दिलनवाज़ पाशा, बीबीसी संवाददाता
भारत में कोयले के ओद्योगिक खनन की कहानी पश्चिम बंगाल के रानीगंज से शुरू हुई जहां ईस्ट इंडिया कंपनी ने नारायणकुड़ी इलाक़े में 1774 में पहली बार कोयले का खनन किया।
लेकिन उस दौर में ओद्योगिक क्रांति भारत तक नहीं पहुंची थी और कोयले की मांग बहुत कम थी। ऐसे में अगली एक सदी तक भारत में बड़े पैमाने पर कोयला उत्पादन नहीं हुआ।
1853 में ब्रिटन में भाप चलित रेल इंजन के विकास के बाद कोयले का उत्पादन और खपत दोनों में ही बढ़ोतरी आई। बीसवीं सदी की शुरुआत तक भारत में कोयला उत्पादन 61 लाख टन प्रतिवर्ष तक पहुंच गया था।
लेकिन आज़ादी के बाद भारत की आकांक्षाएं बढ़ी और कोयला इन बढ़ती आकांक्षाओं की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने का अहम ज़रिया बन गया। आज भारत कोयले के उत्पादन और खपत के मामल में चीन के बाद दूसरे नंबर पर है।
भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों का 70 फ़ीसदी से अधिक कोयला संचालित संयंत्रों से ही हासिल करता है। साल 1973 में कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण के बाद से अधिकतर कोयले का उत्पादन, सरकारी कंपनियां ही करती हैं।
भारत में 90 फ़ीसदी से अधिक कोयले का उत्पादन कोल इंडिया करती है। कुछ खदानें बड़ी कंपनियों को भी दी गई हैं, इन्हें कैप्टिव माइन्स कहा जाता है। इन कैप्टिव खदानों का उत्पान कंपनियां अपने संयंत्रों में ही ख़र्च करती हैं।
भारत दुनिया के उन पांच देशों में से एक है जहां कोयले के सबसे बड़े भंडार हैं। दुनिया में कोयले के सबसे बड़े भंडार अमेरिका, रूस, ऑस्ट्रेलिया, चीन और भारत में हैं।
भारत सरकार के कोयला मंत्रालय के मुताबिक़ भारत के पास 319 अरब टन का कोयला भंडार हैं। भारत में कोयले के सबसे बड़े भंडार झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, तेलंगना और महाराष्ट्र में हैं। इसके अलावा आंध्र प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, मेघालय, असम, सिक्किम, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में भी कोयला मिला है।
दुनिया के सबसे बड़े कोयला उत्पादक देशों में शामिल भारत आज अभूतपूर्व कोयला संकट के कगार पर खड़ा है। आशंका जाहिर की गई है कि यदि समय रहते देश इस संकट से नहीं उबरा, तो बड़े पैमाने पर बिजली कटौती हो सकती है।
भारत में अभी क्या स्थिति है?
भारत के 135 कोयला संचालित बिजली संयंत्रों में से दो तिहाई इस समय कोयला संकट का सामना कर रहे हैं। आमतौर पर भारत के कोयला प्लांट एक महीने तक की खपत के कोयले का भंडार अपने पास रखते हैं। लेकिन इस समय दो-तिहाई संयंत्रों में औसतन तीन दिन का कोयला भंडार ही बचा है।
इंडिया रेटिंग्स की एक शोध रिपोर्ट के मुताबिक़ जुलाई 2021 में भारत के कोयला संयंत्रों में औसतन 17 दिन की खपत का कोयला स्टॉक था जो अब औसतन सिर्फ़ चार दिन का ही रह गया है।
पर्याप्त कोयला ना होने की वजह से कई कोयला प्लांट बंद हो गए हैं। इंडिया रेटिंग्स से जुड़े नितिन बंसल के मुताबिक़ "31 अगस्त तक बंद हुए पॉवर प्लांटों की कुल उत्पादन क्षमता 3.9 गिगावॉट थी जबकि 30 सितंबर तक 13.2 गिगावॉट क्षमता के प्लांट बंद हो चुके थे। वहीं 8 अक्तूबर तक बंद हो चुके बिजली प्लांटों की क्षमता 20.3 गिगावॉट है।"
31 जुलाई 2021 तक देश में सिर्फ़ दो कोयला प्लांट ही कोयला ना होने के कारण बंद हुए थे। दस अक्तूबर तक बंद हुए प्लांटों की संख्या 16 हो गई। यही नहीं, दस अक्तूबर को देश में 30 कोयला प्लांट ऐसे थे जिनमें एक दिन की खपत लायक ही कोयला बचा था।
