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अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की बढ़ती ताक़त की वजह क्या है?

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, मंगलवार, 3 अगस्त 2021 (07:29 IST)
मोहम्मद हारुन रहमानी, बीबीसी मॉनिटरिंग
मई की शुरुआत में अफ़ग़ानिस्तान से विदेशी सैनिकों की वापसी शुरू हुई है और तभी से पूरे अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का दबदबा बढ़ रहा है।
 
द लॉन्ग वॉर जर्नल के अनुसार, देश के 407 ज़िला केंद्रों में से 195 से अधिक जुलाई के पहले सप्ताह तक पूरी तरह से तालिबान के नियंत्रण में थे, जबकि मई से पहले केवल 73 ज़िलों में तालिबान का नियंत्रण था।
 
देश के 34 प्रांतों में से कई की राजधानियों पर सरकारी नियंत्रण भी ख़तरे में हैं, जिससे यह डर पैदा हो रहा है कि तालिबान सैन्य रूप से सत्ता पर काबिज़ हो जाएगा।
 
हालाँकि सरकारी सुरक्षा बलों ने कुछ ज़िलों पर फिर से कब्ज़ा कर लिया है और कुछ क्षेत्रों में उनका प्रभाव बढ़ रहा है, लेकिन यह तालिबान की सफलताओं की तुलना में नगण्य है।
 
अमेरिका के नेतृत्व वाली अंतरराष्ट्रीय सेना के पीछे हटने की शुरुआत तालिबान को मिलते क्षेत्रीय लाभ का मुख्य कारण प्रतीत होती है, लेकिन इसके पीछे कई दूसरे कारण भी हैं।
 
विदेशी सैनिकों की 'अचानक' वापसी
कई महीनों तक पर्यवेक्षकों ने चेतावनी दी कि अगर अफ़ग़ान सरकार और तालिबान के बीच राजनीतिक समझौता होने से पहले विदेशी सेनाएँ वापस चली जाती हैं, तो संघर्ष तेज़ हो जाएगा।
 
सांसद ज़िया आर्य नेजहाद ने अप्रैल में कहा था, "मैं अब घोषणा करता हूँ कि अगर अमेरिकी इस तरह से अफ़ग़ानिस्तान छोड़ देते हैं, तो तालिबान और अफ़ग़ानिस्तान में सुरक्षा बलों के बीच एक बहुत ही ख़तरनाक और व्यापक युद्ध शुरू हो जाएगा।"
 
बाद में अफ़ग़ान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हमदुल्ला मोहिब ने तालिबान की सफ़लता का श्रेय अफ़गान बलों के लिए हवाई समर्थन की कमी को दिया।
 
मोहिब ने बीबीसी को बताया, "कुछ क्षेत्रों से अमेरिकियों की अचानक वापसी के कारण, उन दूरदराज़ के ज़िलों में जहाँ अफ़ग़ान सेना गठबंधन बलों के हवाई समर्थन पर निर्भर थी, उन्हें या तो ख़ाली कर दिया है या वो तालिबान के हाथों में चले गए है।"
 
इसी तरह, सैन्य मामलों के जानकार अब्दुल हादी ख़ालिद ने कहा कि अफ़ग़ान सरकार सैन्य सहायता देने और समय पर सैन्य टुकड़ियों को सही तरीक़े से तैनात में असमर्थ रही है।
 
उन्होंने कहा, "नेटो जा रहा है, अफ़ग़ान सुरक्षा बलों की तैनाती बिखरी हुई है।"
 
फरवरी 2020 में दोहा में दस्तख़त किए गए यूएस-तालिबान समझौते के अनुसार, सभी विदेशी सेनाओं को 1 मई 2021 तक अफ़ग़ानिस्तान छोड़ना था, लेकिन अप्रैल के मध्य में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने घोषणा की कि ये प्रक्रिया 11 सितंबर से पहले पूरी नहीं हो पाएगी।
 
अंदरूनी सूत्रों का कथित समर्थन
सैद्धाांतिक तौर पर, 1,50,000 के क़रीब तालिबान लड़ाकों और लगभग 290,000 अमेरिकी-प्रशिक्षित सरकारी समर्थन वाले सुरक्षाबलों के बीच कोई मुक़ाबला था ही नहीं
 
