चीन में चुपके-चुपके इस्लाम फैलाएंगे पाकिस्तान में पढ़ते मदरसा छात्र

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Webdunia
सोमवार, 27 मई 2019 (15:07 IST)
- रियाज़ सोहेल (बीबीसी उर्दू, कराची)
 
पाकिस्तान में रहकर धार्मिक शिक्षा हासिल कर रहे चीनी छात्र 22 साल के उस्मान (बदला हुआ नाम) के लिए अपने देश में रमज़ान के महीने में रोज़े रखना, तरावीह की नमाज़ पढ़ना और अन्य धार्मिक काम करना आसान नहीं है लेकिन कराची में रहकर वो अपने धार्मिक फ़र्ज़ बिना किसी रोक-टोक के पूरे कर रहे हैं।
 
 
चीन में मुसलमानों को धार्मिक आज़ादी हासिल नहीं है, वहां बीते साल भी लोगों को रोज़े रखने की अनुमति नहीं दी गई थी। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इसकी आलोचना करते हुए मुसलमान देशों से इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की अपील की है।
 
 
उस्मान कराची के एक मदरसे में शिक्षा हासिल कर रहे हैं। पाकिस्तान के सैन्य शासक परवेज़ मुशर्रफ़ ने अपने कार्यकाल के दौरान पाकिस्तानी मदरसों में विदेशी छात्रों पर प्रतिबंध लगाया था। लेकिन अब पाकिस्तानी मदरसों में विदेशी छात्र पढ़ाई कर सकते हैं। हाल ही में पाकिस्तान की केंद्रीय कैबिनेट ने मदरसों में पढ़ाई करने आने के लिए छात्रों को वीज़ा देने का फ़ैसला लिया है।
 
 
पाकिस्तान में केंद्र सरकार प्रशासित स्कूलों के मीडिया कोऑर्डिनेटर तलहा रहमानी का कहना है कि अभी देश में शिक्षा हासिल कर रहे विदेशी छात्रों की संख्या का स्पष्ट आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। उनके मुताबिक कराची के एक मदरसे के प्रबंधन ने उन्हें बताया है कि उनके पास 25 चीनी छात्र पढ़ाई कर रहे हैं।
 
 
उस्मान बीते पांच साल से कराची के एक मदरसे में पढ़ रहे हैं जहां वो क़ुरान, हदीस, अरबी अदब और तर्क की पढ़ाई कर रहे हैं। उस्मान का कहना है कि उनके माता-पिता चाहते थे कि अपने बेटे को धार्मिक विद्वान बनाएं और बचपन से ही उन्हें इस बारे में सिखाया जाता रहा था। वे चीन में अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद कराची पहुंचे और धार्मिक शिक्षा शुरू की।
 
 
वो कहते हैं, "चीन में इस्लाम और दीन की तालीम हासिल करने के मौके बहुत कम है। वहां शिक्षा और विषय सीमित हैं। सिर्फ़ जुमे के दिन मौलवी साहब कुछ बयान कर लेते हैं। इसके अलावा लोग इंटरनेट से धर्म के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी हासिल कर लेते हैं।"
 
 
पाकिस्तान में पढ़ने आने वाले अन्य देशों के छात्रों की तरह ही चीन से आए छात्र भी धर्म की बुनियादी शिक्षा हासिल करते हैं। उनमें से कुछ एक साल का कोर्स करते हैं और फिर अपने देश लौट जाते हैं। कुछ छात्र मुफ़्ती और आलिम (इस्लामी डिग्री) बनते हैं और कुछ बस कुछ ही महीनों की शिक्षा हासिल करके लौट जाते हैं।
 
 
मदरसे में परीक्षा पास करने के बाद ये छात्र वापस चले जाते हैं और इनमें से कुछ दूसरों के धर्म की शिक्षा देना शुरू कर देते हैं। उस्मान कहते हैं, "हम चीन में धर्म की शिक्षा लोगों को ख़ुफ़िया तरीके से देंगे। पहले अपने घरवालों को धर्म की शिक्षा देंगे और उसके बाद क़रीबी रिश्तेदारों को। खुल्लम-खुल्ला मदरसा बना लें ऐसा वहां संभव नहीं है।"

