Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

लोकसभा चुनाव 2019: क्या कश्मीर में अलग प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति हो सकता है?

हमें फॉलो करें लोकसभा चुनाव 2019: क्या कश्मीर में अलग प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति हो सकता है?
, मंगलवार, 2 अप्रैल 2019 (14:54 IST)
- अनंत प्रकाश 
 
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने सोमवार को कश्मीर में एक चुनावी रैली के दौरान कहा कि अल्लाह ने चाहा तो कश्मीर में एक बार फिर अलग राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बनाया जा सकेगा। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सवाल उठाया है कि क्या कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल उमर अब्दुल्लाह के बयान से सहमत हैं?
 
 
तेलंगाना में आयोजित एक रैली में पीएम मोदी ने कहा, "कांग्रेस के सहयोगी दल नेशनल कान्फ्रेंस ने बयान दिया है कि कश्मीर में अलग प्रधानमंत्री होना चाहिए। क्या हिंदुस्तान में ये मांग किसी को भी मंजूर है? वो कहते हैं कि हम घड़ी की सुई पीछे ले जाएंगे और 1953 से पहले की स्थिति पैदा करेंगे और हिंदुस्तान में दो प्रधानमंत्री होंगे और एक प्रधानमंत्री कश्मीर का होगा और एक भारत का।"
 
 
भारत में कश्मीर का विलय?
मोदी ने कहा कि कांग्रेस समेत महागठबंधन के सभी सहयोगियों को जवाब देना होगा कि उनके सहयोगी दल इस तरह की बात बोलने की हिम्मत कैसे कर रहे हैं। मोदी ने कांग्रेस और ममता बनर्जी के अलावा शरद पवार, एचडी देवगोड़ा, और चंद्रबाबू नायडु जैसे विपक्षी नेताओं से भी पूछा कि क्या वह इस मांग से सहमत हैं। इसके बाद उमर अब्दुल्लाह ने अपने ट्विटर हैंडल से ट्वीट करके अपने बयान को स्पष्ट करने की कोशिश की है।
 
 
अब्दुल्लाह ने लिखा है, "श्रीमान, जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस ये नहीं चाहती है। ये बात जम्मू-कश्मीर के भारत के साथ विलय की शर्तों में शामिल है। भारत के संविधान, जिसकी आपने शपथ ली है, ने इस शर्त के पूरा होने की गारंटी दी थी। हम बस वही हक़ मांग रहे हैं जो संविधान ने हमें दिया है।"
 
 
उमर अब्दुल्लाह ने क्या कहा?
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने कश्मीर के बांदीपुरा में आयोजित एक जनसभा में कहा, "अमित शाह ने कल अपने एक इंटरव्यू में कहा कि 2020 तक हम जम्मू-कश्मीर में से 35A को हटाने का काम करेंगे। इससे पहले मुल्क के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी हमें धमकी दी कि 35A और 370 को हटाने का काम होगा।"
 
 
"अरे, जम्मू-कश्मीर बाकी रियासतों की तरह नहीं है। बाकी रियासतें बिना शर्त के हिंदुस्तान में शामिल हुईं। हमने शर्तें रखी थीं। हम मुफ़्त में नहीं आए।"
 
 
"हमने अपनी पहचान को बनाए रखने के लिए आईन (संविधान) में कुछ चीज़ें दर्ज कराई थीं। हमने कहा कि हमारी पहचान अपनी होगी, हमारा आईन अपना होगा, हमारा झंडा अपना होगा। हमने उस वक्त अपना सदर-ए-रियासत (राष्ट्रपति) और वज़ीर-ए-आज़म भी अपना रखा था। लेकिन उन्होंने बाद में उसे काट दिया। इंशा अल्लाह, उसको भी हम वापस ले आएंगे।"
 
 
"आप कहते हैं कि जो फ़ैसला आपने सत्तर साल पहले लिया था वो ग़लत था। आप यही कह रहे हैं न हमसे? क्योंकि हमने कुछ शर्तों के साथ आपसे रिश्ता जोड़ा था। उन शर्तों को आज आप काटने की बात कर रहे हैं। अगर आप शर्तों को काटने की बात कर रहे हैं तो आपको इस रिश्ते पर भी बात करनी होगी।"
 