लेकिन यह समूह बड़े पैमाने पर क्षेत्र पर कब्ज़ा करने में सक्षम रहा है क्योंकि सरकारी सुरक्षाबल या तो ज़िला मुख्यालय से पीछे हट गए, अपने पदों को छोड़ दिया या बिना विरोध के आगे बढ़ते चरमपंथियों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
 
यह आरोप लगाया गया है कि कई मामलों में वरिष्ठ क़बायली नेताओं और अन्य स्थानीय प्रभावशाली लोगों ने सरकारी सैनिकों को माफ़ी के बदले तालिबान को अपने क्षेत्र देने लिए राज़ी किया।
 
दक्षिणी कंधार प्रांत की राजधानी कंधार शहर में तालिबान चरमपंथियों के प्रवेश करने के बाद, गवर्नर रोहुल्लाह ख़ानज़ादा ने कहा कि राजनेताओं ने सैनिकों से लड़ाई न करने का आग्रह किया था।
 
ख़ानज़ादा ने कहा, "कंधार शहर सैन्य रूप से तालिबान के नियंत्रण में नहीं गया है, यह एक राजनीतिक समर्पण है। उन्होंने सिर्फ़ एक फ़ोन कॉल के बाद पूरे ज़िलों को छोड़ दिया।"
 
हश्त-ए शोभ अखबार के मुताबिक़, उन्होंने कहा कि कई अधिकारियों ने "राजनीतिक और क़बायली संबधों" के कारण अपना ठिकाना छोड़ दिया था।
 
कंधार को तालिबान आंदोलन के जन्मस्थान के रूप में देखा जाता है।
 
उत्तर-पश्चिमी बदगिस प्रांत में गवर्नर ने ज़िलों के तालिबान के हाथ में चले जाने के लिए "विश्वासघाती साज़िश" को ज़िम्मेदार ठहराया है। उन्होंने सैनिकों को आत्मसमर्पण करने के लिए राज़ी करने के आरोप में कुछ "समुदाय के वरिष्ठ नेताओं" की गिरफ़्तारी के आदेश दिए हैं।
 
पहले उप-राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह ने कथित तौर पर बदगिस के सांसद अमीर शाह नायबज़ादा पर प्रांतीय राजधानी काला-ए-नव में सैनिकों को तालिबान के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए कहने का आरोप लगाया। सांसद ने आरोप से इनकार किया है। बाद में सरकारी सैन्यबलों में शहर पर फिर से कब्ज़ा कर लिया।
 
सरकार विरोधी साज़िश का प्रचार
तालिबान लड़ाकों ने युद्ध के मैदान में अपनी काबिलियत का परिचय तो दिया ही, मुमकिन है कि सरकार विरोधी साज़िश के प्रचार ने भी उनकी सफलता में योगदान दिया है।
 
मोहिब ने हाल ही में कहा था, "काफ़ी हद तक, तालिबान का प्रचार (ज़िलों के नियंत्रण में चले जाने के) कारणों में से एक रहा है।"
 
उन्होंने कहा कि इस तरह के संदेश के कारण कुछ सुरक्षाकर्मी और स्थानीय लोग यह मानने लगे थे कि "सौदे" के तहत क्षेत्र तालिबान को सौंपे गए थे। मुमकिन है कि इससे सैनिकों के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
 
अफ़ग़ान सांसद मामूर रहमतजई ने आरोप लगाया कि पर्दे के पीछे के समझौते के तहत ज़िलों पर कब्ज़ा होने दिया गया।
 
"जब अफ़ग़ान सेना कहती है कि वे युद्ध के मैदान से पीछे हट गई, तो उन्होंने हथियार और सैन्य वाहनों को वहाँ ज़मीन पर क्यों छोड़ दिया।"
 
निजी अखबार अरमान-ए मेली में यह दावा किया गया है कि दोहा में वार्ता के दौरान यह सहमति हुई थी कि कुछ क्षेत्रों को तालिबान को सौंप दिया जाएगा, और बदले में "अमेरिकी कंपनियों को अफ़ग़ानिस्तान के ख़निज संसाधन निकालने की अनुमति मिलेगी"
 
