तुर्की भूकंप: जान तो बच गई लेकिन अब ज़िंदा रहने की चुनौती झेल रहे लोग

BBC Hindi
शनिवार, 18 फ़रवरी 2023 (07:51 IST)
नितिन श्रीवास्तव, बीबीसी संवाददाता
एक टूटे-बिखरे पड़े घर के सामने वाली सड़क के पास बैठी एक महिला सिर्फ़ उसी घर को निहार रही थी। उनके हाथ में एक बड़ा-सा झोला था जिसमें कुछ गर्म कपड़े और राहतकर्मियों से मिली पानी की एक-आधा बोतलें थीं।
 
कुछ दिन पहले तक दक्षिण तुर्की के इस्केंन्द्रन शहर के बीच बना ये घर पांच लोगों का आशियाना था। लेकिन, भूकंप के दो बड़े झटकों ने घर को मलबे में बदल दिया और इस परिवार को बेघर कर दिया।
 
तीन बच्चों की माँ, 34 वर्षीय, निहाल गुलकेतिन ने बताया, "उस सुबह हम सिर्फ़ बच्चों को लेकर घर से बाहर भाग सके थे। एक दिन बाद टेंट की छत मिली जिसमें गुज़ारा करना पड़ रहा है। डर के मारे बच्चे रात को एकाएक जाग जाते हैं। हम अपने घर को बहुत मिस करते हैं, पिछले दस दिनों में हममें से कोई नहा भी नहीं सका है।"
 
सड़क की दूसरी ओर बने सभी 14 घर ध्वस्त हो चुके हैं और इनका मलबा साफ़ कर वहां लोगों के रहने के लिए अस्थाई टेंट लगा दिए गए हैं।
 
रात को तापमान माइनस सात डिग्री तक चला जाता है, लेकिन यहां शरण लेने वाले उन 800 परिवारों के पास इससे निपटने का कोई और विकल्प भी नहीं है। लगभग सभी को अब अजनबियों के साथ खाना भी पड़ता है और रहना भी।
 
6 फ़रवरी को तुर्की-सीरिया में आए भयावह भूकंप में मरने वालों की तादाद 42,000 पार कर चुकी है। यहां लाखों इमारतों में या तो दरारें पड़ चुकी हैं या वो ध्वस्त हो चुकी हैं।
 
कई शहर-क़स्बे वीरान पड़े हैं। बस तबाही का ही मंज़र है जो हर तरफ़ दिखता है। बढ़ते समय के साथ इस बात की उम्मीदें धुंधली होती जा रही हैं कि मलबे से अब अधिक लोगों को ज़िंदा निकाला जा सकेगा।
 
लेकिन एक बड़ी चुनौती इस बात को लेकर है कि जो लाखों लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं उन सभी के लिए साफ़ शौचालय, पीने के स्वच्छ पानी और ताज़ा भोजन कब तक और किस तरह से मुहैया कराया जाए।
 
'अलेप्पो में फैल रहा हैजा'
ऑस्ट्रेलिया से राहत कार्य में मदद करने पहुँची डॉक्टर फ़ातिमा लोडेन एक मनोवैज्ञानिक चिकित्सक और पब्लिक हेल्थ एक्स्पर्ट हैं जिन्हें लगता है, "असली लड़ाई तो अब शुरू होने वाली है।"
 
उनके मुताबिक़, "मेरे साथियों ने सुबह बताया कि सीरिया का अलेप्पो शहर तक़रीबन ख़त्म हो चुका है और अब वहां हैजा फैल रहा है। तुर्की की बात करें तो नेक इरादों के बावजूद, यहां भेजा जाने वाला खाना कुछ समय के बाद ख़राब हो सकता है और नुक़सान पहुँचा सकता है। ऐसे में ये इंफ़ेक्शन की वजह बन सकता है। हमारे पास आगे अभी बहुत कुछ करने को है"।
 
नुर्दगी शहर
भूकंप आने से पहले तक इस छोटे शहर की आबादी 40,957 थी। स्थानीय लोगों से बात करने पर पता चला कि भूकंप के कारण यहां लगभग हर तीसरे परिवार में किसी न किसी की मौत हुई है।
 
अपने बच्चों को और पति को खो देने वाली दोना अदीज़ ने नम आँखों से बताया, "शवों को कई दिन बाद निकाल सके। अगर हमारे इलाक़े के लोग मदद न करते तो शायद वो भी नहीं हो सकता था। अब न तो बाथरूम है और न ही खाना बनाने की जगह। टेंट से क्या होगा, ठंड तो लगेगी ना"।
 
