Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

लोकसभा चुनाव 2019- प्रियंका गांधी खुलकर सामने क्यों नहीं आ रहीं: नज़रिया

हमें फॉलो करें लोकसभा चुनाव 2019- प्रियंका गांधी खुलकर सामने क्यों नहीं आ रहीं: नज़रिया
, गुरुवार, 14 मार्च 2019 (12:37 IST)
- अदिति फडनिस 
 
वो साल 2003 का पतझड़ था। अटल बिहारी वाजपेयी मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार कर रहे थे। बीजेपी ने ये तीनों ही चुनाव जीते थे। राजस्थान के रेगिस्तान में जब उन्होंने चुनावी सभा को संबोधित किया तो हवा में एक नमी सी थी।
 
 
उन्होंने हवा की ख़ुशबू ली और अपना भाषण शुरू करते हुए कहा, "मौसम बदल रहा है।" भीड़ को उनकी बात समझने में देर नहीं लगी और माहौल तालियों और ठहाकों से गूंज उठा। अहमदाबाद में मंगलवार 12 मार्च को जब कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक हुई तो हवा में कुछ वैसा ही अहसास था। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने पार्टी कार्यकर्ता के तौर पर अपना पहला भाषण दिया।
 
सार्वजनिक बैठक में वो सिर्फ़ पांच-छह मिनट ही बोलीं। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के मुद्दों, जैसे रफ़ाल घोटाला, बड़े व्यापारियों को दी गई मोदी सरकार की छूट आदि पर कोई टिप्पणी नहीं की। उन्होंने लोगों से उन सभी वादों को याद करने के लिए कहा जो पूरे नहीं किए गए और यह कहते हुए उन्होंने मोदी का नाम भी नहीं लिया।
 
उन्होंने लोगों से कहा- सोचो और फ़ैसला करो। जो लोग तुम्हारे सामने बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, कहां हैं वो नौकरियां जिनका वादा किया गया था? हर बैंक खाते में पंद्रह लाख रुपयों का क्या हुआ? महिला सुरक्षा का क्या हुआ?
 
उन्होंने लोगों को कांग्रेस का सभी को न्यूनतम आय का वादा भी याद दिलाया। उन्होंने कहा कि इस योजना का नाम 'न्याय' यानी 'न्यूनतम आय योजना' होना चाहिए। प्रियंका गांधी के भाषण से कुछ अहम संदेश लिए जा सकते हैं।
 
प्रियंका गांधी ने अपने पति रॉबर्ट वाड्रा और उनसे हो रही प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ का कोई ज़िक्र नहीं किया। रॉबर्ट वाड्रा कई बार कह चुके हैं कि अगर लोगों को लगेगा कि उन्हें राजनीति में आना चाहिए तो वो राजनीति में हाथ आज़माएंगे।
 
लेकिन वो कांग्रेस की कार्यकारिणी की बैठक में उपस्थित नहीं थे। इससे ये संदेश मिलता है कि कांग्रेस और कांग्रेसियों को अब सिर्फ़ गांधी परिवार की ही नहीं बल्कि उनके रिश्तेदारों के बचाव की भी चिंता है।
 
जो लोग बैठक में शामिल थे वो महसूस कर रहे थे कि प्रियंका गांधी अपने आप को बांधे रखने की कोशिश कर रहीं थीं। वो अपने भाई से मौक़ा नहीं चुराना चाहती थीं। उन्होंने बहुत सीमित और संयमित तरीक़े से अपनी बात रखी। ना कोई ड्रामा ना कोई दिखावा। ये सोच समझकर किया गया है।
 
उन्होंने अपने पहले सार्वजनिक भाषण के लिए तैयारी की थी। इससे पहले प्रियंका गांधी अपने समर्थकों और शुभचिंतकों से कहती रही थीं कि वो राजनीति में नहीं जाना चाहतीं क्योंकि कांग्रेसी उनके परिवार को तोड़ने की कोशिश कर सकते हैं, बहन को भाई के सामने, पत्नी को पति के सामने ला सकते हैं।
 
सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह जैसे दो वरिष्ठ लोगों के रहते हुए भी यूपीए सरकार के अंतिम दिनों में ये होने भी लगा था। प्रधानमंत्री रहते हुए मनमोहन सिंह को कई बार बेचारगी का अहसास हुआ क्योंकि प्रधानमंत्री कार्यालय आए कई लोगों ने अपना काम करवाने के लिए कहा, "मैडम से बात हो गई है।"
 
राजनीति ख़ालीपन को बर्दाश्त नहीं करती है और न ही ये सत्ता के दो केंद्रों को ही पसंद करती है। अहमदाबाद के भाषण में प्रियंका गांधी ने स्पष्ट कर दिया कि वो अभी सभी का ध्यान खींचना नहीं चाहती हैं। कांग्रेस की मेनिफ़ेस्टो समिति के चेयरमैन पी. चिदंबरम और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के भाषणों से ये स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस के चुनावी अभियान की रूपरेखा अब तय होने लगी है।
 
रफ़ाल मुद्दे पर सिर्फ़ राहुल गांधी ने ही बात की। अन्य वक्ताओं ने नौकरियों की कमी, बंद होते व्यापार, नोटबंदी के असर, अर्थव्यवस्था और कृषि संकट पर बात की। कांग्रेस जनता की मदद से अपना मेनिफ़ेस्टो बना रही है। चिदंबरम ने कहा कि बहुत से लोगों की सलाह को माना गया है और उसे मेनिफ़ेस्टो में भी जगह दी जाएगी।
 
कांग्रेस के नेतृत्व ने इस बारे में न कोई स्पष्टीकरण दिया और न ही खेद प्रकट किया कि एक ही परिवार के इतने लोग कांग्रेस का नेतृत्व कैसे कर रहे हैं। लेकिन इसमें कोई शक़ नहीं है कि कांग्रेस के चुनावी अभियान के केंद्र में वंचित और कम आय वाले लोग ही रहेंगे। इसके भारत की राजनीति में अपने अलग मायने भी हैं। इसे मानने के कारण भी बढ़ रहे हैं और इसी के नतीजे में प्रतिस्पर्धी लोक-लुभावनवाद दिखेगा।
 
लोगों से बात करते हुए प्रियंका गांधी ने चुनाव लड़ने के संकेत नहीं दिए। लोकसभा चुनावों के तहत कांग्रेस की पहली लिस्ट आ चुकी है और सोनिया गांधी-राहुल गांधी ही रायबरेली और अमेठी से चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि हो सकता है कि बाद में सोनिया गांधी प्रियंका के लिए अपनी सीट छोड़ दें।
 
ये अभी शुरुआत ही है। जैसे-जैसे चुनावी अभियान का पारा बढ़ेगा, प्रियंका गांधी का वास्तविक चरित्र सामने आएगा। इससे कांग्रेस को कोई फ़ायदा मिलेगा? ये कहना मुश्किल है, लेकिन गांधी परिवार के सबसे युवा सदस्य ने राजनीति में क़दम रख दिया है, अब भला हो या बुरा हो लेकिन ये तय है कि अब वो राजनीति में टिकेंगी।
 
(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य और विचार बीबीसी के नहीं हैं और बीबीसी इसकी कोई ज़िम्मेदारी या जवाबदेही नहीं लेती है)

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

शरद पवार के परिवार में सत्ता का संघर्ष क्यों शुरू हुआ