चीनी भाषा की शिक्षा
कराची यूनिवर्सिटी और अन्य निजी संस्थानों की ही तरह मदरसे जामिया बनवरिया अलआलीमिया में भी चीनी भाषा सिखाने का केंद्र शुरु किया गया है। इस मदरसे के प्रबंधक और धार्मिक मामलों के विशेषज्ञ मुफ़्ती मोहम्मद नईम का कहना है, "चीन में कई इलाक़ों में सरकार मुसलमानों पर बहुत सख़्ती करती है। चीन के नागरिक जब पाकिस्तान आते हैं तो खुलेआम घूमते हैं, उन्हें पूरी आज़ादी होती है। चीन को अपने देश में भी मुसलमानों को धार्मिक आज़ादी देनी चाहिए।"
 
 
वो कहते हैं कि यूं तो चीन में मुसलमानों की एक बड़ी आबादी रहती है लेकिन इनमें से बहुत से ऐसे हैं जिनके पास अपनी चीनी ज़बान में नमाज़ सिखाने वाली किताबें तक नहीं हैं। वो कहते हैं कि उनके मदरसे में चीनी भाषा सीखने के लिए सिर्फ़ मदरसे के छात्र ही नहीं बल्कि व्यापारी और निजी कंपनियों को कर्मचारी भी आते हैं।
 
 
चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर और दोनों देशों के बीच बढ़ते व्यापारिक संबंधों की वजह से पाकिस्तान में चीनी भाषा सीखने वालों की संख्या बढ़ रही है। उस्मान मदरसे में अन्य चीनी छात्रों के साथ ही रहते हैं। हम जब उनसे मिलने पहुंचे तो उनके यहां अन्य मदरसों में पढ़ रहे चीनी छात्र भी आए हुए थे।
 
 
उनके मुताबिक चीन की सरकार मदरसों में पढ़ने की अनुमति नहीं देती है लेकिन यूनिवर्सिटी में पढ़ने की अनुमति है। उनका कहना है कि जो दीन की शिक्षा वो हासिल कर रहे हैं उससे सरकार का कोई संबंध नहीं है।
 
 
चीन में मुसलमानों की अधिकतर आबादी शिनजियांग प्रांत में रहती है। इस प्रांत को पहले तुर्किस्तान कहा जाता था। इस सूबे की सरहदें पाकिस्तान और भारत समेत मंगोलिया, रूस, क़ज़ाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, किर्गिस्तान वगैरह से मिलती हैं। यहां की राजधानी उरूमची है जबकि काशग़र सबसे बड़ा शहर है।
 
चीन में धार्मिक आज़ादी पर सवाल
बीते साल अगस्त में संयुक्त राष्ट्र की समिति ने कहा था कि शिनजियांग में वीगर मुसलमानों और अन्य मुस्लिम समुदायों के दस लाख लोगों को हिरासत में रखा गया है और उनकी री-एजुकेशन यानी पुनर्शिक्षा कार्यक्रम के तहत उनकी सोच को बदला जा रहा है।
 
 
इस्लामी देशों के संगठन ने भी चीनी मुसलमानों के मानवाधिकार उल्लंघन पर अपने विरोध का इज़हार किया है। पाकिस्तान में चीन के डिप्टी चीफ़ आफ़ मिशन ने हाल ही में सोशल मीडिया वेबसाइट ट्विटर पर बताया था कि चीन में 35 हज़ार मस्जिद हैं जहां देश के दो करोड़ मुसलमान देश के क़ानून के तहत अपने धार्मिक फ़र्ज़ अदा करने के लिए आज़ाद हैं।
 
 
उनके मुताबिक, "हम धार्मिक आज़ादी की नीति पर चलते हैं, हम धार्मिक कट्टरपंथ का मुक़ाबला कर रहे हैं। आम धार्मिक गतिविधियों की क़ानून के तहत अनुमति हैं।" वहीं चीन ने ये भी कहा है कि वह पाकिस्तान में मदरसों में शिक्षा हासिल कर रहे शिनजियांग के छात्रों की जांच कर रहा है।
 
 
गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने बीबीसी को बताया कि चीन ने पाकिस्तान सरकार से कहा है कि जितने भी छात्र हैं और जिन्हें वीज़ा जारी किए जा रहे हैं, उनके बारे में महीने में दो बार जानकारी दी जाए और उनकी गतिविधियों की रिपोर्ट दी जाए।
 

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