तुर्की और सीरिया में आए इस भूकंप के बाद से प्रभावित हुए इन सभी शहरों के निवासी कैंपों में हैं। इनकी तादाद रोज़ाना बढ़ती जा रही है, लेकिन इन कैंपों को रहने लायक़ भी तो बनाए रखना पड़ेगा।
 
तुर्की के प्रभावित शहरों में कम्यूनिटी किचन शुरू कर दिए गए हैं जहां लोग आकर खाना खा सकते हैं। हमें कई जगहों पर राशन बँटते भी दिखा।
 
सरकार के साथ-साथ बाहरी देशों और संस्थाओं से मदद तो आ रही है लेकिन इतने बड़े पैमाने पर आई आपदा के कई पहलू होते हैं।
 
43 साल के सहीन की दक्षिणी तुर्की के समाज में अच्छी साख थी। उन्होंने देश के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन के साथ वाली अपनी तस्वीर हमसे साझा की। लेकिन भूकंप के साथ ही मिनटों में उनकी दुनिया में सब कुछ बदल गया।
 
अपने चाचा के परिवार के शवों को इन्होंने ख़ुद मलबे से बाहर निकाला। जिस जगह पर उन्होंने हमसे बात की वहां कुछ दिन पहले इनका अपना घर था जो अब पूरी तरह ढह चुका था।
 
सहीन ने कहा, "उस समय कोई मदद के लिए नहीं आया था, मैंने ख़ुद कई लोगों को अपने स्टाफ़ के साथ गिरी हुई इमारतों से निकाला। न खाना था, न कुछ गर्म रखने को। सिर्फ़ ठंड थी, बस। बाद में जाकर कुछ खाना मिला और अब ये टेंट ही हमारा जीवन है।"
 
मराश शहर का मंज़र बेहद डरावना
मराश शहर के केंद्र में कम से कम 450 रिहायशी इमारतें ध्वस्त हो चुकी हैं। जो बची हुईं हैं वे या तो अब तिरछी हैं या झुककर किसी दूसरे पर टिकी हुई हैं।
 
शहर के अतातुर्क पार्क में हज़ारों कैंप लगाए गए हैं जहां लोग जाड़े से ठिठुर रहे हैं लेकिन रहने को मजबूर हैं। ये लोग रोज़ सुबह बग़ल के पार्क में कोयले का राशन लेने वहां लगी एक लाइन में जाकर खड़े हो जाते हैं।
 
हीटर और बिजली के अभाव में इन्हें कोयले का ही सहारा है। लेकिन कैंपों के इर्द-गिर्द सफ़ाई बनाए रखना भी बड़ी मुसीबत बन चुकी है। ज़ाहिर है, शहर-के-शहर अब घरों के बाहर हैं।
 
हताया-इस्केंन्द्रन में भारतीय सेना के मेडिकल कैंप के इंचार्ज डॉक्टर यदुवीर सिंह ने कहा, "शुरुआत में हमारे पास आने वाले मरीज़ घायल थे लेकिन अब इंफ़ेक्शन वाली बीमारियों के मामले भी आने शुरू हो गए हैं और ऐसा हर बड़ी आपदा के बाद देखा जाता है।"
 
वे बताते हैं, "पीने के पानी की सप्लाई बंद रहती है जिसकी वजह से पेट और स्किन इंफ़ेक्शन के मामले बढ़ते हैं।"

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

भाजपा के धाकड़ नेता सड़क पर कर रहे थे सेक्‍स, नेताजी की धाकड़ी हो गई वायरल, जीतू पटवारी ने बताया कुकर्म

हम भूखे मर जाएंगे, पाकिस्तानी सांसद बोले- भारत के 'वॉटर बम' का मसला सुलझाओ

UP : 43 साल बाद जेल से रिहा हुए 103 वर्षीय लखन, जानिए क्‍या है मामला...

CM योगी आदित्यनाथ गरजे, बहुत जी लिया पाकिस्तान, अब उसका टाइम पूरा हुआ

Rajasthan : भाजपा विधायक कंवरलाल की विधानसभा सदस्यता निरस्त

सभी देखें

मोबाइल मेनिया

Samsung Galaxy S25 Edge की मैन्यूफैक्चरिंग अब भारत में ही

iQOO Neo 10 Pro+ : दमदार बैटरी वाला स्मार्टफोन, जानिए क्या है Price और Specifications

itel A90 : 7000 रुपए से भी कम कीमत में लॉन्च हुआ iPhone जैसा दिखने वाला स्मार्टफोन

सिर्फ एक फोटो से हैक हो सकता है बैंक अकाउंट, जानिए क्या है ये नया व्हाट्सएप इमेज स्कैम

Motorola Edge 60 Pro : 6000mAh बैटरी वाला तगड़ा 5G फोन, जानिए भारत में क्या है कीमत

अगला लेख