दुनिया का तीसरा सबसे रईस आदमी भारत में पैसा क्यों नहीं लगाता?

Webdunia
रविवार, 6 मई 2018 (12:00 IST)
दिनेश उप्रेती
 
शेयरों से मुनाफा कैसे कमाया जाता है? इसका सही और सटीक फॉर्मूला अगर किसी के पास है तो वे हैं वॉरेन बफेट। जी हां, वॉरेन बफेट, जो दुनिया के सबसे अमीर निवेशक हैं। वॉरेन बफेट के पास खरबों रुपए के शेयर्स हैं और फोर्ब्स मैगजीन के अरबपतियों की ताजा सूची में वो 87 अरब 70 करोड़ डॉलर की निजी संपत्ति के साथ वे दुनिया के तीसरे सबसे अधिक अमीर हैं।
 
 
हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बफेट की होल्डिंग कंपनी बर्कशायर हैथवे के पास अभी 116 अरब डॉलर यानी करीब 7.65 लाख करोड़ रुपए की नकदी है यानी ये रकम भारत के घरेलू बैंकों के करीब 9 लाख करोड़ रुपए के डूबे हुए कर्ज (एनपीए) से कुछ ही कम है।

  • वॉरेन बफेट की होल्डिंग कंपनी बर्कशायर हैथवे के पास 116 अरब डॉलर का कैश
  • भारत की सबसे बड़ी बाजार पूंजी टीसीएस को खरीदने के लिए पर्याप्त कैश
  • बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज यानी बीएसडी में सूचीबद्ध 5 फीसदी कंपनियों को खरीदने की क्षमता
  • बर्कशायर हैथवे की बाजार पूंजी थाईलैंड, ईरान, ऑस्ट्रिया, नॉर्वे की जीडीपी से अधिक
     
बफेट की होल्डिंग कंपनी के पास इतनी नकदी है कि वो भारत की सबसे अधिक बाजार पूंजी वाली कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज यानी टीसीएस को आसानी से खरीद सकती है। टीसीएस की बाजार पूंजी हाल ही में 100 अरब डॉलर के पार पहुंची है और इस क्लब में शामिल होने वाली वो इकलौती भारतीय कंपनी है।
 
31 दिसंबर 2017 को बर्कशायर हैथवे के घोषित पोर्टफोलियो के मुताबिक बफेट की अमेरिकन एयरलाइंस में करीब 10 फीसदी हिस्सेदारी है, तो एप्पल में पौने 5 फीसदी। अमेरिकन एक्सप्रेस में उनका साढ़े 17 फीसदी से अधिक हिस्सा है और एक्साल्टा कोटिंग सिस्टम में करीब साढ़े 9 फीसदी की हिस्सेदारी है।
 
भारत में निवेश न करने की वजह?
 
लेकिन सवाल ये है कि निवेश की अपनी सटीक रणनीति से दुनियाभर में अपना लोहा मनवा चुके वॉरेन बफेट भारत और चीन जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में निवेश क्यों नहीं करते? वो भी तब जब अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष यानी आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक जैसी नामचीन संस्थाएं भारत और चीन को सबसे तेज अर्थव्यवस्थाओं में गिन रही हैं।
 
क्या वजह है कि वॉरेन बफेट अपनी रणनीति में बदलाव करने को तैयार नहीं हैं और सिर्फ और सिर्फ विकसित अर्थव्यवस्थाओं में ही निवेश करते हैं। बाजार के जानकारों से इस सवाल का जवाब ढूंढने से पहले ये जान लेते हैं कि आखिर वॉरेन बफेट शेयर बाजार के बेताज बादशाह बने कैसे?
 
कौन हैं वॉरेन बफेट?
 
