध बनाए गए थे। माच्छू नदी पर 22.56 मीटर ऊँचा दूसरा बाँध 1972 में बनकर तैयार हुआ था। 10 अगस्त, 1979 की शाम माच्छू नदी पर बने बाँध नंबर-1 ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया था।
 
इसके बाद बाँध नंबर-2 के दरवाज़े भी खोल दिए गए थे, लेकिन तकनीकी कराणों से उसके दो दरवाज़े खोले नहीं जा सके। नतीजा ये हुआ कि बाँध के जल भंडार में अतिरिक्त पानी जमा हो गया। उधर बारिश थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। इसका नतीजा ये हुआ कि बांध के फ़्लडगेट से बहने वाला पानी बहुत बड़ी मात्रा में, बहुत तेज़ी के साथ निकलने लगा।
 
पूरा शहर बाढ़ के पानी में डूबा
दोपहर एक बजे के आसपास पानी की लहरें बाँध के ऊपर से बहने लगी थीं। दो बजे तक बाँध के ऊपर से डेढ़ दो फ़ीट पानी बह रहा था। सवा दो बजे के आसपास बाँध के बाएँ हिस्से की मिट्टी बहने लगी थी। थोड़ी देर में दाहिने हिस्से की मिट्टी भी खिसकने लगी थी।
 
पानी इतनी तेज़ी से निकला था कि बाँध पर तैनात कर्मचारियों को अपने केबिन तक से निकलने का मौका नहीं मिल पाया था। 20 मिनट के अंदर बाँध का सारा पानी नज़दीक के कस्बे मोरबी में घुस गया था।
 
साढ़े तीन बजे तक मोरबी कस्बा 12 से 30 फ़ीट पानी के नीचे था। अगले चार घंटों में पूरा का पूरा मोरबी शहर पानी में डूब गया था। साढ़े सात बजे पानी थोड़ा कम हुआ, लेकिन तब तक क़रीब-क़रीब पूरा शहर मौत के मुँह में समा गया था।
 
जगह-जगह लोगों और मवेशियों के फूले हुए शव पड़े हुए थे और बाढ़ आने के आठ दिनों बाद भी सड़ते हुए शवों की दुर्गंध चारों तरफ़ व्याप्त थी। हर जगह मलबा ही मलबा फैला हुआ था। बिजली के खंभे मुड़ गए थे।
 
24 घंटे बाद ख़बर रेडियो पर आई
सबसे चौंका देने वाली बात ये थी कि स्थानीय प्रशासन को बाँध टूटने के 15 घंटे बाद तक इस बारे में सूचना नहीं मिली थी। वो ये ही मान कर चल रहे थे कि अचानक आई बाढ़ के कारण लगातार बारिश हो रही है।
 
घटना के 24 घंटे बाद यानी 12 अगस्त को ये समाचार पहली बार रेडियो पर दिया गया। राहत कार्यों के लिए सेना के जवानों को मोरबी बुलाया गया, लेकिन वो वहाँ घटना के 48 घंटों बाद यानी 13 अगस्त को ही पहुँच पाए।
 
स्थानीय प्रशासन के लोग इसकी सूचना ज़िला मुख्यालय राजकोट तक भी नहीं पहुँचा पाए क्योंकि टेलीग्राम लाइनों ने काम करना बंद कर दिया था। टेलीफ़ोन से संपर्क करने का सवाल ही नहीं था क्योंकि इलाके के सारे टेलीफ़ोन खंभे बाढ़ में बह गए थे।
 
सरकारी आँकड़ों के अनुसार, क़रीब 1000 लोग इस त्रासदी में मारे गए थे, लेकिन ग़ैर-सरकारी आँकड़ों के अनुसार, ये संख्या 25,000 के आसपास थी। इस घटना के एक सप्ताह बाद जब राष्ट्रीय प्रेस के लोग वहाँ पहुंचे, तब तक मोरबी एक भुतहा शहर के रूप में तब्दील हो गया था।
 
नरेंद्र मोदी राहत कार्य में लगे
कभी-कभी बड़ी राजनीतिक घटनाएँ, ग़ैर-राजनीतिक कारणों से शुरू होती हैं। उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री बाबू भाई पटेल हुआ करते थे। उस समय उनके मंत्रिमंडल में भारतीय जनसंघ और आरएसएस के बड़े नेता केशुभाई पटेल सिंचाई मंत्री थे।
 
मोरबी में अचानक बाढ़ की ख़बर सुनकर केशुभाई तुरंत मोरबी के लिए रवाना हो गए थे, लेकिन माच्छू नदी की उफ़नती लहरों ने उन्हें शहर के अंदर घुसने नहीं दिया था। शुरू के कुछ दिनों तक वहाँ कोई राहत सामग्री नहीं पहुंचाई जा सकी।
 
पूरा सरकारी तंत्र एक तरह से पंगु बन गया था, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी काफ़ी समय बाद हालात का जायज़ा लेने के लिए मोरबी का दौरा किया था।
 
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकर्ताओं ने मोरबी में मदद पहुँचाने का बीड़ा उठाया। उस समय आरएसएस के पूर्णकालिक प्रचारक नरेंद्र मोदी वरिष्ठ नेता नानाजी देशमुख के साथ चेन्नई में थे। ख़बर सुनते ही वो तुरंत गुजरात लौटे और उन्होंने मोरबी में राहत कार्य का काम शुरू किया।
 
मोरबी बाँध दुर्घटना में लोगों के साथ खड़े होने से उनके बीच आरएसएस की स्वीकार्यता बढ़ी और वहीं से एक राजनीतिक ताक़त के रूप में भारतीय जनता पार्टी का उदय शुरू हुआ।
 
ये पहला मौका था जब नरेंद्र मोदी सार्वजनिक मंच पर आए थे। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इस घटना के 22 वर्ष बाद वो गुजरात के मुख्यमंत्री बने।
 
अस्सी के दशक के अंत तक माच्छू बाँध को दोबारा बना लिया गया। मणि मंदिर के बाहर उस दुर्घटना में मारे गए लोगों के लिए स्मारक बनाया गया जहाँ आज भी हर 11 अगस्त को लोग मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने जमा होते हैं।
 
मोरबी में अब तक क्या-क्या हुआ

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