 
अब्दुल्लाह ने ये बयान क्यों दिया?
साल 1932 में स्थापित हुई जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस वो पार्टी है जिसने जम्मू-कश्मीर की राजनीति को बदलते हुए देखा है। भारत की आज़ादी के बाद एक लंबे समय तक जम्मू-कश्मीर की कमान नेशनल कॉन्फ्रेंस के हाथ में रही है। इसके साथ ही नेशनल कॉन्फ्रेंस ने ही 1953 में संविधान में संशोधन करके जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री के पद को बदलकर मुख्यमंत्री में तब्दील कर दिया था।
 
 
इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मोहम्मद गुलाम सादिक़ ने संविधान संशोधन के बाद मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। ऐसे में सवाल उठता है कि अब क्या उमर अब्दुल्लाह इस मुद्दे को लेकर राजनीतिक सुर्खियां बटोरने की कोशिश कर रहे हैं और इससे उन्हें क्या हासिल होगा।
webdunia
 
जम्मू-कश्मीर की राजनीति को करीब से समझने वालीं वरिष्ठ पत्रकार अनुराधा भसीन मानती हैं कि उमर अब्दुल्लाह अपने इस बयान से आम कश्मीरियों को रिझाने की कोशिश कर रहे हैं।
 
 
वह कहती हैं, "जम्मू-कश्मीर के आम लोगों के लिए इस बयान का भावनात्मक महत्व है। ये मुद्दा स्थानीय लोगों की महत्वाकांक्षा से जुड़ा हुआ है। क्योंकि नई दिल्ली में बैठी सरकार कश्मीर में प्रधानमंत्री पद ख़त्म किए जाने से काफ़ी पहले से ही जम्मू-कश्मीर को मिले ख़ास दर्जे को कमजोर करने की कोशिश कर रही थी। इसके बाद 1965 में कश्मीर में सदर-ए-रियासत और वज़ीरे-ए-आज़म का पद ख़त्म कर दिया गया।"
 
 
"इससे लोगों में और रोष पैदा हुआ जो आज तक लोगों के मन में बसा हुआ है। ऐसे में इस बयान को देने से लोगों में ये संदेश जाता है कि हमसे जो चीज़ छीनी गई है, वो अब वापस आ रही है।"
 
 
कश्मीर को अलग प्रधानमंत्री मिल सकता है?
अब्दुल्लाह ने कहा है कि वह सिर्फ उन चीज़ों की मांग कर रहे हैं जो भारत के संविधान ने उन्हें देने की सुनिश्चितता दी थी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या जम्मू-कश्मीर को अलग प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति मिल सकता है। और, अगर ये संभव है तो इसकी प्रक्रिया क्या होगी?
 
 
कानूनी मामलों के जानकार और अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर किताब लिखने वाले वरिष्ठ कानूनविद् ए. जी. नूरानी मानते हैं, "उमर अब्दुल्लाह का बयान बिलकुल सही है। जम्मू-कश्मीर एक वाहिद रियासत है जिसका भारत के साथ विलय आज़ादी के बाद हुआ। और विलय के समझौते के दस्तावेज़ों के साथ में लॉर्ड माउंटबैटन और महाराजा हरि सिंह के बीच पत्राचार हुआ। इसमें माउंटबेटन ने कहा कि जब भी अमन कायम हो जाएगा तो हम जनमत संग्रह करेंगे। लेकिन पंडित नेहरू अमन कायम होने के बाद इस समझौते से मुकर गए। इसके बाद पंडित जी और शेख अब्दुल्लाह के बीच जुलाई 1952 में दिल्ली समझौता हुआ। इसके तहत ये तय किया गया कि सदर-ए-रियासत जनता की ओर से चुना हुआ व्यक्ति होगा। लेकिन पंडित जी इससे भी मुकर गए।"
 
 
"ऐसे में अब जो उमर अब्दुल्ला जो कह रहे हैं वो बिलकुल सही है। इसके लिए भारत की संसद में संविधान को संशोधित करने की ज़रूरत नहीं है। बल्कि जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में जम्मू-कश्मीर के संविधान में संशोधन किए जाने की ज़रूरत है।"
 
 
"लेकिन इससे भी बड़ा सवाल ये है कि क्या जम्मू-कश्मीर के राजनेताओं में ये इच्छाशक्ति है कि वे अपने हितों को छोड़कर अवाम की महत्वाकांक्षाओं और हितों के लिए काम कर सकते हैं?"
 

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

चुनाव के बाद बीजेपी के ख़िलाफ़ सारी पार्टियां इकट्ठा होंगीः सचिन पायलट