फूलवती के मुकदमे ने कैसे खोला 'तीन तलाक़' का पिटारा?

Webdunia
गुरुवार, 11 मई 2017 (12:08 IST)
- इक़बाल अहमद (दिल्ली)
11 मई से सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच मुसलमानों में ट्रिपल तलाक़, हलाला और एक से अधिक शादी करने के मुद्दे पर सुनवाई जारी है। आइए, इस मामले को पूरी तफ़सील से समझते हैं। इस मामले की शुरुआत होती है अक्तूबर 2015 से।
 
* अक्तूबर 2015: कर्नाटक की एक महिला फूलवती हिंदू उत्तराधिकार क़ानून के तहत पैतृक संपत्ति में अपने हिस्से को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची।
 
प्रकाश एंड अदर्स वर्सेस फूलवती एंड अदर्स केस की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू सक्सेशन क़ानून को लेकर कुछ टिप्पणी की। सुनवाई के दौरान प्रकाश के वकील ने कहा कि हिंदू क़ानून में कमियों की बात तो हो रही है, लेकिन मुस्लिम पर्सलन लॉ में तो बहुत सारे ऐसे प्रावधान हैं जो सीधे-सीधे मुस्लिम महिलाओं के ख़िलाफ़ हैं। ये सुनते ही सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस अनिल दवे और जस्टिस एके गोयल ने स्वत: संज्ञान लेते हुए एक पीआईएल दायर करने का फ़ैसला सुना दिया।
 
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर दिया और उसे अपना पक्ष रखने को कहा। इसी दौरान उत्तराखंड की एक मुस्लिम महिला शायरा बानो को उनके पति ने ट्रिपल तलाक़ यानी एकतरफ़ा एक साथ तीन तलाक़ दे दिया।
 
* फ़रवरी 2016: शायरा बानो ने फ़रवरी 2016 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया और अदालत से गुहार लगाई कि ट्रिपल तलाक़ को असंवैधानिक क़रार दिया जाए।
 
शायरा बानो के बाद आफ़रीन रहमान और नीलोफ़र समेत चार और महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में ट्रिपल तलाक़ के ख़िलाफ़ इंसाफ़ की गुहार लगाई।
 
इसी दौरान मुसलमानों की एक धार्मिक और सामाजिक संस्था जमीअत-उलेमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी कि मुसलमानों के पर्सनल मामले से जुड़े किसी मामले में कोई भी फ़ैसला करने से पहले सुप्रीम कोर्ट उनकी भी बात ज़रूर सुने।
 
जमीअत के अलावा मुसलमानों के पर्सनल लॉ की हिफ़ाज़त करने के लिए बनी संस्था ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी कि उन्हें भी सुना जाए। एक तरफ़ जहां मुस्लिम धार्मिक और सामाजिक संस्थाएं अदालत पहुंची, तो शायरा बानो के समर्थन में कुछ महिला संगठन भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। उनमें भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन और बेबाक कलेक्टिव शामिल हैं।
 
*16 फ़रवरी, 2017: सुप्रीम कोर्ट ने सारे पक्षों की अपील को स्वीकार करते हुए सभी पक्षों को 30 मार्च तक अपना हलफ़नामा दायर करने को कहा।
 
* 30 मार्च 2017: 30 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया कि 11 मई से सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच इस मामले की रोज़ाना सुनवाई करेगी।
 
शायरा बानो और महिला संगठनों की मांग?
शायरा बानो और महिला संगठनों की मुख्य मांग है कि एक साथ तीन तलाक़, हलाला और मुसलमान मर्दों को एक से ज़्यादा शादी करने की इजाज़त पर क़ानूनी पाबंदी लगा दी जाए। उनकी दलील है कि ये बातें भारतीय संविधान की धारा 14 और 15 के तहत मिले बराबरी के अधिकार का उल्लंघन करती हैं।
 
मुस्लिम धार्मिक संगठनों का पक्ष
धार्मिक संगठनों की मांग है कि संविधान की धारा 25 के तहत मुसलमानों को अपने धर्म का अपने हिसाब से पालन करने का अधिकार है और अदालत को इस मामले में दख़ल देने का कोई अधिकार नहीं है।
 
क्या 11 मई से सुप्रीम कोर्ट में जो सुनवाई हो रही है उसका संबंध यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) से भी है?
सुप्रीम कोर्ट में जो सुनवाई हो रही है उसका संबंध सिर्फ़ और सिर्फ़ ट्रिपल तलाक़, हलाला और एक से अधिक शादी करने की इजाज़त से है।
 
तो फिर मुस्लिम धार्मिक संगठन और कुछ लोग इसे यूसीसी से जोड़ कर कैसे देख रहे हैं?
इसकी वजह ये है कि फूलवती वर्सेस प्रकाश केस की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने जब स्वत: संज्ञान लेते हुए पीआईएल दायर करने का फ़ैसला सुनाया तो केंद्र सरकार से इस मामले में उनका पक्ष जानने के लिए जवाब मांगा।
 
केंद्र सरकार ने अपने हलफ़नामे में ये कहा कि हिंदू और मुस्लिम महिलाओं के साथ इस तरह का बर्ताव इसलिए हो रहा है क्योंकि अभी भारत में यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड लागू नहीं है और सभी धर्मों के अपने-अपने पर्सनल लॉ हैं। इसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट के जज ने पूछ लिया कि केंद्र सरकार यूसीसी क्यों नहीं बना रही है।
 
पहले तो सरकार इस पर ख़ामोश बैठी रही, लेकिन फिर कुछ दिनों बाद इस मामले में लॉ कमीशन की राय लेने के लिए सरकार ने इसे लॉ कमीशन के पास भेज दिया। लॉ कमीशन भी महीनों तक इस पर बैठा रहा। फिर सात अक्तूबर 2016 को उसने 16 सवालों पर आधारित एक सवालनामा जारी किया और लोगों से अपील की कि वे इस मामले में अपनी राय दें।
 
लॉ कमीशन ने पहले 45 दिनों का समय दिया, फिर उसे एक महीने और बढ़ाकर 21 दिसंबर, 2016 तक लोगों से अपनी राय देने को कहा।

कई मुस्लिम संगठनों और कुछ राजनीतिक पार्टियों ने इस सवालनामे का बहिष्कार करते हुए इसका जवाब नहीं देने का फ़ैसला किया था। लेकिन लॉ कमीशन के अनुसार लाख़ों की संख्या में लोगों ने अपने जवाब दाख़िल किए हैं और आयोग उन सबको पढ़ रहा है। यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड के मामले में फ़िलहाल यही स्थिति है।
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