भारत में बिजली आपूर्ति की ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है। राज्य सरकारें बिजली वितरण करने वाली कंपनियों से बिजली ख़रीदती हैं और फिर ये बिजली उपभोक्ताओं को दी जाती है। कई राज्यों में निजी कंपनियां भी बिजली वितरण के काम में लगी हैं।
मौजूदा कोयला संकट की वजह से कई राज्यों में बिजली कटौती की जा रही है। राजस्थान के 12 जिलों में एक से चार घंटे की बिजली काटी जा रही है।
सरकार ने कहा सब ठीक है
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कोयला संकट से निपटने में साथ देने की अपील की है।
भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई भी बिजली संकट के मुहाने पर खड़ी है। महाराष्ट्र सरकार के बिजली विभाग का कहना है कि आपू्र्ति जारी रखने के लिए उसे तुरंत 730 अरब रुपए के फंड की ज़रूरत है।
वहीं उत्तर प्रदेश सरकार ने नागरिकों से समझदारी से बिजली का इस्तेमाल करने की अपील की है। राज्य के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत सिंह ने बताया है कि बिजली आपूर्ति जारी रखने के लिए सरकार को 17 रुपए यूनिट की महंगी दर से बिजली ख़रीदनी पड़ रही है।
इन सबके बीच केंद्र सरकार ने कहा है कि देश में सब कुछ ठीक है और कोयले की किल्लत को जल्द ही दूर कर लिया जाएगा। भारत के कोयला मंत्री प्रल्हाद जोशी ने कहा है "बिजली आपूर्ति को लेकर चिंता की कोई बात नहीं है।"
सरकार ने कोल इंडिया से उत्पादन बढ़ाने के लिए कहा है। साथ ही कैप्टिव खदानों से भी बिजली संयंत्रों के लिए कोयला लिया जा रहा है।
केंद्रीय कोयला मंत्री पिछले कई दिनों से कोयला उत्पदान क्षेत्रों के दौरे पर हैं और स्थिति पर नज़र रखे हुए हैं। सरकार ने भारतीय रेलवे से भी ढुलाई क्षमता बढ़ाने की अपील की है।
कोयले का पर्याप्त भंडार, फिर संकट क्यों?
भारत में 319 अरब टन कोयले का भंडार है। भारत ने साल 2019-20 में 73.08 करोड़ टन कोयले का उत्पादन किया जबकि साल 2020-21 में ये उत्पादन 71.60 करोड़ टन रहा।
2020 में कोरोना महामारी की वजह से बिजली खपत कम होने के कारण कोयले की खपत भी कम हुई और इसका असर उत्पादन पर भी हुआ।
भारत में दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा कोयला भंडार है और ये भारत की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए काफी है। भारत में आमतौर पर अक्तूबर के महीने में कोयले की मांग बढ़ जाती है। लेकिन इस बार अक्तूबर में थर्मल प्लांटों को पर्याप्त कोयला न मिल पाने के कई कारण हैं।
भारत की अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी के बाद पटरी पर लौट रही है। भारत में कोरोना की पहली लहर के बाद अर्थव्यस्था में 7.3 प्रतिशत की गिरावट आई थी। उद्योग-धंधे पटरी पर लौट ही रहे थे कि कोरोना वायरस के डेल्टा वेरिएंट के कारण महामारी दूसरी लहर आ गई। अप्रैल-मई 2021 में आई इस लहर के दब जाने के बाद अब देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है। अगस्त 2019 के मुक़ाबले अगस्त 2021 में बिजली खपत 16 प्रतिशत बढ़ गई है।
विश्लेषकों का मानना है कि भारत में कोयले के उत्पादन के लिए ज़िम्मेदार कोल इंडिया इस मांग का अंदाज़ा लगाने में नाकाम रही और वक्त रहते पर्याप्त मात्रा में कोयला स्टॉक नहीं किया गया।
नितिन बंसल कहते हैं कि बुरे मौसम ने हालात और विकट कर दिए। देर से आए मॉनसून और भारी बारिश की वजह से भारत के कोल बेल्ट इलाक़े की खदानों में पानी भर गया, इससे भी कोयला उत्पादन प्रभावित हुआ है।
अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में क्यों बढ़े हैं कोयले के दाम?