वॉरेन बफेट का जन्म 30 अगस्त 1930 को ओमाहा के नेब्रास्का कस्बे में हुआ था। ओमाहा का होने के कारण ही उन्हें ऑरेकल ऑफ ओमाहा भी कहा जाता है। उनका एप्पल में निवेश है, लेकिन उनके पास आईफोन नहीं है। आईफोन क्या, उनके पास कोई भी स्मार्टफोन नहीं है और वो अभी तक पुराना फ्लिप फोन इस्तेमाल करते हैं।
 
साल 2013 में एक टेलीविजन इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि मैं कुछ भी नहीं फेंकता, जब तक कि उसे 20-25 साल अपने पास नहीं रख लेता। फिर उन्होंने अपना फोन दिखाते हुए कहा था कि ये अलेक्जेंडर ग्राहम बेल ने मुझे दिया था। 87 साल के बफेट ने 11 साल की उम्र में अपना पहला शेयर खरीदा था और 2 साल बाद ही उन्होंने पहली बार टैक्स भी फाइल कर दिया।
 
निजी जेट है लेकिन चलते पुराने कार से
 
आज भले ही पूरी दुनिया बफेट की व्यापार समझ और निवेश रणनीति का लोहा मानती हो, लेकिन नामचीन हॉर्वर्ड बिजनेस स्कूल ने उन्हें दाखिला देने से इंकार कर दिया था। इसके बाद बफेट ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी से मास्टर्स की डिग्री हासिल की।
 
बिजनेस मैगजीन फोर्ब्स के मुताबिक बफेट ने अपना 3 बेडरूम वाला मकान 1958 में नेब्रास्का में 31 हजार 500 डॉलर में खरीदा था और आज भी वे उसी घर में रहते हैं। साल 2014 तक बफेट अपनी 8 साल पुरानी कार से ही चलते थे। बाद में जनरल मोटर्स के सीईओ ने किसी तरह उन्हें नई अपग्रेडेड कार लेने के लिए मनाया। हालांकि बफेट के पास अपना निजी जेट है जिसका इस्तेमाल वो बिजनेस मीटिंग्स के लिए ही करते हैं।
 
बफेट ने जीवनभर पैसा कमाया और जमकर कमाया, लेकिन उन्हें इस कमाई गई दौलत का मोह नहीं है। वो अपनी कमाई गई दौलत का 99 फीसदी दान कर चुके हैं। इसके लिए उन्होंने अपने नाम का फाउंडेशन या ट्रस्ट नहीं बनाया है, बल्कि इसे बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन को दान कर दिया है।
 
उभरती अर्थव्यवस्थाओं में निवेश न करने की वजह?
 
अब मूल सवाल पर लौटते हैं कि वॉरेन बफेट भारत और चीन जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में निवेश क्यों नहीं करते? बाजार के जानकारों का कहना है कि बफेट की रणनीति हमेशा जोखिम वाले निवेश से बचने की रही है और वे लंबी अवधि का निवेश ही करते हैं।
 
विवेक मित्तल बताते हैं कि ऐसा नहीं है कि बफेट भारत जैसे बाजारों पर दांव लगाना ही नहीं चाहते। उनकी होल्डिंग कंपनी बर्कशायर हैथवे ने 2010-11 में भारत के बीमा कारोबार में उतरने की कोशिश भी की थी। भारत ने बीमा क्षेत्र में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के दरवाजे खोले थे, लेकिन 2 साल तक कोशिशें करने के बाद हैथवे ने अपने हाथ खड़े कर दिए।
 
मित्तल का कहना है कि लालफीताशाही अब भी बरकरार है और बफेट क्योंकि अमेरिका, जापान जैसी विकसित अर्थव्यवस्थाओं में निवेश करते हैं, वो यहां कागजी औपचारिकताओं से निपटने को एक मुश्किल के रूप में देख सकते हैं।
 
अर्थशास्त्री सुनील सिन्हा का कहना है कि भारत और चीन जैसी अर्थव्यवस्थाओं की ग्रोथ भले ही बहुत तेज हो, लेकिन नीतियों और प्रशासनिक ढांचे के मामले में अब भी काफी दिक्कतें हैं। यहां सब कुछ राजनीतिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है। एक सरकार कोई नीति बनाती है तो चुनावों में दूसरी पार्टी उसे ही मुद्दा बनाकर उसे खारिज कर देती है, ऐसे में बफेट जैसे बड़े निवेशकों का भरोसा जीत पाना मुश्किल होता है।
 