अख़बार के मुताबिक, "ग़नी की टीम विदेशियों के आदेश पर देश को तालिबान के सामने आत्मसमर्पण कराने का इरादा रखती है, यही कारण है कि राष्ट्रपति तालिबान से लड़ने के लिए सार्वजनिक विद्रोह बल के गठन के ख़िलाफ़ रहे हैं।"
 
राष्ट्रपति ने 20 जुलाई को यह कहते हुए इस तरह के आरोपों को ख़ारिज कर दिया है कि "कोई सौदा नहीं हुआ है और किसी भी तरह के सौदे का कोई इरादा नहीं है।"
 
भ्रष्टाचार, 'अक्षम नेतृत्व'
माना जा रहा है कि स्थानीय पुलिस या सेना के बैनर तले सरकार समर्थक मिलिशिया बलों की भर्ती में भ्रष्टाचार ने भी तालिबान की सफलता में योगदान दिया है।
 
एक फ़ेसबुक पोस्ट में, राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशालय के पूर्व प्रमुख रहमतुल्ला नबील ने कहा कि सरकार के भीतर कुछ हलकों ने वेतन को जेब में रखने के लिए "घोस्ट" (जिसका अस्तित्व ही नहीं है) मिलिशिया समूह बनाए हैं।
 
उन्होंने कहा कि अगर इन सर्कलों को 1,000 स्थानीय मिलिशिया के लिए पैसे मिलता हैं, तो वे केवल 200 को ही काम पर रखते हैं और बाक़ी के ख़र्च और वेतन का दुरुपयोग करते हैं।
 
नबील ने कहा, "कई इलाक़े पर कब्ज़ा हो गया, क्योंकि पहले उन इलाक़ों में हमला किया गया था, जिनके लिए घोस्ट चौकियों और घोस्ट सैनिकों को पंजीकृत किया गया था और वहाँ संसाधन नहीं थे"
 
कुछ पर्यवेक्षकों ने तर्क दिया कि "अक्षम नेतृत्व" सरकारी बलों के नुक़सान के लिए ज़िम्मेदार था।
 
सैन्य विशेषज्ञ मोहम्मद नादर मेमार ने कहा, "हमारे सुरक्षा नेतृत्व को अक्षम व्यक्ति संचालित कर रहे हैं, जो प्रोफ़ेशनल नहीं हैं।"
 
तालिबान लड़ाकों की बढ़ती संख्या
यूएस-तालिबान समझौते के तहत अफ़ग़ान जेलों से 5,000 तालिबान लड़ाकों की रिहाई ने भी समूह की सैन्य क्षमता को बढ़ाया।
 
अफ़ग़ान राष्ट्रपति ने हाल ही में कहा था कि तालिबान क़ैदियों को रिहा करना "एक बड़ी ग़लती" थी। ग़नी ने यह भी दावा किया है कि हाल के हफ़्तों में हज़ारों विदेशी लड़ाके इस समूह में शामिल हुए हैं।
 
एक शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने ताशकंद में कहा कि ख़ुफ़िया इनपुट "पिछले महीने पाकिस्तान और अन्य स्थानों से 10,000 से अधिक जिहादी लड़ाकों के आने का संकेत देता है।
 
इसके अलावा, समूह ने हाल के वर्षों में अपने समर्थन का विस्तार किया है। 1990 के दशक के अंत में तालिबान ने पहले दक्षिण में अपनी स्थिति मज़बूत की जहाँ पश्तून रहते हैं और फिर ताज़िक और उज़्बेक की आबादी वाले उत्तर की ओर आगे बढ़े। लेकिन आज देश भर के समूहों के बीच उनका प्रभाव है और समर्थन हासिल है।
 
तालिबान के एक शीर्ष नेता आमिर खान मोटाकी ने कहा, "आज स्थिति 20 या 25 साल पहले की तुलना में अलग है। अब हर गाँव और इलाक़े में मौजूद हर जातीय समूह में सैकड़ों और हजारों सशस्त्र मुजाहिदीन हैं।"

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