भारत की तरह ही दुनिया में कोयले की सबसे ज़्यादा खपत करने वाला चीन भी फिलहाल बिजली संकट से जूझ रहा है। बारिश की वजह से चीन की कोयला खदानों में भी पानी भरा है और वहां भी कोयले का उत्पादन प्रभावित है।
चीन को जहां जिस भाव भी कोयला मिल रहा है वह कोयला खरीद रहा है और इस वजह से अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भी कोयले के दाम बढ़े हुए हैं।
उदाहरण के तौर पर ऑस्ट्रेलिया न्यू कॉसल कोयले के दाम 250 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं। भारत सबसे ज़्यादा कोयला इंडोनेशिया से ख़रीदता है। इंडोनेशिया के कोयले के दाम भी 60 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 200 डॉलर प्रति टन से अधिक हो गए हैं।
भारत के तटीय इलाक़ों में स्थित कोयला प्लांट आयात किए गए कोयले से चलते हैं। कोयले के दाम बढ़ जाने की वजह से ये प्लांट भी बंद हो रहे हैं।
भारत में आयात किए गए कोयले से चलने वाले प्लांटों की क्षमता 16.2 गिगावॉट है। वित्त वर्ष 2020-21 में ये प्लांट अपनी क्षमता का 54 प्रतिशत बिजली उत्पादन कर रहे थे जो सितंबर 2021 में घटकर 15 प्रतिशत ही रह गया। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कोयले के दाम बढ़ने की वजह से ये प्लांट कोयला नहीं मंगा रहे हैं।
नितिन बंसल कहते हैं, "कोई भी प्लांट इतनी महंगी दर पर कोयला ख़रीदकर बिजली नहीं बनाना चाहेगा क्योंकि ये बिजली बहुत महंगी पड़ती है और इसके ख़रीददार नहीं मिलेंगे।"
उदाहरण के तौर पर गुजरात के तट पर बने अडानी और टाटा के दो पॉवर प्लांट ही भारत की कुल ऊर्जा ज़रूरत के पांच प्रतिशत तक का उत्पादन कर सकते हैं। लेकिन महंगे कोयले के कारण ये बंद हैं।
बिजली कंपनियां पॉवर प्लांट के साथ ख़रीद को लेकर करार करती हैं। अब भारत सरकार इन प्लांट के अतिरिक्त ख़र्च का भार फ़ौरी तौर पर कंपनियों पर डालने का विचार कर रही है।
नितिन बंसल कहते हैं, "यदि इन प्लांट को बिजली का ही दाम दिया जाए और फ़ौरी तौर पर इनसे महंगी दर बिजली ख़रीदी जाए तो बहुत हद तक बिजली संकट से बचा जा सकता है लेकिन ये फ़ैसला सरकार को लेना है।"
मौजूदा संकट के लिए कोल इंडिया कितनी ज़िम्मेदार?