एक ब्रोकरेज फर्म में बतौर रिसर्च हैड काम कर रहे आसिफ इकबाल बताते हैं कि वॉरेन बफेट की रणनीति एकदम अलग है। वे दुनिया की सबसे बेहतरीन प्रबंधन वाली कंपनियों पर ही दांव लगाते हैं, साथ ही उनकी एक और शर्त होती है कि जिस कंपनी में निवेश कर रहे हैं, वो उन्हें अच्छी वैल्युएशन पर मिले।
 
इकबाल कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि बफेट को भारत और चीन जैसी आर्थिक महाशक्तियों की ताकत का अंदाजा नहीं है। लेकिन वो चाइनीज या भारतीय कंपनियों में सीधे निवेश न कर उसी क्षेत्र में दुनिया की दिग्गज कंपनियों पर दांव लगाते हैं। मसलन बफेट का निवेश तेल-गैस क्षेत्र की कंपनी एक्जॉन में है और ये दुनिया की सबसे बड़ी तेल-गैस कंपनी है। बफेट की रणनीति ये होगी कि एक्जॉन ही भारत या चीन की दिग्गज कंपनियों में हिस्सेदारी खरीदे, फिर चाहे वो रिलायंस इंडस्ट्रीज हो या कोई और।
 
इसके अलावा सुनील सिन्हा का ये भी मानना है कि बफेट अमेरिकी कंपनियों की नब्ज बहुत अच्छी तरह जानते हैं। सिन्हा कहते हैं कि एक और जोखिम है वो है एक्सचेंज रेट का, जो कि उस देश की अर्थव्यवस्था और राजनीतिक व्यवस्था पर निर्भर करता है। कंपनियों की कॉर्पोरेट गवर्नेंस और पारदर्शिता भी एक पहलू है। भारतीय और चीनी कंपनियों का कॉर्पोरेट गवर्नेंस उस स्तर का नहीं है। किंगफिशर, जेपी ग्रुप को ही ले लीजिए। बैंकों से इन्होंने हजारों करोड़ रुपए का कर्ज लिया और ये डूब गया।
 
सुनील सिन्हा का कहना है कि रेग्युलेशन भी एक बड़ी वजह हो सकती है, जो बफेट को भारत और चीन से दूर रखे हुए है। सिन्हा कहते हैं कि अमेरिका जैसे विकसित देशों में कायदे-कानूनों को लेकर लचर रुख नहीं अपनाया जाता, फिर चाहे तो पर्यावरण क्लीयरेंस का मामला हो या दूसरी रेग्युलेटरी मंजूरियां। भारत में अभी इन पर पारदर्शिता की कमी है।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

पाकिस्तान पर कभी भी हमला कर सकता है भारत, रक्षा मंत्री के बयान से मची खलबली

Gold : अक्षय तृतीया से पहले सोने में बड़ी गिरावट, जानिए कितनी है कीमत, ग्राहकों के लिए लुभावने ऑफर्स

PoK में मची खलबली, एक्शन की आहट से घबराया पाकिस्तान, 42 लॉन्च पैड की पहचान, बिलों में छुपे आतंकी

कैमरे में कैद हुआ पहलगाम हमले का दिल दहलाने वाला मंजर, गोलियों की गड़गड़ाहट और खौफ में चीखते-भागते पर्यटक

पहलगाम का बदला, मई में हो सकता है भारत-पाकिस्तान युद्ध? सैन्य कार्रवाई की जमीन तैयार कर रही है मोदी सरकार

सभी देखें

मोबाइल मेनिया

Oppo K13 5G : 7000mAh बैटरी वाला सस्ता 5G फोन, फीचर्स मचा देंगे तहलका

Xiaomi के इस स्मार्टफोन में मिल रहा है धमाकेदार डिस्काउंट और बैंक ऑफर्स भी

Motorola Edge 60 Fusion : दमदार बैटरी और परफॉर्मेंस के साथ आया मोटोरोला का सस्ता स्मार्टफोन

Infinix का नया सस्ता 5G स्मार्टफोन, फीचर्स मचा देंगे तहलका

Samsung का अब तक का सबसे सस्ता स्मार्टफोन, AI फीचर के साथ मिलेगा 2000 का डिस्काउंट

अगला लेख