भारत के पास कोयले के पर्याप्त प्राकृतिक भंडार भी हैं और अपनी ज़रूरतों के हिसाब से भारत ने कोयले का उत्पादन भी किया है।
लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि कोल इंडिया ज़रूरत को समझने में नाकाम रही। ऐसे में मौजूदा संकट प्राकृतिक नहीं, बल्कि लापरवाही का नतीजा है।
धनबाद कोयला बेल्ट में सक्रिय कार्यकर्ता बिजय झा कहते हैं, "मौजूदा कोयला संकट प्राकृतिक नहीं है बल्कि लापरवाही और अक्षमता का नतीजा है। भारत के पास कोयले के पर्याप्त भंडार है। समस्या उत्पादन की है। कोयला क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार ने भी स्थिति को जटिल किया है।"
झा कहते हैं, "कोयला कंपनियों के प्रबंधक मांग का अंदाज़ा नहीं लगा पाए। इसके अलावा रंगदारी भी एक बड़ा मुद्दा है। कृत्रिम संकट पैदा कर अधिक मात्रा में रंगदारी वसूलने के प्रयास किए जा रहे हैं।"
वहीं भारत सरकार के पूर्व कोयला सचिव अनिल स्वरूप कहते हैं कि ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि कोल इंडिया लिमिटेड को इस संकट का ज़िम्मेदार माना जा रहा है।
अनिल स्वरूप कहते हैं, "कोल इंडिया का बिजली उत्पादन कंपनियों पर बीस हज़ार करोड़ रुपए बकाया हैं। मौजूदा कोयला संकट की एक बड़ी वजह ये है कि कंपनियों ने बीस दिन का अनिवार्य स्टॉक बरकरार नहीं रखा।"
स्वरूप कहते हैं, "मौजूदा संकट महामारी के कारण मांग और आपूर्ति के असंतुलन की वजह से हैं। लेकिन हैरानी की बात ये है कि कोल इंडिया ने कोयला उत्पादन को स्थिर रखा। 2018 में ये 60.60 करोड़ टन था, 2019-20 में यह 60.20 करोड़ टन था जबकि 2020-21 में 59.60 करोड़ टन था।"
क्या कोयले पर निर्भरता कम कर पाएगा भारत?
बीते एक दशक में भारत की कोयले की खपत लगभग दोगुनी हो गई है। देश अच्छी गुणवत्ता का कोयला आयात कर रहा है और उसकी योजना आने वाले सालों में कई दर्जन नई खदान खोलने की है।
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा समिति के अनुसार, 1.3 अरब की आबादी वाले भारत में अगले 20 सालों में ऊर्जा की ज़रूरत किसी भी देश से सबसे अधिक होगी।
पर्यावरण प्रतिबद्धताओं के तहत भारत अक्षय ऊर्जा स्रोतों का विकास तो कर रहा है, लेकिन अभी भी कोयला ही सबसे सस्ता ईंधन है। हालांकि कोयला वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण भी है और भारत पर अपने पर्यावरण लक्ष्य हासिल करने का दबाव भी है।
विश्लेषक मानते हैं कि भारत के लिए कोयले से दूरी बनाना आसान नहीं होगा। नितिन बंसल कहते हैं, "कोयला हमारी ऊर्जा महत्वाकांक्षाओं को पूरा करता है। भारत को अपनी बढ़ती ज़रूरतों के हिसाब से कोयले का उत्पादन बढ़ाना पड़ेगा क्योंकि अभी दूसरे स्रोतों से ज़रूरत पूरा करने लायक ऊर्जा हासिल नहीं की जा सकती है।"
कोयला उत्पदान के सामने क्या हैं चुनौतियां?
भारत में 1200 मीटर की गहराई तक खदानों में कोयला खोदा जा रहा है। भारत में मिलने वाला अधिकतर कोयला खुली खदानों या ओपन कास्ट माइन्स से निकाला जाता है।
जैसे-जैसे खदान की गहराई बढ़ती जाती है कोयला निकालने का खर्च भी बढ़ता जाता है। रानीगंज में लंबे समय से पत्रकारिता कर रहे और कोयला खदान हादसों पर किताब लिख चुके बिमल गुप्ता कहते हैं, "रानीगंज कोयलांचल में सबसे बड़ी समस्या ये है कि यहां अधिकतर खदानें पुरानी पड़ गई हैं। खदानों में कोयला रहते हुए भी सही से उत्पादन इसलिए नहीं हो पा रहा है इसकी वजह ये है कि खनन कंपनियां टार्गेट पूरा करने के लिए खनन तो कर रही हैं लेकिन खदान को सरक्षित करने के लिए कदम नहीं उठा रही हैं।"
बिमल कहते हैं, "ऐसे में जब खदान में हादसा हो जाता है तो उससे उत्पादन प्रभावित होता है और फिर से खनन शुरू करने में समय लग जाता है। बारिश होने की वजह से खदानें धंस जाने से भी उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है।"